
दिल्ली स्थित भारत मंडपम में रविवार को संस्कृति जागरण महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें देश की प्रमुख आध्यात्मिक हस्तियों और संतों की गरिमामयी उपस्थिति रही। इस आयोजन में विश्व जागृति मिशन के तत्वावधान में सांस्कृतिक एकता, आध्यात्मिक उन्नति और सनातन मूल्यों के पुनर्जागरण का संदेश दिया गया।
कार्यक्रम की विशेष बात यह रही कि मंच पर मौजूद योग गुरु बाबा रामदेव ने भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनावपूर्ण माहौल के बीच एक आश्चर्यजनक और प्रेरक घोषणा की। उन्होंने कहा कि भविष्य में भारत की सनातन संस्कृति का तीसरा गुरुकुल पाकिस्तान के कराची में स्थापित किया जाएगा।
सनातन संस्कृति का उत्सव
इस महोत्सव का उद्देश्य भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं, योग, वेद, उपनिषद, धर्म और समाज के पुनर्जागरण को बल देना था। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुधांशु जी महाराज ने की, जिनका यह जन्मोत्सव भी था। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि देशभर में सनातन संस्कृति को फिर से जागृत करने के लिए गुरुकुलों की स्थापना और धर्म आधारित शिक्षा का पुनः प्रारंभ आवश्यक है।
स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि जब समाज आध्यात्मिक रूप से जागरूक होता है, तभी राष्ट्र का चरित्र मजबूत होता है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण, जल बचाओ अभियान और नशामुक्त समाज जैसे विषयों पर भी ध्यान केंद्रित करने की अपील की।
कराची में गुरुकुल: बाबा रामदेव का बड़ा ऐलान
योग गुरु बाबा रामदेव ने जब मंच से कराची में गुरुकुल खोलने की बात कही, तो संपूर्ण सभा में आश्चर्य और तालियों की गूंज उठी। उन्होंने कहा: “आज सनातन संस्कृति जागरण महोत्सव में सभी धर्म गुरुओं और सनातनी एकत्र हुए हैं। जैसे सुधांशु जी महाराज ने गुरुकुल खोलने की बात कही है, उसी प्रेरणा से मैं कहता हूं कि तीसरा गुरुकुल पाकिस्तान के कराची में खुलेगा। वहां भी सनातन की ज्योति जलेगी, और यह कोई सपना नहीं, एक संकल्प है।”
रामदेव के इस बयान को केवल एक धार्मिक या आध्यात्मिक आशय तक सीमित नहीं माना जा रहा है, बल्कि यह भविष्य की एक वैचारिक पहल के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें सीमाओं से परे संस्कृति की शक्ति को दिखाया गया है।
पाकिस्तान के संदर्भ में संदेश
हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले और भारत-पाकिस्तान के बिगड़ते संबंधों के बीच, कराची में गुरुकुल खोलने की बात गौरतलब और साहसिक है। यह केवल एक सांस्कृतिक विस्तार की बात नहीं है, बल्कि एक प्रकार का शांति और वैचारिक वर्चस्व का संदेश भी है। बाबा रामदेव के इस ऐलान को “दुश्मनी के बीच संस्कृति की विजय” के रूप में देखा जा रहा है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह गुरुकुल किसी धार्मिक प्रचार का केंद्र नहीं होगा, बल्कि वहां योग, आयुर्वेद, वेद और भारतीय ज्ञान प्रणाली की शिक्षा दी जाएगी, जिससे क्षेत्रीय एकता और मानसिक शांति को बढ़ावा मिलेगा।