उत्तराखंड के वन विभाग ने आगामी वनाग्नि सत्र से पहले प्रदेश में सात नई पिरुल ब्रिकेट्स यूनिट स्थापित करने की योजना बनाई है। इस पहल से वनाग्नि रोकथाम में मदद मिलेगी, क्योंकि पिरुल (चिरपिन) के एकत्रीकरण के जरिए इस समस्या को प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर वन विभाग ने इस कार्य को प्राथमिकता दी है और इसके लिए एक पांच साल की योजना तैयार कर केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजी है।
वनाग्नि की समस्या उत्तराखंड के जंगलों में एक सालाना चुनौती बन चुकी है, जिसका मुख्य कारण चीड़ (पाइन) के जंगलों में पिरुल का अत्यधिक मात्रा में एकत्र होना है। पिरुल जो पाइन के पेड़ से गिरने वाले सूखे पत्ते और शाखाएं होती हैं, वनाग्नि के लिए सबसे बड़ा कारण मानी जाती हैं। यह अत्यधिक सूखा और ज्वाला फैलाने वाली सामग्री है, जो जंगल में आग को फैलने में मदद करती है। इस समस्या को सुलझाने के लिए वन विभाग ने पिरुल को एकत्रित करके इसका उपयोग ब्रिकेट्स और पैलेट्स बनाने में करने का निर्णय लिया है। इससे न केवल वनाग्नि के खतरे को कम किया जाएगा बल्कि इससे पर्यावरणीय दृष्टि से भी कई लाभ होंगे। साथ ही, इस प्रक्रिया से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।
अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा के अनुसार पिरुल एकत्रित करने से वनाग्नि रोकथाम में प्रभावी कमी आती है। वर्तमान में प्रदेश में ब्रिकेट्स यूनिट की संख्या 5 है जिसे अब बढ़ाकर 12 किया जाएगा। मुख्यमंत्री के निर्देश पर सात नई यूनिट अल्मोड़ा, चम्पावत, गढ़वाल और नरेंद्र नगर वन प्रभागों में स्थापित की जाएंगी। ये यूनिट मुख्य रूप से पिरुल के संग्रहण, प्रोसेसिंग और ब्रिकेट्स बनाने के काम में मदद करेंगे। इससे न केवल वनाग्नि में कमी आएगी, बल्कि इन क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न होंगे। निशांत वर्मा ने कहा “हमारा उद्देश्य सिर्फ वनाग्नि को रोकना नहीं है, बल्कि इसके साथ ही हम पिरुल का सही तरीके से उपयोग करके स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार सृजन भी करना चाहते हैं। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा,”।
वन विभाग द्वारा पिरुल एकत्रण के लिए स्वयं सहायता समूहों (SHGs) की मदद ली जा रही है। विभाग ने इन समूहों को प्रति कुंतल तीन रुपये की दर से भुगतान करने का प्रावधान किया है, जो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की घोषणा के तहत जल्द ही बढ़ने वाला है। पिछले वर्ष स्वयं सहायता समूहों के जरिए 38,299.48 कुंतल पिरुल एकत्रित किया गया था जिसके बदले इन समूहों को 1.13 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया गया। स्वयं सहायता समूहों का यह सहयोग न केवल वनाग्नि रोकथाम में सहायक है, बल्कि यह महिलाओं और ग्रामीण समुदायों के लिए आर्थिक सहायता का भी स्रोत बनता है। पिरुल के एकत्रण से इन समूहों को अतिरिक्त आय का एक स्थिर साधन प्राप्त हो रहा है, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हो रहा है।
वन विभाग ने वनाग्नि रोकथाम के लिए एक व्यापक कार्ययोजना तैयार की है, जिसे केंद्र सरकार के पास भेजा गया है। यह योजना अगले पांच वर्षों के लिए है और इसका उद्देश्य राज्य में वनाग्नि को पूरी तरह से नियंत्रित करना है।
इस योजना में पिरुल के संग्रहण के साथ-साथ आग बुझाने के लिए उच्च तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल, वन क्षेत्रों में जागरूकता अभियानों का आयोजन और आग की घटनाओं के समय त्वरित प्रतिक्रिया के उपाय भी शामिल हैं। इसके अलावा, वन विभाग ने यह भी सुनिश्चित किया है कि सभी वन प्रभागों में आग बुझाने के लिए आवश्यक संसाधन और बुनियादी ढांचा मौजूद हो। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पर कहा, “वनाग्नि रोकथाम के लिए विभागों को समय से तैयारी करने को कहा गया है। प्रदेश में सात नई ब्रेकेटस यूनिट बनने से न केवल वनाग्नि में कमी आएगी, बल्कि इससे ग्रामीणों को रोजगार भी मिलेगा। इसके साथ ही, भारत सरकार के पास पांच साल की कार्ययोजना भेजी गई है, जिससे हम राज्य में वनाग्नि की समस्या को पूरी तरह से नियंत्रित कर सकेंगे।”
वनाग्नि के खतरे को नियंत्रण में रखने के लिए वन विभाग कई और कदम उठाने की योजना बना रहा है। इनमें जंगलों में अधिक से अधिक पानी के स्रोतों का निर्माण, वन क्षेत्रों में गश्त को बढ़ाना, और ग्रामीण समुदायों को आग से बचाव के उपायों के बारे में जागरूक करना शामिल है।
वन विभाग के अधिकारी यह भी सुनिश्चित करेंगे कि वन क्षेत्रों में आग बुझाने के लिए प्रशिक्षित टीमों का गठन किया जाए और सभी वन प्रभागों में आग बुझाने की टैक्नोलॉजी को अपनाया जाए। इसके साथ ही पिरुल एकत्रण के लिए अतिरिक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे ताकि अधिक से अधिक लोग इस कार्य में जुड़ सकें और इसका लाभ उठा सकें।