
हरियाणा और पंजाब के बीच स्थित शंभू बॉर्डर और पंजाब के अन्य प्रमुख हाईवे को फिर से खोलने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका में किसानों के आंदोलन के कारण लंबे समय से बंद रास्तों को खोलने की मांग की गई है जिससे आम नागरिकों की आवागमन की स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्य कांत अध्यक्षता करेंगे, 9 दिसंबर, 2024 को सुनवाई करेगी।
किसानों का आंदोलन और बंद हाईवे
याचिकाकर्ता, पंजाब के जालंधर निवासी गौरव लूथरा ने अपनी याचिका में यह आरोप लगाया है कि किसानों के आंदोलन के कारण शंभू बॉर्डर, जो हरियाणा और पंजाब के बीच प्रमुख सीमा मार्ग है, पिछले कई महीनों से बंद पड़ा है। इसके अतिरिक्त, किसान यूनियनों ने पंजाब के अन्य हाईवे भी बंद कर दिए हैं, जिससे न सिर्फ यात्रा में बाधा उत्पन्न हो रही है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन हो रहा है।
गौरव लूथरा ने अपनी याचिका में कहा कि यह कार्य भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) एक्ट के तहत अपराध है। उन्होंने यह भी बताया कि न तो पुलिस प्रशासन और न ही NHAI इस अवैध कार्य पर कोई कार्रवाई कर रहा है। लूथरा के अनुसार, संविधान के तहत नागरिकों को “राइट टू मूवमेंट” (आवागमन का अधिकार) दिया गया है, जो मौलिक अधिकार का हिस्सा है। लेकिन किसानों के आंदोलन के कारण यह अधिकार पंजाब की बड़ी आबादी से छीन लिया गया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से यह आग्रह किया कि केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया जाए कि सभी सड़क मार्गों को फिर से खोलने के लिए कार्रवाई की जाए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उच्चस्तरीय समिति का गठन
इससे पहले 2 सितंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर एक अन्य याचिका की सुनवाई के दौरान पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस नवाब सिंह के नेतृत्व में एक पांच सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। इस समिति का उद्देश्य किसान संगठनों से बातचीत करना और MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) समेत अन्य मुद्दों पर सहमति बनाने के लिए पहल करना था। सुप्रीम कोर्ट ने इस समिति को किसानों के साथ बैठक करने के निर्देश दिए थे और यह भी कहा था कि वह किसानों से बातचीत के दौरान कोई भी “राजनीतिकरण” से बचें और आंदोलन के उद्देश्य को स्पष्ट रखें।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने समिति को यह जिम्मेदारी दी थी कि वह किसानों से बैरिकेडिंग हटाने के लिए भी बातचीत करें, ताकि रास्ते खोलने की प्रक्रिया शुरू की जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा था कि किसानों को अपनी मांगों में अनुचित रूप से वृद्धि नहीं करनी चाहिए और आंदोलन को सही दिशा में चलाना चाहिए।
किसानों का दिल्ली चलो मार्च स्थगित
पंजाब-हरियाणा सीमा पर प्रदर्शनकारी किसानों और हरियाणा पुलिस के बीच हुई झड़पों के बाद किसानों ने अपना “दिल्ली चलो मार्च” स्थगित कर दिया। 8 दिसंबर, 2024 को हुए इस संघर्ष में कई किसान घायल हो गए। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि इस संघर्ष में कम से कम आठ प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं, जिनमें से एक को गंभीर चोटें आईं हैं। उसे तत्काल इलाज के लिए चंडीगढ़ स्थित पोस्ट-ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) में भर्ती किया गया है।
किसानों का यह मार्च दिल्ली की ओर बढ़ने वाला था, लेकिन इस संघर्ष के कारण इसे अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया गया। यह घटना पंजाब और हरियाणा के सीमा पर चल रहे आंदोलन की ताजातरीन घटना को उजागर करती है, जो अब तक कई महीनों से जारी है। इस हिंसक झड़प ने राज्य की स्थिति को और भी जटिल बना दिया है, और अब यह देखने की बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति और सरकार की कोशिशों से किस तरह से स्थिति में सुधार होता है।
याचिका में क्या कहा गया है?
गौरव लूथरा ने अपनी याचिका में उल्लेख किया कि किसानों के आंदोलन के चलते सड़क मार्गों पर लगे प्रतिबंधों का प्रभाव केवल व्यापार और परिवहन पर ही नहीं बल्कि आम नागरिकों की रोजमर्रा की ज़िंदगी पर भी पड़ा है। इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह अनुरोध किया गया है कि वह इस मुद्दे में हस्तक्षेप करे और केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देशित करें कि सभी प्रमुख हाईवे और सीमा मार्गों को फिर से खोला जाए। इसके अलावा लूथरा ने यह भी दावा किया कि पुलिस और NHAI द्वारा इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई न किए जाने के कारण यह समस्याएँ और जटिल हो गई हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा कि वह इस मामले की सुनवाई जल्द से जल्द करें, ताकि आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सके।
अगले कदम
अब यह सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर करेगा कि वह इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को क्या निर्देश देते हैं। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह भी देखने योग्य होगा कि पंजाब और हरियाणा में जारी किसान आंदोलन के प्रभाव को किस प्रकार कम किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यह निर्देश दिया था कि किसानों को अपनी मांगों को उचित रूप से प्रस्तुत करना चाहिए और आंदोलन के दौरान किसी भी तरह की हिंसा से बचना चाहिए। वहीं, सरकार के लिए भी यह चुनौती है कि वह इस विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करे और रास्ते खोलने के लिए किसानों से समझौता कर सके।