
New Delhi, Apr 29 (ANI): Prime Minister Narendra Modi chairs a meeting with Defence Minister Rajnath Singh (unseen), National Security Advisor Ajit Doval (unseen), Chief of Defence Staff General Anil Chauhan (unseen) and chiefs of all the Armed Forces, in New Delhi on Tuesday. (ANI Photo)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के इतर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ एक अहम द्विपक्षीय बैठक की। इस दौरान उन्होंने वैश्विक चिंता के केंद्र में रहे यूक्रेन संघर्ष पर चर्चा की और जोर देकर कहा कि “यूक्रेन में शांति का रास्ता खोजना पूरी मानवता की पुकार है।”
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत इस युद्ध को लेकर शुरू से ही बातचीत और कूटनीतिक समाधान की वकालत करता रहा है और इस दिशा में उठाए गए “हालिया प्रयासों का स्वागत करता है।” उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि सभी पक्ष “सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ेंगे और इस संघर्ष का समाधान निकालने की दिशा में रचनात्मक भूमिका निभाएंगे।”
यूक्रेन संघर्ष पर भारत की स्पष्ट भूमिका
प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी यूक्रेन संकट पर भारत के लगातार दोहराए जा रहे रुख की पुनः पुष्टि है। भारत ने यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत से ही कोई पक्ष नहीं लिया है, बल्कि बातचीत, युद्धविराम और कूटनीति के ज़रिए समाधान का समर्थन किया है।
उन्होंने बैठक में कहा, “हम यूक्रेन में जारी संघर्ष पर लगातार चर्चा करते रहे हैं। हम शांति के लिए हाल के सभी प्रयासों का स्वागत करते हैं। संघर्ष को जल्द से जल्द खत्म करने और स्थायी शांति स्थापित करने का रास्ता खोजा जाना चाहिए। यह केवल संबंधित पक्षों की ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता की ज़िम्मेदारी है।”
यह बयान ऐसे समय में आया है जब वैश्विक शक्तियाँ यूक्रेन संघर्ष के समाधान के लिए लगातार कोशिश कर रही हैं, लेकिन समाधान अब तक elusive बना हुआ है।
मोदी-पुतिन के बीच गर्मजोशी और रणनीतिक साझेदारी का संदेश
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की यह बैठक द्विपक्षीय संबंधों की निरंतरता और गहराई को रेखांकित करती है। दोनों नेताओं ने न केवल यूक्रेन पर, बल्कि भारत-रूस संबंधों के व्यापक फलक पर चर्चा की।
मोदी ने बैठक में कहा,“आपसे मिलना हमेशा एक यादगार अनुभव होता है। हमें कई विषयों पर जानकारी साझा करने का अवसर मिलता है। हम लगातार संपर्क में रहते हैं और दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय संवाद नियमित रूप से होता है।”
प्रधानमंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि 140 करोड़ भारतीय इस साल दिसंबर में भारत में आयोजित होने वाले 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह आयोजन भारत-रूस “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी की गहराई और व्यापकता” को दर्शाएगा।
भारत-रूस संबंधों का ऐतिहासिक आयाम
मोदी ने बैठक में इस बात पर जोर दिया कि भारत और रूस सदियों से एक-दूसरे के भरोसेमंद मित्र रहे हैं और दोनों देशों ने समय-समय पर एक-दूसरे का समर्थन किया है, विशेषकर कठिन समय में। उन्होंने कहा, “भारत और रूस हमेशा सबसे कठिन परिस्थितियों में एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं। हमारा घनिष्ठ सहयोग केवल दोनों देशों के लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण है।”
भारत और रूस के रिश्ते दशकों पुराने हैं। रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुसंधान, व्यापार, विज्ञान, और शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में दोनों देशों का सहयोग निरंतर प्रगाढ़ होता जा रहा है। भारत रूस से किफायती दरों पर ऊर्जा (विशेष रूप से कच्चा तेल) प्राप्त करता है और रूस भारतीय रक्षा प्रणाली का एक प्रमुख स्तंभ रहा है।
जियोकलात्मक संदर्भ में बैठक का महत्व
यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक भू-राजनीतिक स्थिति अत्यंत जटिल बनी हुई है। यूक्रेन संघर्ष, चीन की बढ़ती आक्रामकता, पश्चिम और रूस के बीच बढ़ते तनाव और ब्रिक्स जैसे समूहों में सदस्य देशों के पुनर्संयोजन की चर्चाओं के बीच मोदी और पुतिन की बातचीत भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की नीति को प्रतिबिंबित करती है। भारत एक ओर अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देशों के साथ मजबूत संबंध बना रहा है, वहीं रूस के साथ पारंपरिक और सामरिक साझेदारी को भी उतनी ही गंभीरता से निभा रहा है। मोदी की यह रणनीति ‘मल्टी-अलाइंमेंट’ की ओर इशारा करती है, जहाँ भारत किसी एक ध्रुव पर निर्भर हुए बिना वैश्विक मंच पर अपने हितों को सर्वोपरि रखता है।
एससीओ मंच: एक वैश्विक संवाद का अवसर
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का मंच भारत के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में संतुलन साधने का एक सशक्त माध्यम बनता जा रहा है। एससीओ में भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाखिस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे देश शामिल हैं।
इस वर्ष एससीओ की अध्यक्षता चीन कर रहा है और तियानजिन में आयोजित इस बैठक में भाग लेना भारत की पूर्वी एशियाई कूटनीति का भी हिस्सा है। भारत ने एससीओ का उपयोग आतंकवाद, सीमा सुरक्षा, ऊर्जा सहयोग और क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने जैसे अहम मुद्दों पर संवाद के लिए किया है।
आगामी शिखर सम्मेलन: भारत-रूस संबंधों की नई दिशा
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उल्लेखित दिसंबर 2025 में भारत में होने वाला 23वां भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन, दोनों देशों के संबंधों को एक नई ऊँचाई तक ले जाने का अवसर होगा। इसमें रक्षा सौदों, व्यापार विस्तार, विज्ञान और तकनीक में सहयोग, अंतरिक्ष अभियानों में साझेदारी और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे कई मुद्दों पर सहमति बनने की संभावना है।
यह सम्मेलन तब होगा जब भारत की G20 अध्यक्षता के बाद वैश्विक मंचों पर उसकी भूमिका और प्रभाव और भी सशक्त हुआ है। वहीं रूस भी पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद एशियाई साझेदारों की ओर रुख तेज़ी से कर रहा है, जिसमें भारत उसकी प्राथमिकता में शामिल है।