धान की पराली को आग लगाने की घटनाएं पंजाब और हरियाणा में जारी हैं, लेकिन इस साल पिछले साल की तुलना में इनकी संख्या में कमी आई है। हरियाणा स्पेस एप्लीकेशन सेंटर हिसार के आंकड़ों के अनुसार 21 अक्टूबर तक राज्य में पराली जलाने के 655 मामले दर्ज किए गए हैं। हालाँकि, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की गई जांच में पाया गया कि इनमें से 234 स्थानों पर पराली जलाने की पुष्टि नहीं हुई, जिससे वास्तविक मामलों की संख्या 419 हो गई है। पिछले वर्ष इसी तिथि तक हरियाणा में 689 मामले दर्ज किए गए थे।
सरकार की कार्रवाई और सख्त नियम
हरियाणा की सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है। अब तक 93 FIR दर्ज की जा चुकी हैं, 26 अधिकारियों को निलंबित किया गया है और 386 अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। इसके अलावा, 13 किसानों को गिरफ्तार किया गया था लेकिन उन्हें मुचलके पर रिहा कर दिया गया। 327 मामलों में किसानों पर जुर्माना भी लगाया गया है।
बता दें सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने के मामले में उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाने को लेकर हरियाणा और पंजाब सरकारों को बुधवार को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को 23 अक्टूबर को उसके समक्ष पेश होकर स्पष्टीकरण देने को कहा है।
पराली जलाने के कारण
किसान धान की कटाई के बाद अपने खेतों को साफ करने के लिए पराली जलाते हैं, विशेष रूप से रबी की फसल, गेहूं की बुआई के लिए। कटाई और बुआई के बीच की अवधि बहुत कम होती है, जिससे किसान अन्य विकल्पों के मुकाबले पराली जलाने को प्राथमिकता देते हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस महासचिव कुमारी सैलजा ने सरकार से मांग की है कि पराली के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय किया जाए और किसानों से इसे खरीदा जाए।