
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नौगांव बाजार स्थित स्योरी फल पट्टी में शुक्रवार देर रात बादल फटने (Cloudburst) की घटना ने पूरे इलाके में भारी तबाही मचा दी। इस आपदा के चलते एक आवासीय भवन मलबे में दब गया, जबकि आधा दर्जन से अधिक घरों और दुकानों में भारी मात्रा में पानी भर गया।
घटना के समय देवलसारी गदेरे (स्थानीय नाला) में जलप्रवाह इतना तेज हो गया कि एक मिक्चर मशीन, दुपहिया वाहन और एक कार भी बहकर मलबे में दब गई। खतरे की गंभीरता को देखते हुए स्थानीय निवासियों ने अपने घर खाली कर दिए और सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन किया।
अचानक आई आपदा से मची अफरा-तफरी
स्थानीय प्रशासन के मुताबिक, रात के समय लगातार हो रही बारिश के बाद अचानक बादल फटा, जिससे गदेरे का जलस्तर बढ़ गया और देखते ही देखते वह मलबे और पानी के साथ रिहायशी इलाकों में घुस गया। स्योरी फल पट्टी के निवासी इससे पूरी तरह अचंभित रह गए क्योंकि बारिश पहले से हो रही थी, पर इतनी भीषण आपदा की आशंका किसी को नहीं थी।
गांव के निवासी राजेंद्र सिंह ने बताया, “रात करीब 2 बजे जोरदार आवाज आई, जब बाहर निकले तो देखा कि सारा इलाका पानी में डूबा हुआ है। कई वाहन बह गए और एक मकान पूरी तरह मलबे में समा गया है।”
मिक्चर मशीन, दोपहिया वाहन और कार बह गई
गदेरे के उफान में एक निर्माणाधीन साइट पर खड़ी मिक्चर मशीन, पास में खड़े कई दोपहिया वाहन और एक कार बहकर मलबे में दब गए। घटनास्थल पर पहुंचे राहत और बचाव दल ने तत्काल एनडीआरएफ व एसडीआरएफ को सूचित किया और मलबा हटाने का कार्य शुरू किया गया। हालांकि किसी के हताहत होने की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन अधिकारियों का मानना है कि मलबे में और भी जनहानि की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
अतिवृष्टि से पहले भी आई थी चेतावनी
इससे पहले ही क्षेत्र में अतिवृष्टि की खबरें सामने आ रही थीं। स्थानीय नाले के जलस्तर में भारी वृद्धि देखी गई थी, जिससे कई दुकानों और घरों में पानी घुस गया था। इसके चलते पहले से ही कुछ लोग सतर्क हो गए थे, लेकिन बादल फटने जैसी आकस्मिक आपदा ने स्थिति को और गंभीर बना दिया।
सड़कों पर खड़े कई दोपहिया वाहन बह गए, और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में रखा सामान भी नष्ट हो गया।
IIT रुड़की की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता
इस घटना के ठीक कुछ दिन पहले ही IIT रुड़की के आपदा प्रबंधन और मानवीय सहायता उत्कृष्टता केंद्र द्वारा एक चौंकाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड के चार पर्वतीय जिले — रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी — भविष्य में भूकंप से प्रेरित भूस्खलन (Earthquake-induced Landslides) के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं।
यह रिपोर्ट 2 अगस्त को एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुई है और इसे IIT रुड़की के विशेषज्ञों — अक्षत वशिष्ठ, शिवानी जोशी और श्रीकृष्ण सिवा सुब्रमण्यम — ने तैयार किया है।
जिलावार भूस्खलन जोखिम की पहली बार जोनिंग
इस अध्ययन की खास बात यह है कि इसमें पहली बार जिलावार भूस्खलन जोखिम की जोनिंग की गई है। भूकंपीय तीव्रता, रिक्टर स्केल पर संभावित झटकों की तीव्रता और उनकी वापसी अवधि (Return Period) के आधार पर यह विश्लेषण किया गया है।
- रुद्रप्रयाग को सबसे अधिक संवेदनशील पाया गया है
- उसके बाद पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जिलों को उच्च जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया गया है
रिपोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि अगर समय रहते बुनियादी ढांचे की योजना और आपदा प्रबंधन रणनीति नहीं बदली गई, तो भविष्य में मानव जीवन और संपत्ति को बड़ा खतरा हो सकता है।
हिमालयी क्षेत्र में बढ़ रही भूकंपीय और जलवायु संबंधी घटनाएं
IIT के विशेषज्ञों के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र भूकंपीय दृष्टिकोण से पहले से ही अत्यंत संवेदनशील रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन, अनियोजित विकास और जंगलों की कटाई ने स्थिति को और खराब कर दिया है। भूस्खलन और बादल फटना अब केवल मानसून का हिस्सा नहीं रह गया है, बल्कि यह एक स्थायी जोखिम बनते जा रहे हैं।
पिछली आपदाओं की यादें अब भी ताजा
उत्तरकाशी जनपद इससे पहले भी 5 अगस्त को धराली गांव में आए बादल फटने की त्रासदी को झेल चुका है। उस भयावह घटना में चार लोगों की जान चली गई थी, जबकि कई लोग मलबे में दब गए थे। इसके अलावा होटल, घर और पुल तबाह हो गए थे। ऐसे में 7 सितंबर को नौगांव में घटित ताजा आपदा एक बार फिर आपदा प्रबंधन की तैयारियों पर सवाल खड़े करती है।
राहत और बचाव कार्य जारी
उत्तरकाशी जिला प्रशासन ने तुरंत राहत कार्य शुरू कर दिया है। एसडीआरएफ, फायर ब्रिगेड और स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंच चुकी है। मलबा हटाने के लिए भारी मशीनरी लगाई गई है, और पानी के बहाव को रोकने के लिए बांध बनाए जा रहे हैं।
प्रशासन ने नागरिकों से अपील की है कि वे ऊंचे और सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं और अफवाहों से बचें।