
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने नशा तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ एक समन्वित कार्रवाई करते हुए पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और महाराष्ट्र सहित छह राज्यों में 15 से अधिक ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। यह कार्रवाई 24 घंटे तक चली और इसमें ईडी को कई अहम दस्तावेज, डिजिटल उपकरण और गैरकानूनी लेनदेन के सबूत हाथ लगे हैं।
ईडी की यह छापेमारी धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत की गई है। इस अभियान के केंद्र में पंजाब में चल रही मेडिकल नशा तस्करी है, जिसमें कई नामचीन फार्मास्युटिकल कंपनियों की संदिग्ध भूमिका सामने आई है। इन कंपनियों में बॉयोजेनेटिक ड्रग्स प्राइवेट लिमिटेड, सीबी हेल्थकेयर, स्मिलैक्स फार्माकेम ड्रग इंडस्ट्रीज, सोल हेल्थ केयर (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड और एस्टर फार्मा जैसी कंपनियां शामिल हैं।
जांच की पृष्ठभूमि
इस कार्रवाई की नींव पिछले साल पंजाब पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) द्वारा एनडीपीएस एक्ट (NDPS Act) के तहत दर्ज की गई एक एफआईआर के बाद रखी गई थी। इस मामले में दो नशा तस्करों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। छानबीन के दौरान एक कथित बिचौलिए एलेक्स पालीवाल का नाम भी सामने आया, जो इन कंपनियों और नशा तस्करों के बीच की कड़ी बताया जा रहा है।
एलेक्स पालीवाल की भूमिका की जांच के बाद ईडी ने जब जांच का दायरा बढ़ाया, तो देशभर में फैले फार्मा नेटवर्क का पता चला, जिसके जरिए बड़े पैमाने पर नशीली दवाओं का उत्पादन और वितरण हो रहा था। इसके पीछे एक संगठित गिरोह के होने की भी आशंका जताई जा रही है।
छापेमारी के दौरान बरामद सबूत
ईडी अधिकारियों के मुताबिक, छापेमारी के दौरान कई लैपटॉप, मोबाइल फोन, पेन ड्राइव और अन्य डिजिटल उपकरण जब्त किए गए हैं, जिन्हें अब फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है। अधिकारियों को शक है कि कई उपकरणों से डाटा जानबूझकर डिलीट किया गया है, जिसे अब विशेषज्ञों की मदद से रिकवर किया जाएगा।
विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश के झाड़माजरी और नालागढ़ स्थित तीन फार्मा इकाइयों में गहन जांच की गई, जहां से ईडी को महत्वपूर्ण दस्तावेज, बिना बिल के बिक्री का रिकॉर्ड और नशीली दवाओं का भंडारण मिला है। जांच एजेंसियों ने इन इकाइयों को संदिग्ध गतिविधियों का केंद्र बताया है।
मनी ट्रेल और नशीली दवाएं
ईडी के मुताबिक, छापेमारी के दौरान मिले दस्तावेजों में 70.42 लाख नशीली दवाओं की गोलियों और 725 किलोग्राम ट्रामाडोल पाउडर की खरीद और बिक्री का रिकार्ड मिला है। इस पूरे मामले में पैसों के लेनदेन का ट्रेल जांच एजेंसी को मिला है, जिससे यह साफ होता है कि यह एक बड़े पैमाने पर किया गया संगठित अपराध था।
ईडी को शक है कि इन दवाओं का प्रयोग नशे के तौर पर किया जा रहा था, जो NDPS एक्ट के तहत एक गंभीर अपराध है। कई रिकॉर्ड ऐसे भी मिले हैं जिनमें बड़ी मात्रा में दवाएं बिना बिल के बेची गई हैं, यानी उन्हें कागज़ी तौर पर दर्ज ही नहीं किया गया। इससे टैक्स चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग की संभावना और भी मजबूत हो गई है।
फार्मा कंपनियों की संदिग्ध भूमिका
स्मिलैक्स फार्माकेम ड्रग इंडस्ट्रीज, सोल हेल्थ केयर, और अन्य कंपनियों के परिसर से दवाओं के उत्पादन और कच्चे माल के उपयोग से संबंधित दस्तावेज जब्त किए गए हैं। इन दस्तावेजों में कई खामियां पाई गई हैं – जैसे उत्पादन की मात्रा और बिक्री में बड़ा अंतर, स्टॉक का ग़ायब होना और सप्लाई चैन का स्पष्ट विवरण न होना।
ईडी अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या इन कंपनियों ने जानबूझकर इन दवाओं को नशा तस्करों तक पहुंचाया या वे किसी धोखाधड़ी का शिकार बनीं। हालांकि, प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट संकेत मिला है कि कंपनियों के उच्च अधिकारियों को इन लेनदेन की जानकारी थी।
अगला कदम
ईडी के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि अब इस मामले में सभी डिजिटल सबूतों की फोरेंसिक जांच की जाएगी। डिलीट किए गए डाटा की रिकवरी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। जिन अधिकारियों, कर्मचारियों और एजेंट्स के नाम सामने आए हैं, उन्हें जल्द समन भेजे जाएंगे।
इस पूरे मामले की रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी सौंपी गई है। साथ ही, यह भी संकेत मिले हैं कि इंटरनेशनल ड्रग नेटवर्क के तार इस पूरे मामले से जुड़े हो सकते हैं। अगर यह साबित होता है, तो यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से भी बेहद गंभीर हो जाएगा।