देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र, देहरादून की ओर से आज प्रातःकालीन सत्र में गोस्वामी तुलसीदास कृत विनय पत्रिका के कुमाउनी अनुवाद पुस्तक का लोकार्पण किया गया। इसका कुमाउनी अनुवाद साहित्यकार श्रीमती भारती पाण्डे ने किया है। पुस्तक का प्रकाशन दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र और समय साक्ष्य ने किया है। गोस्वामी तुलसीदास जी की 527 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित आज के कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. सुधारानी पाण्डे ने की। इस अवसर पर सुपरिचित भाषा विज्ञानी और विज्ञान लेखन से सम्बद्ध श्रीमती कमला पंत, खादी ग्रामोद्योग विभाग,उत्तराखण्ड की श्रीमती अल्का पाण्डे भी उपस्थित रहीं। कार्यक्रम के दौरान बीना जोशी,रमा जोशी, कमला पंत और बीना भट्ट नेे विनय पत्रिका के पदों का सुमधुर गायन कर उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। गीत गायन में तबले पर श्री राघव ने साथ दिया।
मंचासीन उपस्थित वक्ताओं ने विनय पत्रिका और इसके कुमाउनी अनुवाद के विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए विस्तार से चर्चा भी की। उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में सुपरिचित पत्रकार व साहित्यकार मृणाल पाण्डे ने अपनी टिप्पणी देते हुए मूल विनय पत्रिका के इस अनुवाद को कुमाउनी साहित्य के लिए महत्वपूर्ण कृति बताया। समाज विज्ञानी प्रो. बी.के. जोशी ने पुस्तक की भूमिका में इस पुस्तक को हिन्दी और कुमाउनी साहित्य के अध्येताओं व शोधार्थियों के लिए उपयोगी बताया है।
कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए कमला पंत ने कहा कि श्रीमती भारती पाण्डे ने अपनी कुमाउंनी बोली में अविकल अनुवाद करने का साहस जुटाया है। अनुवाद की पाण्डुलिपि जब मेरे हाथ में आई तो मुझे भारती के अथक परिश्रम और अटूट लगन का कायल होना पड़ा। विनय-पत्रिका का अपनी दुदबोली कुमांउनी में अनुवाद करने का जो उपक्रम उन्होंने किया है उसे बड़ी सरलता से स्वीकारा भी है कि राम की आज्ञा में भला कौन बाधक हो सकता है। उन्होनें कहा कि श्रीमती पांडे ने विनय पत्रिका जैसी गूढ़, धार्मिक और आध्यात्मिक कृति का कुमांउनी बोली में अनुवाद कर कुमांउनी साहित्य को एक अमूल्य भेंट दी है। आज की सामाजिक स्थितियों में संस्कृति, परम्पराओं और जीवन मूल्यों का जिस तरह ह्रास हो रहा है उस स्थिति में अपनी बोली को सहेजने का यह प्रयास सचमुच वंदनीय और अभिनंदनीय है। उन्होंने अपने वक्तव्य में उत्तराखंड की बोली-भाषा के विषय पर भी प्रकाश डाला।
संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. सुधारानी पाण्डे ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारती पाण्डे द्वारा संत तुलसीदास की विनय पत्रिका का कुमाउनी लोकभाषा में अनुवाद सुंदर सार्थक पहल है. तुलसीदास की चरम साधना की परिणीति ही है विनय पत्रिका. यानी वह राम के चरणों में लोक मंगल की याचिका है. तुलसीदास के रामचरित मानस से जो लोकप्रियता मिली उससे राम जान जान के करुणा वत्सल प्रिय बन गए. राम चरित मानस सहित विनय पत्रिका भी रामसाहित्य भक्तों और पाठकों का आधार बनी है. इसी लोकप्रियता के वजह से राम साहित्य की प्रस्तुति कई बोली भाषाओं में हुई है।
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने कहा कि श्रीमती भारती पाण्डे ने तुलसीदास जी द्वारा रचित विनय पत्रिका को कुमाउंनी में अनुवाद करके स्तुत्य कार्य किया है। कुमाउनी बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले अनेक पुराने शब्द जो विलुप्त के कगार में पहुंच गये हैं उन्हें श्रीमती भारती जी ने इस कुमाउनी भावानुवाद में सहज रुप से समावेश कर महत्वपूर्ण कार्य किया है। डॉ. अल्का पाण्डेय ने कहा विनय पत्रिका के कुमाउंनी अनुवाद की पुस्तक स्कूलों के पाठ्यक्रमों में लगाने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए। हिंदी-कुमाउनी भाषा के शोधार्थियों के लिए यह उपयोगी पुस्तक होगी।कुल मिलाकर यह पुस्तक भाषा के संवर्धन के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
श्रीमती भारती पाण्डे ने अपने इस पुस्तका के बारे में कहा कि विनय पत्रिका में तुलसीदासजी ने देवताओं की स्तुति व गुणगान कर अन्ततः उनसे रामभक्ति की याचना की है। विनय पत्रिका के पद विभिन्न रागों में लिखे गये हैं। उन्होनें कहा कि विनय-पत्रिका में आये हुए विविध कथा प्रसंगों की जानकारी आमजन को बहुत कम है अतः इस उद्देश से उन्होंने इसके कुमाउनी अनुवाद की ओर कदम उठाया। हिन्दी की व्याकरणिक संरचना, पदों की गेयता और कुमांउनी बोली के शब्दों के उच्चारण की जटिलता के कारण हांलाकि पदों का अनुवाद बहुत सरल नहीं हो पाया है लेकिन एक प्रयास के रूप में इसे पूर्ण करने का कार्य किया है।
कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार शिवमोहन सिंह ने किया। इस अवसर पर, डॉ. लालता प्रसाद, रजनीश त्रिवेदी, वीरेंद्र डंगवाल पार्थ,शांति प्रसाद जिज्ञासु, रमाकांत बेंजवाल, दर्द गढ़वाली, चन्दन सिंह नेगी, बीना बेंजवाल, प्रवीन भट्ट, बबीता शाह लोहनी, विवेक तिवारी, डी.के.पाण्डे, महेश चन्द्र पाण्डे, कमल रजवार, गोविंद पांडे,अवतार सिंह, सुन्दर सिंह बिष्ट, शोभा पाण्डे, दिनेश चंद्र जोशी, सुमित पाण्डे सहित कई लेखक, साहित्यकार, अनेक युवा पाठक व अन्य प्रबुद्ध लोग उपस्थित रहे।