
पंजाब की धरती एक बार फिर पारंपरिक बैलगाड़ी दौड़ों की गूंज सुनने को तैयार है। शुक्रवार को पंजाब विधानसभा ने “द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी टू एनिमल्स (पंजाब संशोधन) विधेयक” को मंजूरी दे दी, जिससे राज्य में बैलगाड़ी दौड़ों को कानूनी मंजूरी मिल गई है। इस फैसले को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पारंपरिक खेलों और देसी पशु नस्लों को संरक्षण देने की दिशा में अहम कदम बताया।
विधानसभा में बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, “अब ये आयोजन सिर्फ किला रायपुर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे पंजाब में पारंपरिक बैलगाड़ी दौड़ें आयोजित की जाएंगी। हमारे गांवों में भी ये दौड़ें होती हैं। किला रायपुर की दौड़ का नाम तो पूरी दुनिया में है, लेकिन अब पूरे पंजाब को इस परंपरा से जोड़ा जाएगा।”
अफवाहों का जवाब: “जानवरों पर जुल्म नहीं होता”
मुख्यमंत्री ने इस विधेयक को लेकर फैल रही अफवाहों पर भी जवाब दिया। उन्होंने कहा, “बिना मतलब यह अफवाह फैला दी गई थी कि बैलगाड़ी दौड़ के दौरान जानवरों पर अत्याचार होता है। सच तो यह है कि हमारे किसान इन पशुओं को अपने बच्चों की तरह पालते हैं। बैल किसी भी किसान के लिए सिर्फ पशु नहीं, बल्कि परिवार का हिस्सा होते हैं।”
मान ने इस बात पर जोर दिया कि अब इस खेल के आयोजन के लिए कुछ स्पष्ट नियम बनाए गए हैं जिससे पशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने बताया कि विधेयक में यह अनिवार्य किया गया है कि बैलगाड़ी दौड़ के दौरान प्रतिभागी बैलों को डंडे से नहीं मार सकते। केवल हाथ से इशारा कर या आवाज देकर बैलों को दौड़ाने की अनुमति होगी।
पशुओं की सुरक्षा को मिलेगी प्राथमिकता
विधेयक में पशु कल्याण से संबंधित कई ठोस प्रावधान किए गए हैं। इनमें पशुओं की नियमित पशु चिकित्सा जांच, उनके लिए उपयुक्त सुरक्षा मानकों की पालना, दौड़ में भाग लेने वाले जानवरों का पंजीकरण और आयोजन से जुड़ी दस्तावेजी प्रक्रिया को अनिवार्य किया गया है। नियमों के उल्लंघन पर सख्त सजा का भी प्रावधान रखा गया है।
मुख्यमंत्री मान ने कहा, “हमारा उद्देश्य सिर्फ एक खेल को बहाल करना नहीं है, बल्कि इस बहाने हम गांवों की मिट्टी से जुड़ी संस्कृति और परंपराओं को फिर से जीवंत कर रहे हैं। साथ ही यह देसी नस्लों के संरक्षण की दिशा में भी बड़ा कदम होगा।”
किला रायपुर से पूरे पंजाब तक
किला रायपुर का बैलगाड़ी दौड़ मेला दशकों से पंजाब की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक रहा है। हालांकि, पशु क्रूरता के मुद्दे को लेकर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। अब यह विधेयक पारित होने के बाद राज्यभर में इस तरह के आयोजनों का मार्ग प्रशस्त होगा। माना जा रहा है कि इससे ग्रामीण खेलों को नया जीवन मिलेगा और स्थानीय पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इन आयोजनों को सही दिशा में प्रोत्साहन दिया जाए तो यह पंजाब के सांस्कृतिक पर्यटन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा दे सकता है।
लावारिस कुत्तों और पशुओं की समस्या पर केंद्र से बातचीत
बैठक के दौरान एक और गंभीर विषय पर चर्चा हुई — लावारिस पशुओं की समस्या। विधायक विक्रमजीत चौधरी द्वारा यह मुद्दा उठाए जाने पर मुख्यमंत्री मान ने बताया कि राज्य सरकार इस समस्या को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार से संपर्क में है।
मान ने कहा, “लावारिस कुत्ते और पशु सड़कों पर दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बन चुके हैं। कई बार इन हादसों में पूरा परिवार खत्म हो जाता है। हम इस मसले को गंभीरता से ले रहे हैं और केंद्र सरकार से इस पर उचित कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।”
उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार खुद भी ऐसे उपायों पर काम कर रही है जिससे लावारिस पशुओं की संख्या को नियंत्रित किया जा सके और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर रखा जा सके।
विधेयक से उठी नई उम्मीदें
इस संशोधित विधेयक के पारित होने के साथ ही राज्य में एक लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर विराम लग गया है। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं और परंपरा प्रेमियों के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई थी। सरकार का दावा है कि नए प्रावधान संतुलन बनाकर आगे बढ़ने की कोशिश है। मुख्यमंत्री मान के अनुसार, “हम परंपरा और प्रगति, दोनों के बीच संतुलन बनाना चाहते हैं। यह कानून सुनिश्चित करेगा कि कोई पशु पीड़ा न सहे, और साथ ही हमारी सांस्कृतिक विरासत भी जीवित रहे।”