
भारत के सबसे लंबे समय से चल रहे जल विवादों में से एक सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद अब समाधान की ओर बढ़ता दिख रहा है। पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच बुधवार को दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस संवेदनशील मसले पर सहमति की नई उम्मीदें जगी हैं।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के बीच हुई इस महत्वपूर्ण वार्ता में दोनों नेताओं ने पहली बार विवाद के समाधान को लेकर सकारात्मक रुख अपनाया। अब इस मसले को सुलझाने की दिशा में केंद्र की भूमिका भी अहम हो गई है।
पहली बार दिखा सहमति का संकेत
बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर सिंधु जल संधि को रद्द कर दिया जाता है और चिनाब, रावी और पुंछ नदियों के जल में से 23 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी पंजाब को मिलता है, तो वह उसमें से हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश को उनका हिस्सा देने को तैयार हैं।
मान ने यह भी कहा, “हरियाणा हमारा दुश्मन नहीं, बल्कि भाई है। जब केंद्र सरकार हमें सिंधु जल संधि से हटने के बाद रावी और चिनाब से पूरा पानी दे देगी, तब हमारे पास इस विवाद को खत्म करने के लिए पर्याप्त जल होगा।” हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भी इस बिंदु पर सहमति जताई, जो इस लंबे विवाद में एक बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक संकेत है। इससे साफ है कि दोनों राज्यों के बीच केवल 3 से 4 MAF पानी को लेकर मतभेद रह गए हैं, जिन्हें दूर करना अब ज्यादा कठिन नहीं रह गया है।
पंजाब के लिए नासूर बना एसवाईएल विवाद
मुख्यमंत्री मान ने बैठक में स्पष्ट रूप से कहा कि एसवाईएल नहर विवाद अब पंजाब के लिए एक “नासूर” बन चुका है, जिसे अब हमेशा के लिए खत्म करना ही राज्य के हित में है। उन्होंने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल से आग्रह किया कि केंद्र इस विवाद को जल्द सुलझाने के लिए व्यावहारिक और कानूनी समाधान की दिशा में तेजी से कदम उठाए। उन्होंने जोर देकर कहा, “हम पुरानी बातों में उलझे रहेंगे तो समाधान नहीं निकलेगा। यह वक्त है नई सोच और व्यावहारिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ने का।”
अगली बैठक और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
बैठक के दौरान यह भी तय किया गया कि इस मसले पर अगली बैठक 5 अगस्त को दिल्ली में होगी। इस बैठक में यदि कोई ठोस समाधान तैयार होता है तो वह 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जा सकता है, जहां इस मामले की सुनवाई निर्धारित है। मान ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार इस दिशा में सक्रिय सहयोग करेगी और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राज्यों की सहमति पर आधारित समाधान रखा जाएगा, जिससे वर्षों पुराने इस जल विवाद को सुलझाया जा सके।
सिंधु जल संधि और रिपेरियन अधिकार
एसवाईएल विवाद का एक बड़ा पक्ष यह भी है कि अगर सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को रद्द किया जाता है, तो पंजाब को रावी और चिनाब जैसी नदियों से उसका पूरा रिपेरियन (Riparian) अधिकार मिल सकता है। यही वो आधार है जिस पर पंजाब, हरियाणा को पानी देने की अपनी क्षमता साबित कर रहा है।
भगवंत मान ने बैठक में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और कहा कि अब वक्त आ गया है कि भारत-पाक जल समझौते पर पुनः समीक्षा की जाए, ताकि पंजाब को उसका पूरा प्राकृतिक हक मिल सके।
बीबीएमबी को लेकर शिकायत
एसवाईएल बैठक के बाद मुख्यमंत्री मान ने भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) के खिलाफ भी अपनी शिकायतें केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल के समक्ष रखीं। उन्होंने आरोप लगाया कि बीबीएमबी पंजाब के हितों की अनदेखी कर रहा है और उसके अधिकार क्षेत्र में कटौती करने के प्रयास कर रहा है। मान ने कहा, “BBMB लगातार ऐसे आदेश जारी कर रहा है जो पंजाब के हक को कमजोर करते हैं। मैं पंजाब के अधिकारों से समझौता नहीं करूंगा, चाहे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।” उन्होंने यह भी बताया कि 2022 में जब वह सत्ता में आए थे तब राज्य में सिर्फ 22% नहरी पानी का उपयोग हो रहा था, जो अब 61% तक पहुंच चुका है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि पंजाब सरकार ने जल संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है।
राजनीतिक और कानूनी पृष्ठभूमि
एसवाईएल नहर विवाद की जड़ें 1966 में पंजाब से हरियाणा के गठन के साथ शुरू हुईं थीं। हरियाणा को अपने हिस्से के पानी की आपूर्ति के लिए सतलुज से यमुना को जोड़ने वाली नहर की आवश्यकता थी। इस नहर को लेकर कई बार राजनीतिक, कानूनी और प्रशासनिक पहल की गई लेकिन अब तक यह मसला अनसुलझा ही रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में पंजाब को आदेश दिया था कि वह हरियाणा को उसका हिस्सा देने के लिए एसवाईएल निर्माण पूरा करे, लेकिन पंजाब सरकार ने इसे लागू करने से इंकार कर दिया। इसके पीछे पंजाब में जल की कमी और रिपेरियन सिद्धांत का हवाला दिया जाता रहा है।