
16वें वित्त आयोग की टीम ने उत्तराखंड के दौरे के दौरान राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की। इस बैठक का नेतृत्व वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने किया, जिसमें टैक्स वितरण, राज्य की राजस्व जरूरतें और समग्र विकास से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की गई। राज्य सरकार ने आयोग के समक्ष कई अहम आर्थिक मांगें रखीं, जिनमें केंद्रीय उपकर (सेस और सरचार्ज) में से 10% हिस्सेदारी उत्तराखंड को देने की प्रमुख मांग शामिल रही।
डॉ. पनगढ़िया ने बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि भारत की टैक्स व्यवस्था दो स्तरों पर काम करती है। केंद्र सरकार इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, सेस और सरचार्ज जैसे करों का संग्रह करती है, जबकि राज्य सरकारें एसजीएसटी, पेट्रोल पर सेल्स टैक्स और आबकारी कर एकत्र करती हैं। इन करों का एक हिस्सा केंद्र सरकार राज्यों को वितरित करती है, जिसके लिए प्रत्येक पांच वर्षों में वित्त आयोग का गठन किया जाता है।
राज्य सरकार ने रखी मांगें, पर्यावरणीय योगदान पर विशेष अनुदान की दरकार
उत्तराखंड सरकार ने इस अवसर पर अपनी प्रमुख राजस्व जरूरतों और विकासात्मक प्राथमिकताओं को सामने रखा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और राज्य के वित्त सचिव के नेतृत्व में आयोग के साथ हुई बैठक में राज्य सरकार ने जोर देकर कहा कि उत्तराखंड की विशिष्ट भौगोलिक, पर्यावरणीय और सीमावर्ती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशेष वित्तीय सहायता की आवश्यकता है।
राज्य सरकार ने आयोग के समक्ष यह मांग रखी कि केंद्रीय उपकरों में से कम से कम 10% हिस्सा उत्तराखंड को दिया जाए। सरकार का तर्क था कि उत्तराखंड की आर्थिक संरचना और राजस्व संग्रहण की क्षमता सीमित है, लेकिन राज्य पर्यावरण संरक्षण, जलस्रोतों का संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा देने में देश के लिए अहम योगदान दे रहा है। सरकार ने यह भी उल्लेख किया कि राज्य में फॉरेस्ट कवर में 10 से 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इस पर्यावरणीय योगदान को देखते हुए विशेष अनुदान मिलना चाहिए।
पिछले आयोग की सिफारिशों का हवाला, आबादी बनाम क्षेत्रफल की बहस
वित्त सचिव ने आयोग को जानकारी दी कि 15वें वित्त आयोग ने उत्तराखंड को करों में 41% हिस्सेदारी दी थी। हालांकि आबादी के आधार पर राज्य को मात्र 15% बजट ही मिला था। राज्य सरकार का कहना है कि आबादी को आधार बनाने से पर्वतीय राज्यों को नुकसान होता है, क्योंकि इनकी जनसंख्या कम होती है लेकिन प्रशासनिक और बुनियादी ढांचे की जरूरतें अधिक होती हैं।
डॉ. पनगढ़िया ने बैठक में बताया कि 16वें वित्त आयोग ने आबादी के साथ-साथ राज्य के क्षेत्रफल और राजस्व संग्रहण क्षमता को भी मापदंडों में शामिल किया है। क्षेत्रफल के आधार पर 15% और राजस्व संग्रहण क्षमता के आधार पर अतिरिक्त 2.5% का प्रावधान किया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य की प्रति व्यक्ति आय कर संग्रहण को प्रभावित करती है, और इस संदर्भ में हरियाणा जैसे राज्य की प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है।
स्थानीय निकायों से भी संवाद, पंचायतों और शहरों का होगा दौरा
वित्त आयोग की टीम न केवल सरकार से, बल्कि राज्य की पंचायतों और नगर निकायों से भी संवाद कर रही है। आयोग का उद्देश्य है कि जमीनी स्तर पर जाकर यह जाना जाए कि राज्यों की स्थानीय संस्थाओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें किस प्रकार की वित्तीय सहायता की जरूरत है। उत्तराखंड में भी आयोग ने पंचायत प्रतिनिधियों से मिलने और उनकी समस्याएं समझने की योजना बनाई है।
आयोग ने कहा कि भविष्य में वह उत्तराखंड के विभिन्न शहरों और गांवों का दौरा करेगा और आम नागरिकों से भी बातचीत कर राज्य की वास्तविक वित्तीय जरूरतों का आकलन करेगा। इससे आयोग को सटीक और न्यायसंगत सिफारिशें करने में मदद मिलेगी।
धार्मिक पर्यटन पर ध्यान, बदरीनाथ और केदारनाथ का दौरा तय
उत्तराखंड दौरे के अगले चरण में 16वें वित्त आयोग की टीम बदरीनाथ और केदारनाथ धाम का दौरा करेगी। यह दौरा धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं और उससे जुड़ी चुनौतियों को समझने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। इन धार्मिक स्थलों पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है, लेकिन इसके साथ ही बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव भी पड़ता है।
धार्मिक पर्यटन के संदर्भ में आयोग की योजना है कि धामों के दौरे के बाद वह राज्य के पर्यटन और व्यापार प्रतिनिधियों से संवाद स्थापित करेगा। यह बैठक बुधवार को प्रस्तावित है, जिसमें पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिए वित्तीय योजनाएं और अनुदान पर चर्चा होगी।