भारत सरकार एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन करने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाने जा रही है। मंगलवार, 17 दिसंबर को लोकसभा में इस संबंध में एक विधेयक पेश किया जा सकता है, जिसे “संविधान (129वें) संशोधन विधेयक” कहा जा रहा है। इस विधेयक के माध्यम से लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करने की योजना को साकार करने की कोशिश की जाएगी।
संविधान में प्रस्तावित संशोधन: एक साथ चुनाव कराने की दिशा में पहला कदम
संविधान संशोधन विधेयक में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए कई अहम प्रावधान शामिल हैं। इस विधेयक के तहत संविधान में एक नया अनुच्छेद 82A जोड़ा जाएगा, और साथ ही अनुच्छेद 83, 172, और 327 में संशोधन किया जाएगा। इन संशोधनों का मुख्य उद्देश्य यह है कि देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराया जा सके।
विधेयक में एक विशेष प्रावधान यह भी है कि यदि किसी राज्य की विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ नहीं कराए जा सकते, तो उस राज्य के चुनाव बाद में कराए जा सकते हैं। इसका मतलब यह है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग भी हो सकते हैं।
क्या है नया प्रावधान?
संविधान संशोधन विधेयक के अंतर्गत, यदि चुनाव आयोग यह मानता है कि किसी राज्य की विधानसभा का चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ नहीं कराया जा सकता, तो वह राष्ट्रपति से इसकी सिफारिश कर सकता है कि उस राज्य के विधानसभा चुनाव को बाद में कराए जाएं। यह सिफारिश राष्ट्रपति के पास जाएगी, जो इसे आदेश के रूप में लागू कर सकते हैं।
विधेयक की धारा 2 उपधारा 5 में कहा गया है, “यदि चुनाव आयोग की राय है कि किसी विधानसभा के चुनाव, लोकसभा के चुनाव के साथ नहीं कराए जा सकते, तो वह राष्ट्रपति से इसकी घोषणा करने की सिफारिश कर सकता है कि उस विधानसभा के चुनाव बाद में कराए जा सकते हैं।”
इसका तात्पर्य यह है कि संविधान संशोधन में कुछ लचीलापन रखा गया है, ताकि कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में राज्य के चुनाव अलग-अलग कराए जा सकें।
संविधान में किए जाने वाले संशोधन
संविधान (129वें) संशोधन विधेयक के तहत, एक नया अनुच्छेद 82A जोड़ा जाएगा, जो लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रावधान करेगा। इसके अलावा, तीन अन्य अनुच्छेदों में संशोधन किया जाएगा:
- अनुच्छेद 83: इस अनुच्छेद में संसद के दोनों सदनों के कार्यकाल का निर्धारण किया गया है। संशोधन के बाद लोकसभा के कार्यकाल की अवधि की शुरुआत उस “नियति तिथि” से होगी, जो राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित की जाएगी।
- अनुच्छेद 172: इस अनुच्छेद के तहत राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल की अवधि का निर्धारण होता है। इस संशोधन के बाद, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल एक ही समय में समाप्त होगा, ताकि अगले चुनाव एक साथ कराए जा सकें।
- अनुच्छेद 327: यह अनुच्छेद संसद को यह अधिकार देता है कि वह विधानसभाओं के चुनावों के संबंध में प्रावधान कर सके। संशोधन के बाद संसद को इस विषय में और अधिक अधिकार मिल जाएंगे।
नियत तिथि का महत्व
संविधान संशोधन विधेयक के अनुसार, यदि यह विधेयक पास हो जाता है, तो आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख को राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना के रूप में जारी किया जाएगा। यह तिथि “नियत तिथि” कहलाएगी। नियत तिथि के बाद लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्षों तक रहेगा। इस तिथि के बाद, और लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व, राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा, जिससे राज्य और राष्ट्रीय चुनाव एक साथ कराए जा सकेंगे।
अतीत में एक साथ चुनाव
भारत में आजादी के बाद कुछ वर्षों तक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। 1951, 1957, 1962, और 1967 के आम चुनावों के साथ ही राज्य विधानसभाओं के चुनाव भी हुए थे। इसके बाद, चुनावों को अलग-अलग कराने की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन अब फिर से एक साथ चुनाव कराने की दिशा में विचार किया जा रहा है।
इस मुद्दे पर लंबे समय से चर्चा चल रही थी, और अब सरकार ने इसे लागू करने की गंभीरता से योजना बनाई है। एक साथ चुनाव कराने के कई फायदे माने जा रहे हैं, जैसे चुनावी खर्चों में कमी, चुनावी प्रक्रिया की प्रभावशीलता में वृद्धि, और सरकार की स्थिरता सुनिश्चित करना।
एक साथ चुनाव कराने के फायदे
एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में कई तर्क दिए जा रहे हैं। सबसे प्रमुख तर्क यह है कि इससे चुनावों में होने वाला खर्च कम होगा। वर्तमान में अलग-अलग चुनावों के कारण हर बार भारी-भरकम खर्च आता है, जबकि एक साथ चुनाव होने से चुनावी खर्चों में कमी आएगी।
इसके अलावा, एक साथ चुनाव कराने से चुनावी प्रक्रिया में भी तेजी आएगी, जिससे सरकार की कार्यवाही में कोई रुकावट नहीं आएगी। चुनावों के समय सरकारी संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा चुनावी कामों में लगा रहता है, लेकिन एक साथ चुनाव होने से संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा।
स्थिर सरकार की दृष्टि से भी एक साथ चुनाव महत्वपूर्ण हो सकते हैं, क्योंकि इससे सरकार के कार्यकाल को पूरी तरह से पूरा करने का अवसर मिलेगा, और बीच में चुनावों की वजह से कोई बाधा नहीं आएगी।
चुनौतियां और आलोचनाएं
हालांकि एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव पर कई लाभार्थी तर्क दिए जा रहे हैं, लेकिन आलोचनाएं भी हो रही हैं। आलोचकों का कहना है कि यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पक्ष में जा सकता है, जबकि राज्य सरकारों के लिए यह एक चुनौती हो सकती है। अलग-अलग राज्यों की चुनावी परिस्थितियां और राज्य सरकारों की कार्यशैली में भिन्नताएं हैं, जो एक साथ चुनाव कराने में मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।
इसके अलावा, चुनाव आयोग और सरकारी तंत्र को भी इस व्यवस्था को सुचारू रूप से लागू करने के लिए नई तैयारी करनी पड़ेगी, जो कि एक बड़ी चुनौती हो सकती है।