
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले की सैकड़ों ग्रामीण महिलाएं अब अपने परिश्रम और हुनर से न केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि केदारनाथ यात्रा के जरिए प्रदेश के आर्थिक परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। 2 मई से शुरू हुई केदारनाथ यात्रा में जिले की 500 से अधिक महिलाएं महिला स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups – SHGs) के माध्यम से सीधे जुड़कर आजीविका कमा रही हैं।
जिले के अगस्त्यमुनि, जखोली और ऊखीमठ ब्लॉकों में 148 महिला समूह सक्रिय रूप से प्रसाद, धूपबत्ती, सजावटी सामग्री, चौलाई लड्डू, स्थानीय उत्पाद और जलपान गृह जैसी सेवाएं संचालित कर रहे हैं। इस पहल को स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार और सामुदायिक भागीदारी के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें ‘वोकल फॉर लोकल’ को धरातल पर उतारा जा रहा है।
प्रसाद बना रोजगार का साधन
पर्वतीय अंचल के लिए चौलाई (रामदाना) एक पारंपरिक और पोषणयुक्त फसल है। महिला समूहों ने स्थानीय काश्तकारों से चौलाई खरीदकर उससे लड्डू तैयार करने की शुरुआत की है। यह प्रसाद अब केदारनाथ धाम में आने वाले श्रद्धालुओं को न केवल धार्मिक उद्देश्य से दिया जा रहा है, बल्कि यह महिलाओं के लिए स्थायी आय का स्रोत भी बन गया है।
अगस्त्यमुनि ब्लॉक के 38 महिला समूहों की लगभग 90 महिलाएं चौलाई लड्डू की पैकिंग से लेकर मंदिर में चढ़ने वाली सजावटी सामग्री जैसे प्रतीक चिन्ह, फूलमालाएं और पूजा-सामग्री तैयार कर रही हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ समूह रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे पर यात्रियों के लिए जलपान गृह भी चला रही हैं, जहां चाय, नाश्ता और स्थानीय व्यंजन परोसे जाते हैं।
धूपबत्ती और सजावटी सामग्री से सशक्तिकरण की ओर कदम
ऊखीमठ ब्लॉक की 60 महिला स्वयं सहायता समूहों में से 48 समूह सीधे तौर पर प्रसाद निर्माण कार्य में लगे हैं, वहीं 10 समूहों की महिलाएं स्थानीय वन उत्पादों और सुगंधित जड़ी-बूटियों से धूपबत्ती बना रही हैं। यह धूपबत्तियां यात्रियों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय हो रही हैं, क्योंकि यह रासायनिक उत्पादों से मुक्त और पर्यावरण के अनुकूल हैं।
जखोली ब्लॉक में 50 से अधिक महिला समूह सक्रिय हैं, जिनमें से 30 समूह चौलाई के लड्डू बना रहे हैं, 10 समूह धूपबत्ती निर्माण में लगे हैं और शेष 10 समूह पहाड़ी जड़ी-बूटी, शहद, लोक कला से जुड़ी वस्तुएं और कपड़े जैसे उत्पाद बेच रहे हैं।
बदरी गाय का घी बना श्रद्धालुओं की पहली पसंद
चारधाम यात्रा के रास्ते में महिला समूहों द्वारा संचालित स्टालों पर बदरी गाय का देसी घी विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह घी 1200 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है और कई श्रद्धालु इसे खरीद भी चुके हैं। बदरी गाय को उत्तराखंड की दुर्लभ नस्लों में गिना जाता है और इसका घी औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।
इस पहल से न केवल स्थानीय डेयरी उद्योग को प्रोत्साहन मिल रहा है, बल्कि पर्यटन से जुड़ी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नया जीवन मिला है।
सरकारी सहायता और मुख्यमंत्री का समर्थन
मुख्य विकास अधिकारी डॉ. जीएस खाती के अनुसार, “वर्तमान में जिले की 500 से अधिक महिलाएं महिला समूहों से जुड़कर विभिन्न कार्यों में लगी हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। यात्रा से महिलाओं को स्थायी और सम्मानजनक रोजगार प्राप्त हो रहा है।”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा, “चारधाम यात्रा महिला समूहों की आर्थिकी का मजबूत आधार बन रही है। सरकार इन्हें यात्रा मार्ग पर स्टाल उपलब्ध कराने से लेकर विपणन और प्रशिक्षण में हर संभव सहायता दे रही है। यह वोकल फॉर लोकल का वास्तविक उदाहरण है।”
उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील करते हुए कहा कि वे स्थानीय महिला समूहों के उत्पाद खरीदें और ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग करें।