
आम आदमी पार्टी (AAP) ने रविवार को अपने वरिष्ठ विधायक और पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी कुंवर विजय प्रताप सिंह को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में पांच वर्षों के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया। सिंह, जो अमृतसर उत्तर विधानसभा सीट से विधायक हैं, ने हाल ही में पार्टी की सरकार और राज्य सतर्कता ब्यूरो की कार्रवाई पर तीखी आलोचना की थी, खासकर शिरोमणि अकाली दल (SAD) के वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ की गई छापेमारी को लेकर।इस घटनाक्रम से पंजाब की सियासत में खलबली मच गई है और आम आदमी पार्टी की आंतरिक अनुशासन नीति पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
राजनीतिक मामलों की समिति का फैसला, संदेश साफ: “मादक पदार्थ विरोधी अभियान में राजनीति नहीं”
पार्टी सूत्रों के अनुसार, यह फैसला आप की राजनीतिक मामलों की समिति (PAC) ने सर्वसम्मति से लिया। पार्टी ने साफ कर दिया है कि नशा विरोधी अभियान के नाम पर की जा रही सरकारी कार्रवाई में किसी भी प्रकार की राजनीतिक दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “कुंवर विजय प्रताप ने सार्वजनिक रूप से न केवल सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाए, बल्कि पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर संवेदनशील मामलों में बयानबाजी की। पार्टी अनुशासन सर्वोपरि है, और यह निलंबन उसी सिद्धांत की पुष्टि करता है।”
विजय प्रताप का तीखा जवाब: “जिस मरने से जग डरे…”
निलंबन की खबर सामने आने के तुरंत बाद कुंवर विजय प्रताप सिंह ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा: “कबीर, जिस मरने ते जग डरै, मेरे मन आनंद…” इस पंक्ति के माध्यम से उन्होंने यह संकेत दिया कि वह इस निलंबन से न तो डरे हैं और न ही विचलित। बल्कि, वे अपने विचारों और नैतिक मूल्यों पर डटे हुए हैं। यह पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और समर्थकों में हलचल मचा दी।
विवाद की जड़: मजीठिया के घर छापे पर सवाल
पूरा विवाद उस समय शुरू हुआ जब विजय प्रताप सिंह ने 25 जून को फेसबुक पर एक वीडियो और लंबा पोस्ट शेयर करते हुए बिक्रम सिंह मजीठिया के अमृतसर स्थित घर पर सतर्कता ब्यूरो की छापेमारी की तीखी आलोचना की।
उन्होंने लिखा: “परिवार का सम्मान सभी का होता है — नेता हो या अभिनेता, अमीर हो या गरीब… सुबह-सुबह किसी के घर छापा मारना नीति के खिलाफ है। हर सरकार ने पुलिस और सतर्कता का दुरुपयोग किया है, लेकिन परिणाम कभी संतोषजनक नहीं रहे।” उन्होंने इस कार्रवाई को राजनीतिक लाभ के लिए पुलिस का दुरुपयोग बताया और कहा कि यह परंपरा कांग्रेस सरकार से लेकर मौजूदा सरकार तक जारी है।
“नीति, धर्म और परोपकार की बात हो, तो चर्चा ज़रूरी”: सिंह की वैचारिक टिप्पणी
अपने पोस्ट में सिंह ने कहा: “राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन जब बात नीति, धर्म और परोपकार की हो, तो विमर्श अनिवार्य हो जाता है।” उन्होंने मजीठिया के पुराने केस का भी जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार के दौरान दर्ज मामले में जब मजीठिया जेल में थे, तब मान सरकार ने न रिमांड ली, न पूछताछ की। हाईकोर्ट ने इस आधार पर उन्हें जमानत दी कि जब जांच एजेंसियों को जरूरत नहीं, तो हिरासत में रखना गैरकानूनी है।
विजय प्रताप ने यह भी आरोप लगाया कि अब वही सरकार अचानक मजीठिया को पूछताछ के लिए नोटिस भेज रही है और उनके घर छापा मार रही है, जो कानूनी और नैतिक दोनों दृष्टिकोण से अनुचित है।
आप सरकार के लगातार आलोचक रहे हैं सिंह
यह पहली बार नहीं है जब कुंवर विजय प्रताप सिंह ने ‘आप’ सरकार पर सवाल उठाए हों। पूर्व आईपीएस अधिकारी रहते हुए भी वह बहुचर्चित बर्गाड़ी बेअदबी और गोलीकांड मामले की जांच में अपनी निष्पक्षता के लिए चर्चा में रहे। बाद में इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए और 2022 के विधानसभा चुनाव में अमृतसर उत्तर सीट से विजयी हुए।
हालांकि विधायक बनने के बाद से वह कई बार पार्टी लाइन से हटकर सरकार की नीतियों, प्रशासनिक नियुक्तियों और न्यायिक प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाते रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय: AAP का दोहरा संकट
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुंवर विजय प्रताप सिंह जैसे चेहरे को निलंबित करना आम आदमी पार्टी के लिए एक दोहरे संकट का संकेत है — एक तरफ पार्टी का अनुशासनात्मक पक्ष, दूसरी तरफ सरकार के खिलाफ भीतर से उठती असहमति।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक बलजीत सिंह कहते हैं: “कुंवर विजय प्रताप सिंह एक ऐसे विधायक हैं जिनकी छवि ईमानदार और सख्त अधिकारी की रही है। उनका पार्टी से मतभेद जाहिर करना अंदरूनी लोकतंत्र के लिए जरूरी था, लेकिन इसे जिस तरह दबाया गया, उससे पार्टी की सहिष्णुता पर सवाल उठता है।”