
भारतीय किसान अब पारंपरिक फसलों की सीमाओं से आगे निकलकर उन पौधों की ओर बढ़ रहे हैं, जो न केवल सौंदर्य प्रदान करते हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी लाभदायक हैं। ऐसा ही एक पौधा है बॉटल ब्रश (वैज्ञानिक नाम: Callistemon), जिसकी खेती अब वैज्ञानिक शोध के तहत व्यावसायिक रूप से करने की तैयारी चल रही है। उत्तराखंड के सेलाकुई स्थित सगंध पौध केंद्र में पहली बार इस सजावटी पौधे के कृषिकरण पर शोध किया जा रहा है, जिससे किसानों को दोहरा मुनाफा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
सजावटी से औषधीय उपयोग तक
सड़क किनारे, पार्कों, बाग-बग़ीचों या घरों के बाहर दिखने वाला यह फूलदार पौधा अपने अनोखे ब्रश जैसे फूलों के लिए जाना जाता है। बॉटल ब्रश का रंगीन रूप भले ही आम लोगों को सिर्फ सजावट का माध्यम लगे, लेकिन इसके पीछे एक बड़ी वैज्ञानिक और आर्थिक संभावना छिपी हुई है।
सगंध पौध केंद्र के वैज्ञानिकों के अनुसार, बॉटल ब्रश की पत्तियों से उच्च गुणवत्ता वाला आवश्यक तेल (Essential Oil) निकाला जा सकता है, जिसका उपयोग दवाओं, इत्र, और कॉस्मेटिक उत्पादों में होता है। वहीं इसके फूलों से मधुमक्खियाँ सालभर शहद उत्पादन कर सकती हैं। यानी एक ही पौधे से किसान तेल और शहद जैसे दो महत्वपूर्ण उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं।
एक हेक्टेयर से 2.10 लाख रुपये की संभावित आय
प्रारंभिक आंकड़ों और शोध निष्कर्षों के अनुसार, यदि किसान एक हेक्टेयर भूमि पर बॉटल ब्रश की खेती करते हैं, तो उन्हें सालाना लगभग 2.10 लाख रुपये तक की आय हो सकती है। यह आंकड़ा पारंपरिक लकड़ी या सजावटी पौधों की खेती की तुलना में कहीं अधिक लाभदायक माना जा रहा है।
देश में पहली बार व्यावसायिक कृषिकरण की पहल
अब तक देश में बॉटल ब्रश को केवल सजावटी पौधे के रूप में देखा और उगाया जाता रहा है। इसे पार्कों, गार्डनों और सरकारी भवनों के आसपास लगाया जाता है, लेकिन इसके वैज्ञानिक और आर्थिक उपयोगों पर ध्यान नहीं दिया गया। सगंध पौध केंद्र सेलाकुई अब इस दिशा में पहल कर रहा है और यह देश में पहली बार हो रहा है कि बॉटल ब्रश को व्यावसायिक रूप से खेती योग्य पौधे के रूप में मान्यता देने की तैयारी है।
किसानों को मिलेगा ईको-फ्रेंडली विकल्प
बॉटल ब्रश की एक और विशेषता है कि यह पर्यावरण के अनुकूल (eco-friendly) है और कम जलवायु में भी आसानी से बढ़ता है। यह पौधा कीट और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधक है, जिससे किसानों को कम कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है। इससे उत्पादन लागत घटती है और जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है।
इसके अलावा, जंगलों से सटे क्षेत्रों में रहने वाले किसान जो जंगली जानवरों से परेशान रहते हैं, उनके लिए भी यह पौधा लाभकारी हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, बॉटल ब्रश को जंगली जानवरों द्वारा नुकसान नहीं पहुँचाया जाता है, जिससे किसानों की फसल को सुरक्षा मिलती है।
यूकेलिप्टस और पॉपुलर की जगह बॉटल ब्रश
फिलहाल उत्तर भारत में बड़ी संख्या में किसान यूकेलिप्टस और पॉपुलर जैसे पौधों की खेती करते हैं, लेकिन इनके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव और पानी की अत्यधिक आवश्यकता के चलते अब इन्हें लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। वहीं, बॉटल ब्रश एक ऐसा विकल्प बनकर उभर रहा है, जो कम पानी में भी पनपता है और पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचाता।
सगंध पौध केंद्र के वैज्ञानिकों का मानना है कि शोध के सकारात्मक परिणाम आने के बाद किसानों को यूकेलिप्टस और पॉपुलर की जगह बॉटल ब्रश उगाने की सलाह दी जाएगी। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि होगी, बल्कि दीर्घकालिक रूप से पर्यावरणीय लाभ भी मिलेंगे।
मधुमक्खी पालन के लिए आदर्श
बॉटल ब्रश के फूल वर्ष भर खिलते हैं, जो मधुमक्खियों के लिए निरंतर पराग और अमृत का स्रोत बनते हैं। इससे शहद उत्पादन में नियमितता आती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि एक हेक्टेयर में बॉटल ब्रश की खेती की जाए और उसके साथ मधुमक्खी पालन किया जाए, तो एक किसान सालाना हजारों लीटर शुद्ध, उच्च गुणवत्ता वाला शहद भी प्राप्त कर सकता है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिल सकती है।
किसानों को मिलेगा प्रशिक्षण
सगंध पौध केंद्र सेलाकुई शोध के बाद किसानों को इस पौधे की खेती के लिए प्रशिक्षण देने की योजना बना रहा है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें बॉटल ब्रश की रोपाई, देखरेख, तेल निष्कर्षण और मधुमक्खी पालन की तकनीकें सिखाई जाएँगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे और कृषि आधारित उद्यमिता को भी बल मिलेगा।