
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के प्रति अपने रुख को और अधिक कड़ा कर लिया है। इस कड़ी में केंद्र सरकार ने पाकिस्तान को जाने वाले नदियों के पानी को रोकने के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार किया है, जिसकी पुष्टि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने शुक्रवार को की। यह रोडमैप केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई एक उच्चस्तरीय बैठक के बाद तैयार किया गया है।
सी.आर. पाटिल ने बताया कि बैठक में तीन स्तरों — अल्पकालिक, मध्यमकालिक और दीर्घकालिक उपायों पर चर्चा की गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि “पाकिस्तान को एक बूंद भी पानी न मिले।” इसके तहत सबसे पहला कदम होगा — नदियों की गाद निकालना, जिससे जल प्रवाह को मोड़ा जा सके और सीमा पार जाने से रोका जा सके।
कठोर रणनीति की ओर बढ़ता भारत
गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसके तहत भारत सतलुज, रावी और ब्यास नदियों का जल उपयोग कर सकता है, जबकि झेलम, चिनाब और सिंधु नदियों का जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया था। लेकिन अब भारत सरकार इस ऐतिहासिक संधि पर पुनर्विचार की दिशा में गंभीरता से आगे बढ़ रही है।
सी.आर. पाटिल ने कहा, “हमारे सामने विकल्प स्पष्ट हैं। पाकिस्तान जब आतंकवाद को बढ़ावा देता है, तो भारत को अपने संसाधनों पर पुनर्विचार करना ही होगा। हम नदियों की गहराई बढ़ाकर, प्रवाह को नियंत्रित कर, और नए संरचनात्मक उपायों द्वारा जल को रोकने की दिशा में काम करेंगे।”
सिंधु जल संधि: जम्मू-कश्मीर के लिए ‘सबसे अन्यायपूर्ण दस्तावेज’
इस घटनाक्रम के बीच, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी सिंधु जल संधि पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि यह संधि “जम्मू और कश्मीर के लोगों के लिए सबसे अन्यायपूर्ण दस्तावेज है।” उन्होंने आरोप लगाया कि इस संधि ने राज्य को उसके जल संसाधनों से वंचित किया और विकास की संभावनाओं को बाधित किया।
उमर अब्दुल्ला ने कहा, “हम कभी इस संधि के पक्ष में नहीं रहे। इसने हमारे संसाधनों को सीमित किया और राज्य के लोगों को पानी के उपयोग के उनके अधिकार से वंचित रखा।”
सीमापार आतंकवाद पर भारत का जवाब: संधि निलंबित करने की तैयारी
भारत सरकार ने साफ संकेत दिए हैं कि पाकिस्तान अगर सीमापार आतंकवाद का समर्थन बंद नहीं करता, तो सिंधु जल संधि को निलंबित किया जा सकता है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हाल ही में एक राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक हुई थी, जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि भारत अब “आंखों में आंखें डालकर जवाब देगा।”
सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में यह प्रस्ताव पास हुआ कि संधि को तब तक निलंबित रखा जाएगा, जब तक पाकिस्तान अपने रवैये में बदलाव नहीं लाता। यह भारत की तरफ से एक बड़ा कूटनीतिक संदेश माना जा रहा है।
जल को राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बनाया जाएगा
गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक के बाद तैयार किए गए रोडमैप में यह तय किया गया कि जल संसाधनों को अब राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में देखा जाएगा। पाटिल ने कहा कि अब नदियों के पानी के बहाव, उनकी संरचनाओं, और संबंधित परियोजनाओं को केवल सिंचाई या बिजली उत्पादन के नजरिए से नहीं, बल्कि रणनीतिक महत्व से देखा जाएगा।
उन्होंने कहा, “हम जल को अब केवल एक प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि सुरक्षा संपत्ति मानकर काम कर रहे हैं। यह केवल भारत-पाकिस्तान का नहीं, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा का विषय भी है।”
गाद निकासी और जल मोड़ने की रणनीति
सबसे पहले उठाया जाने वाला कदम होगा — नदियों से गाद की निकासी (silt removal)। इससे न केवल जलधाराओं की गहराई बढ़ेगी, बल्कि जल प्रवाह को आवश्यकतानुसार मोड़ना भी आसान होगा। सरकार का मानना है कि इससे पाकिस्तान को जाने वाली जलधारा में बड़ी कटौती की जा सकती है, विशेषकर मानसून के दौरान जब अधिक जल प्रवाह होता है।
इस कार्य के लिए राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA), केंद्रीय जल आयोग (CWC) और स्थानीय सिंचाई विभागों को विशेष निर्देश दिए गए हैं।
अन्य राज्यों में कश्मीरी नागरिकों की सुरक्षा का आश्वासन
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस हमले के बाद एक और महत्वपूर्ण चिंता को उठाया — अन्य राज्यों में रह रहे कश्मीरी नागरिकों की सुरक्षा। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस बारे में केंद्रीय गृह मंत्री से चर्चा की और उन्हें आश्वासन मिला कि गृह मंत्रालय एक एडवाइजरी जारी करेगा, और राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी इस विषय पर संपर्क किया गया है।
उन्होंने कहा,”कश्मीरी नागरिक पूरे देश में फैले हैं। हम चाहते हैं कि उन्हें कोई नुकसान न हो। गृह मंत्री ने हमें भरोसा दिलाया है कि उनकी सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे।”