
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने एक बार फिर विदेश में भारत की एकजुटता और राष्ट्रीय हित को सबसे ऊपर बताते हुए बयान दिया है, जो देश में राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में गूंज रहा है। मलेशिया की राजधानी क्वालालंपुर में एक कार्यक्रम के दौरान ऑल पार्टी डेलीगेशन का हिस्सा बने खुर्शीद ने कहा, “देश की सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के बीच कोई मतभेद नहीं है। हम एकमत हैं – चाहे कोई कहे या न कहे।” खुर्शीद के इस बयान को भारत की विदेश नीति और आतंरिक राजनीति के बीच संतुलन साधने की एक सोच-समझकर दी गई प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है।
ऑल पार्टी डेलीगेशन का हिस्सा बने खुर्शीद
सलमान खुर्शीद इस समय एक ऑल पार्टी डेलीगेशन के साथ विदेश दौरे पर हैं, जिसका उद्देश्य भारत की वैश्विक छवि को मज़बूत करना और कूटनीतिक संवाद को बढ़ावा देना है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह यात्रा व्यक्तिगत नहीं बल्कि दलगत आधार पर तय की गई है। “हम यहां खुद से नहीं आए हैं। हमें हमारे दलों ने भेजा है। हमारे राजनीतिक दलों ने सोच-समझकर निर्णय किया कि हमें यहां आना चाहिए,”
मतभेद भारत में जाहिर हों, विदेश में नहीं
सलमान खुर्शीद ने राजनीतिक मतभेदों को लेकर भी स्पष्ट राय दी। उन्होंने कहा कि अगर किसी मुद्दे पर असहमति है, तो उसे भारत के भीतर ही व्यक्त किया जाना चाहिए। “हम यहां (विदेश में) नीतियां नहीं बना सकते, इतिहास नहीं बदल सकते और न ही अपनी राजनीतिक विचारधारा छोड़ सकते हैं। लेकिन जब हम बाहर होते हैं, तो हमें एकजुट होकर बोलना होता है, क्योंकि देश की छवि सबसे ऊपर है।”
यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत में राजनीतिक दलों के बीच घरेलू मुद्दों पर तीखी बयानबाज़ी चल रही है, लेकिन विदेश में प्रतिनिधित्व के मामले में एकजुटता दिखाना, भारत की परिपक्व लोकतांत्रिक छवि को प्रस्तुत करता है।
एकजुटता को बताया ‘राष्ट्रहित’
सलमान खुर्शीद ने अपने बयान में बार-बार इस बात पर जोर दिया कि एकजुटता राष्ट्रहित में आवश्यक है और इस समय किसी तरह की पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है। “मुझे नहीं लगता कि हमने जो किया है उसमें कोई विरोधाभास है। एकजुटता देश के लिए लाभदायक है। जैसा कि मैं बार-बार कहता हूं, देश पहले है। अगर किसी की सोच यह नहीं है, तो मैं उसके बारे में कुछ नहीं कह सकता।” यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब कुछ विरोधी दलों द्वारा विदेश में भारत सरकार की आलोचना किए जाने को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। खुर्शीद का बयान इन तमाम विवादों को शांत करने और संतुलन लाने वाला माना जा रहा है।
आतंकवाद और बातचीत: साथ नहीं चल सकते
सलमान खुर्शीद ने विदेश नीति से जुड़े दो प्रमुख मुद्दों पर भी टिप्पणी की –
-
भारत की सैन्य कार्रवाई
-
सिंधु जल संधि के पुनः मूल्यांकन की नीति
उन्होंने कहा, “हमने साफ कर दिया है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। भारत की ओर से उठाए गए सैन्य और कूटनीतिक कदमों के परिणाम भविष्य बताएगा, लेकिन हमारी प्राथमिकता साफ है।” यह बयान उस सुसंगत रणनीतिक रुख को दोहराता है जो पिछले कुछ वर्षों से भारत की पाकिस्तान नीति में देखा गया है, जिसमें आतंकवाद को लेकर ‘Zero Tolerance’ की नीति अपनाई गई है।
कूटनीतिक हलकों में चर्चा का विषय
सलमान खुर्शीद का यह बयान केवल मीडिया में नहीं, बल्कि कूटनीतिक गलियारों में भी चर्चा का विषय बन गया है। भारत की ओर से विपक्ष और सत्ता पक्ष के प्रतिनिधियों का एक स्वर में बोलना, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश की छवि को और सुदृढ़ करता है।
कूटनीतिक विशेषज्ञ डॉ. अनुपम जोशी का कहना है: “इस तरह के बयान भारत की एकता और स्थायित्व को दर्शाते हैं। चाहे घरेलू मतभेद हों, लेकिन विदेश में ऐसी एकजुटता भारत की वैश्विक साख को बढ़ाती है।