
भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश ने पोस्टमार्टम की पारंपरिक चीर-फाड़ वाली प्रक्रिया को एक नई, वैज्ञानिक और भावनाओं का सम्मान करने वाली विधि से बदल दिया है। इस अत्याधुनिक तकनीक को मिनिमली इनवेसिव ऑटोप्सी नाम दिया गया है। यह तकनीक लैप्रोस्कोपी, एंडोस्कोपी और सीटी स्कैन के समन्वय से मृत शरीर की आंतरिक जांच करती है—वो भी बिना शरीर को गले से पेट तक चीरने की आवश्यकता के।
शव को अब नहीं करना होगा चीर-फाड़
अब तक भारत सहित दुनिया भर में पारंपरिक पोस्टमार्टम प्रक्रिया के अंतर्गत शव को गर्दन से लेकर पेट तक चीरकर आंतरिक अंगों की जांच की जाती थी। सिर के हिस्से को भी खोला जाता था, जिससे मस्तिष्क का परीक्षण किया जा सके। यह प्रक्रिया न केवल तकनीकी रूप से जटिल थी, बल्कि इससे मृतक के परिजनों की भावनाओं को भी ठेस पहुंचती थी। कई बार परिजन शव की चीर-फाड़ के कारण पोस्टमार्टम कराने से इनकार कर देते थे। विशेषकर धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के चलते कई समुदाय पोस्टमार्टम के खिलाफ रहते हैं।
क्या है ‘मिनिमली इनवेसिव ऑटोप्सी’?
एम्स ऋषिकेश के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञ डॉ. आशीष भूते बताते हैं कि मिनिमली इनवेसिव ऑटोप्सी एक ऐसी तकनीक है जिसमें शरीर को बड़े पैमाने पर नहीं काटा जाता। सबसे पहले शव का सीटी स्कैन किया जाता है, जिससे एक संपूर्ण छवि (इमेज) प्राप्त होती है। इसके बाद मृत शरीर में केवल दो-दो सेंटीमीटर के छोटे छेद किए जाते हैं। इन छेदों के माध्यम से लेप्रोस्कोपिक और एंडोस्कोपिक उपकरण शरीर के अंदर पहुंचाए जाते हैं, जिससे आंतरिक अंगों का निरीक्षण और बायोप्सी की जा सकती है।
एंडोस्कोपी के ज़रिए अंगों की कैविटी (गुहा) का भी परीक्षण किया जा सकता है। यह विधि यौन अपराधों से जुड़े मामलों में भी कारगर साबित हो सकती है, जहां गुप्तांगों की जांच आवश्यक होती है। पहले इन अंगों के भीतरी हिस्सों को देखने के लिए शरीर को चीरना पड़ता था, पर अब वह बिना किसी कट के संभव हो गया है।
एम्स ऋषिकेश में इस तकनीक की शुरुआत
इस नवाचार के पीछे एम्स ऋषिकेश की फॉरेंसिक टीम का अहम योगदान रहा है। विभागाध्यक्ष डॉ. बिनय बस्तियां और संस्थान की निदेशक प्रोफेसर मीनू सिंह के नेतृत्व में इस तकनीक को विकसित किया गया। डॉ. आशीष बताते हैं कि यह सोच लंबे समय से थी कि किस तरह पोस्टमार्टम को कम से कम आक्रामक (इनवेसिव) बनाया जाए।
उन्होंने बताया, “कुछ संस्थानों में केवल सीटी स्कैन से पोस्टमार्टम करने की कोशिशें हुईं, लेकिन कई मामलों में यह अधूरी रहती थी। जहां केवल इमेजिंग पर्याप्त नहीं थी, वहां बायोप्सी के लिए चीर-फाड़ करनी ही पड़ती थी। ऐसे में विचार आया कि क्यों न सीटी स्कैन के साथ लेप्रोस्कोपी और एंडोस्कोपी तकनीकों को जोड़ दिया जाए।”
अधिक सटीक और वैज्ञानिक तरीका
विशेषज्ञों का दावा है कि यह नई तकनीक पारंपरिक पोस्टमार्टम से कहीं अधिक सटीक है। सीटी स्कैन से जहां संपूर्ण शरीर का त्रि-आयामी दृश्य (3D व्यू) मिल जाता है, वहीं दूरबीन जैसी तकनीकों से सूक्ष्म अवलोकन और ऊतक नमूनों की बायोप्सी भी ली जा सकती है। इससे न केवल मौत के कारण की ज्यादा स्पष्ट जानकारी मिलती है, बल्कि फोरेंसिक जांच में वैज्ञानिक सटीकता भी बढ़ जाती है।
संवेदनाओं का होगा सम्मान
नई तकनीक का एक और बड़ा लाभ यह है कि यह मृतक के परिजनों की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को आहत नहीं करती। शव की चीर-फाड़ न होने के कारण शरीर की गरिमा बनी रहती है। विशेष रूप से ऐसे मामलों में जहां परिजन पोस्टमार्टम के लिए तैयार नहीं होते थे, वहां यह तकनीक एक सम्मानजनक विकल्प बन सकती है।