पंजाब के गुरदासपुर जिले में सरपंच चुनाव के लिए 2 करोड़ रुपये की बोली लगने की घटना ने पूरे राज्य में हड़कंप मचा दिया है। यह बोली गांव हरदोवाल कलां में लगाई गई है, जिसके कारण चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी पर सवाल उठने लगे हैं। राज्य चुनाव आयोग ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए रिपोर्ट मांगी है, और ऐसे मामलों पर कड़ी नजर रखने का आश्वासन दिया है।
बोली की प्रक्रिया और राजनीतिक दलों की अनुपस्थिति
गुरदासपुर के डेरा बाबा नानक क्षेत्र के गांव हरदोवाल कलां में सरपंच पद के लिए 2 करोड़ रुपये की बोली लगाई गई। भाजपा नेता आत्मा सिंह ने इस बोली को पंचायत घर में आयोजित किया। गांव के तीन प्रमुख दलों—भाजपा, जसविंदर सिंह बेदी और निरवैर सिंह—ने दावा किया कि जो व्यक्ति सबसे अधिक बोली लगाएगा, वह गांव का अगला सरपंच होगा।
गौर करने वाली बात यह है कि इस बोली में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अकाली दल का कोई भी प्रतिनिधि मौजूद नहीं था, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह प्रक्रिया सभी दलों की सहमति से चल रही है या नहीं।
बोली की बढ़ती रेट
बोली की शुरुआत एक करोड़ रुपये से हुई। जसविंदर सिंह बेदी ने पहले एक करोड़ की बोली लगाई, लेकिन इसके बाद आत्मा सिंह ने सीधे 2 करोड़ की बोली लगाई। इस घटना ने स्थानीय निवासियों और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच तीव्र चर्चा को जन्म दिया है। सोमवार को किसी अन्य बोलीदाता ने अपनी बोली को बढ़ाने की कोशिश नहीं की, जिससे अब मंगलवार सुबह तक का समय दिया गया है। यदि कोई भी व्यक्ति 2 करोड़ रुपये से अधिक की बोली नहीं लगाता है, तो आत्मा सिंह की बोली फाइनल मानी जाएगी।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
पंजाब राज्य चुनाव आयोग ने इस घटना का संज्ञान लिया है और इस मामले में रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने बताया कि ऐसे मामलों पर गहरी नजर रखी जा रही है, जहां पैसे की संलिप्तता है। आयोग का कहना है कि इस तरह की घटनाएं चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी पर सवाल उठाती हैं, और यदि जांच में कुछ भी अनियमितता पाई गई तो उचित कार्रवाई की जाएगी।
राजनीतिक दृष्टिकोण
भाजपा नेता विजय सोनी ने इस मामले पर बयान देते हुए कहा कि पंजाब में केवल उनकी पार्टी ही ऐसे कार्य कर सकती है जो लोगों के कल्याण के लिए हों। उनकी बातों से यह स्पष्ट है कि वे इस बोली को एक राजनीतिक अवसर मानते हैं, जो उनकी पार्टी की ताकत को दर्शाता है।
सामाजिक प्रतिक्रिया
इस घटना पर ग्रामीणों में मिश्रित प्रतिक्रिया है। कुछ लोगों का मानना है कि यह केवल एक चुनावी रणनीति है, जबकि अन्य इसे पैसे की ताकत के माध्यम से लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास मानते हैं। गांव के कुछ निवासी इसे एक पारंपरिक प्रथा के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य इसे गंभीर चिंता का विषय मानते हैं।