
उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित हरकी पैड़ी पर गुरुवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ‘नदी उत्सव’ कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने मां गंगा की पूजा-अर्चना कर राष्ट्र और समाज की सुख-समृद्धि की कामना की। धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत इस कार्यक्रम में हजारों श्रद्धालु और स्थानीय नागरिकों ने भाग लिया।
मुख्यमंत्री धामी ने इस कार्यक्रम को न केवल एक धार्मिक आयोजन, बल्कि प्रकृति, संस्कृति और जनमानस के गहरे संबंध का उत्सव बताया। उन्होंने कहा कि गंगा केवल एक नदी नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर और जीवन रेखा है। ‘नदी उत्सव’ का उद्देश्य नदियों के संरक्षण, स्वच्छता और उनके प्रति जन-जागरूकता को बढ़ावा देना है।
“आज का दिन मेरे लिए विशेष है”: मुख्यमंत्री धामी
अपने संबोधन के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भावुक होते नजर आए। उन्होंने कहा, “आज का दिन मेरे लिए अत्यंत विशेष है। ठीक चार वर्ष पूर्व, मेरी पार्टी ने मुझे उत्तराखंड राज्य का मुख्य सेवक नियुक्त किया था। तब से अब तक का यह सफर अनेक चुनौतियों और अवसरों से भरा रहा है।”
धामी ने बताया कि इन चार वर्षों में राज्य ने कई विपरीत परिस्थितियों का सामना किया — चाहे वह प्राकृतिक आपदाएं हों, वैश्विक महामारी का दौर या सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ। लेकिन हर कठिनाई को राज्य सरकार ने टीमवर्क, समर्पण और जन सहयोग से अवसर में बदला।
‘सबका साथ, सबका विकास’ के मंत्र से आगे बढ़ रहा उत्तराखंड
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए मंत्र — “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास” — को उत्तराखंड सरकार ने अपने शासन का मूल आधार बनाया है। उन्होंने कहा, “हमने इसी भावना को आत्मसात करते हुए राज्य के स्वाभिमान को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का प्रयास किया है। चाहे बात हो रोजगार के अवसरों की, इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की या पर्यावरण संरक्षण की — हर दिशा में हमने ठोस कदम उठाए हैं।”
गंगा संरक्षण पर विशेष बल
‘नदी उत्सव’ के माध्यम से गंगा नदी के संरक्षण का संदेश भी दिया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि मां गंगा केवल धार्मिक आस्था की प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वह करोड़ों लोगों की जीविका और आस्था का केंद्र हैं। “गंगा की निर्मलता और अविरलता को बनाए रखना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है,”।
राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे गंगा स्वच्छता अभियान, नदी पुनर्जीवन योजनाएं और हरिद्वार समेत विभिन्न नगरों में जल प्रदूषण नियंत्रण परियोजनाओं का भी उन्होंने उल्लेख किया। साथ ही, उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे प्लास्टिक का उपयोग बंद करें, नदी किनारों को साफ रखें और जल स्रोतों के संरक्षण में भागीदार बनें।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को पुनर्स्थापित करने की दिशा में प्रयास
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड न केवल देवभूमि है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा का भी केंद्र है। हरिद्वार, ऋषिकेश, केदारनाथ, बद्रीनाथ जैसे स्थान न केवल तीर्थ हैं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना के केंद्र भी हैं।
“नदी उत्सव जैसे आयोजन इन स्थलों के महत्व को पुनः स्थापित करने का एक प्रयास हैं। हम चाहते हैं कि उत्तराखंड आने वाला हर यात्री न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करे, बल्कि पर्यावरण और संस्कृति के प्रति जागरूक होकर जाए,” मुख्यमंत्री ने कहा।
भविष्य की योजनाएं और जन-सहभागिता
कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार आने वाले समय में नदियों के किनारे जैव विविधता पार्क, जल शिक्षण केंद्र और नदी घाटों का पुनर्निर्माण जैसे प्रोजेक्ट्स पर कार्य करेगी। सरकार का उद्देश्य नदियों को केवल धार्मिक महत्व तक सीमित न रखते हुए, उन्हें शिक्षा, पर्यटन और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम के रूप में विकसित करना है।
मुख्यमंत्री ने कहा, “हमारे लिए विकास का अर्थ केवल सड़क, पुल और इमारतें नहीं है। वास्तविक विकास तब होता है जब समाज के अंतिम व्यक्ति तक उसका लाभ पहुंचे, जब प्रकृति और संस्कृति दोनों के संरक्षण के साथ विकास आगे बढ़े।”