
पश्चिम एशिया में चल रहे इज़राइल और ईरान के बीच गहराते सैन्य तनाव के बीच भारत ने ‘ऑपरेशन सिंधु’ के तहत एक अहम और संवेदनशील राहत अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। इस ऑपरेशन के तहत ईरान में फंसे 110 भारतीय छात्रों को सुरक्षित स्वदेश लाया गया, जिनमें से 90 छात्र जम्मू-कश्मीर से संबंधित हैं। यह कदम भारत सरकार द्वारा समय रहते उठाया गया मानवीय और रणनीतिक प्रयास माना जा रहा है, जिसकी व्यापक सराहना हो रही है।
विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि यह ऑपरेशन पूरी तरह भारत सरकार के खर्चे पर चलाया गया और छात्रों को ईरान से आर्मेनिया के ज़्वार्टनोट्स अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे होते हुए दिल्ली लाया गया।
क्या है ‘ऑपरेशन सिंधु’?
‘ऑपरेशन सिंधु’ भारत सरकार की एक विशेष आपातकालीन योजना है, जिसका उद्देश्य ईरान में फंसे भारतीय नागरिकों — विशेषकर छात्रों — को सुरक्षित निकालना है। ऑपरेशन की शुरुआत 17 जून को तब की गई, जब ईरान और इज़राइल के बीच सैन्य तनाव तेजी से बढ़ने लगा और दोनों देशों के बीच हवाई मार्ग और ज़मीनी संपर्क बाधित होने लगे।
विदेश मंत्रालय ने हालात की गंभीरता को भांपते हुए तत्काल एक उच्च स्तरीय आपात दल गठित किया। ईरान में स्थित भारतीय दूतावास के साथ मिलकर एक योजना तैयार की गई, जिसमें छात्रों को पहले सड़क मार्ग से ईरान से आर्मेनिया की सीमा तक पहुंचाया गया, और फिर वहां से विशेष विमान के जरिए भारत लाया गया।
कैसे हुआ छात्रों का रेस्क्यू?
18 जून को भारतीय छात्रों का पहला जत्था आर्मेनिया के राजधानी स्थित ज़्वार्टनोट्स अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से विशेष चार्टर्ड फ्लाइट के जरिए रवाना हुआ। विमान ने 19 जून की सुबह नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लैंड किया। इस समूह में 110 छात्र शामिल थे, जो विभिन्न मेडिकल और टेक्निकल यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ाई कर रहे थे।
रेस्क्यू प्रक्रिया की निगरानी भारत के विदेश मंत्रालय और भारत-ईरान में मौजूद दूतावास ने मिलकर की। छात्रों को सुरक्षित मार्ग दिलाने के लिए ईरान सरकार से उच्चस्तरीय समन्वय किया गया, जो कि इस ऑपरेशन की सबसे जटिल कड़ी रही।
भारत सरकार उठा रही है खर्च
इस राहत मिशन का संपूर्ण खर्च भारत सरकार द्वारा वहन किया गया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंधु मानवीय आधार पर शुरू किया गया है और इसका उद्देश्य संकट में फंसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित घर पहुंचाना है।
प्रवक्ता ने कहा, “भारत सरकार हर भारतीय की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। ईरान में फंसे छात्रों को निकालना हमारी प्राथमिकता है, और इस दिशा में मिशन जारी रहेगा।” अब तक 110 छात्रों को निकाल लिया गया है, जबकि विदेश मंत्रालय के अनुसार करीब 1500 छात्र अभी भी ईरान में मौजूद हैं, जिनमें से कई को सुरक्षित ज़ोन में स्थानांतरित कर दिया गया है।
चुनौतीपूर्ण रहा हवाई क्षेत्र का बंद होना
ईरान-इज़राइल तनाव के चलते सबसे बड़ी चुनौती हवाई क्षेत्र का बंद होना रहा। ईरान ने सैन्य गतिविधियों और सुरक्षा कारणों से अपने कई एयरस्पेस बंद कर दिए थे। इससे भारत सहित अन्य देशों के नागरिकों की वापसी मुश्किल हो गई थी।
भारत ने इस स्थिति में राजनयिक चैनलों के जरिए ईरानी अधिकारियों से अनुरोध किया, ताकि ज़मीन के रास्ते छात्रों को निकाला जा सके। ईरान सरकार ने भारत के इस अनुरोध को गंभीरता से लिया और छात्रों को अज़रबैजान, तुर्कमेनिस्तान और अफगानिस्तान के ज़मीनी रास्तों से निकलने की अनुमति दी।
इस समन्वय के कारण छात्रों को तेहरान से ट्रांसपोर्ट कर सीमाई क्षेत्रों तक पहुंचाया गया, जहां से उन्हें सुरक्षित बाहर लाया गया।
जम्मू-कश्मीर के छात्रों की बड़ी संख्या
इस ऑपरेशन के जरिए जिन 110 छात्रों को भारत लाया गया, उनमें से करीब 90 छात्र जम्मू-कश्मीर से हैं। ये छात्र ईरान की विभिन्न मेडिकल यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ाई कर रहे थे। कश्मीर में इनके परिवारों ने भारत सरकार को लगातार अपनी चिंता से अवगत कराया था।
जैसे ही छात्रों की वापसी की पुष्टि हुई, जम्मू और श्रीनगर में खुशी और राहत का माहौल देखने को मिला। कई अभिभावकों ने सरकार और विशेष रूप से विदेश मंत्री एस. जयशंकर का आभार व्यक्त किया।
ऑपरेशन जारी रहेगा
विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह ऑपरेशन यहीं समाप्त नहीं होगा। सरकार अभी भी ईरान में फंसे बाकी नागरिकों और छात्रों की स्थिति की निरंतर निगरानी कर रही है। राजनयिक प्रयासों के ज़रिए उन्हें भी सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है और जल्द ही उनके लिए अगली उड़ानों की योजना बनाई जा रही है।
“हम अपने प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हैं। जो भी छात्र या नागरिक अभी ईरान में हैं, उन्हें निकालना हमारी प्राथमिकता है,” मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा।