दिल्ली में किसान आंदोलन 2.0 ने 305वें दिन भी अपना दम नहीं खोया है। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर के अनुसार, आंदोलन पहले से अधिक प्रबल हो गया है और किसानों की विभिन्न मांगों को लेकर यह विरोध प्रदर्शन अब भी जारी है। सात दिनों से जारी आमरण अनशन के बावजूद सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस प्रस्ताव सामने नहीं आया है। यह स्थिति किसानों के बीच गहरी निराशा और आक्रोश को जन्म दे रही है।
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा, “हमने सरकार से लगातार बातचीत की कोशिशें की हैं, लेकिन उनकी ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई। आज सात दिन हो गए हैं, हम आमरण अनशन पर हैं, लेकिन सरकार ने हमें कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया है। सरकार के मंत्री गैर-जिम्मेदाराना बयान दे रहे हैं, और यह दिखाता है कि सरकार किसानों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रही है।”
आंदोलन की व्यापकता और शंभू बॉर्डर पर भारी संख्या में किसान
शंभू बॉर्डर, जो कि दिल्ली और हरियाणा की सीमा पर स्थित है, अब किसानों के प्रदर्शन का मुख्य केंद्र बन चुका है। यहां किसानों की एक बड़ी संख्या एकत्र हुई है और उन्होंने अपनी आवाज को और अधिक जोरदार तरीके से उठाने का संकल्प लिया है। ड्रोन से ली गई तस्वीरों में बॉर्डर पर किसानों की भीड़ और उनके उत्साही प्रदर्शन को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
आंदोलन का यह रूप दर्शाता है कि किसानों का गुस्सा अब शांति से नहीं बल्कि संघर्षपूर्ण तरीके से व्यक्त किया जा रहा है। किसान संगठनों की तरफ से दावा किया गया है कि उनके आंदोलन को किसी भी तरह से शांत नहीं किया जा सकता जब तक सरकार उनकी मुख्य मांगों को पूरा नहीं करती।
किसानों की प्रमुख मांगें और उनके दावे
किसानों के सामने जिन प्रमुख मुद्दों ने संघर्ष को और तेज किया है, उनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, कर्जमाफी, बिजली दरों में कटौती, और अन्य लंबित मुद्दों पर तत्काल कार्यवाही शामिल हैं।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी: किसानों का कहना है कि उनकी फसलों को उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिलना चाहिए। पिछले वर्षों में उनकी फसलों के लिए MSP की गलत दरें तय की गईं, जिससे वे भारी घाटे में रहे। सरकार से यह वादा किया गया था कि MSP की गारंटी दी जाएगी, लेकिन अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
- बिजली दरों में कटौती: किसानों के लिए बिजली की दरें लगातार बढ़ रही हैं, और इससे उनकी लागत में वृद्धि हो रही है। वे मांग कर रहे हैं कि बिजली की दरों में कटौती की जाए और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
- कर्ज माफी: किसान लगातार बढ़ते कर्ज के कारण परेशानी का सामना कर रहे हैं। उनके कर्ज की वसूली बहुत ही उच्च दरों पर हो रही है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति लगातार खराब हो रही है। उन्होंने कर्जमाफी की मांग की है ताकि वे अपने आर्थिक संकट से बाहर निकल सकें।
- अन्य लंबित मुद्दे: इसके अलावा, किसानों का कहना है कि फसल बीमा, राहत पैकेज और खेतों के लिए बेहतर सुविधाएं जैसे कई अन्य मुद्दों पर सरकार से कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर की चिंता
सरवन सिंह पंधेर ने कहा, “सरकार ने हमसे जो वादे किए थे, वे सब खोखले साबित हुए हैं। सरकार को लगता है कि हमारी आवाज को दबाया जा सकता है, लेकिन हम अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहेंगे। इस आंदोलन को खारिज करना अब नामुमकिन हो चुका है, और जब तक हमारी सभी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक यह विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा।”
उन्होंने यह भी कहा, “हमने सरकार से संवाद करने की हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन उनकी तरफ से कोई ठोस पहल नहीं हुई। इससे साफ है कि सरकार को किसानों की समस्याओं के प्रति कोई गंभीरता नहीं है। जब तक वे हमारी मांगों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती, हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे।”
शंभू बॉर्डर पर बढ़ती भीड़ और सरकार की स्थिति
शंभू बॉर्डर पर हर दिन किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। आंदोलनकारी किसानों का कहना है कि वे संघर्ष करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, और जब तक उनकी समस्याओं का समाधान नहीं होता, वे वहां से नहीं हटेंगे।
किसान संगठनों ने यह भी कहा है कि सरकार ने उन्हें जो आश्वासन दिए थे, वे अब तक सिर्फ कागजों तक सीमित हैं और वास्तविकता में उनका कोई असर नहीं हुआ। अब किसान नेता और प्रदर्शनकारी किसी भी स्थिति में समझौता करने को तैयार नहीं हैं।
सरकार की ओर से प्रतिक्रिया
हालांकि सरकार की ओर से कुछ बयान सामने आए हैं, लेकिन किसानों की नाराजगी और बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार को इस मुद्दे पर जल्दी से कड़ी कार्रवाई करनी होगी। कई मंत्रियों ने किसान आंदोलन के मुद्दे पर बयान दिए हैं, लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि सरकार के बयान अब खाली शब्दों के अलावा कुछ नहीं हैं।
सरकार ने पहले किसानों को आश्वासन दिया था कि उनकी मांगों पर ध्यान दिया जाएगा, लेकिन प्रदर्शन बढ़ने के साथ ही सरकार की दृढ़ता और समाधान देने की इच्छा दोनों पर सवाल उठने लगे हैं।
निष्कर्ष
दिल्ली आंदोलन 2.0 के 305वें दिन के विरोध प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि किसानों के मुद्दे अब सिर्फ एक स्थानीय समस्या नहीं रहे, बल्कि राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गए हैं। शंभू बॉर्डर पर बढ़ती भीड़ और लगातार आमरण अनशन यह संकेत दे रहे हैं कि सरकार को जल्द ही किसानों की प्रमुख मांगों पर विचार करना होगा।
किसानों का आंदोलन अब जोर पकड़ता जा रहा है, और यह सवाल उठता है कि क्या सरकार किसान आंदोलनों के समाधान के लिए समय रहते किसी ठोस कदम को उठाएगी, या यह संघर्ष और भी लंबा खिंचेगा?