
उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर फिलहाल विराम लग गया है। नैनीताल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार के 11 जून को जारी आरक्षण आदेश को अंतरिम रूप से निलंबित करते हुए चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने बागेश्वर निवासी गणेश दत्त कांडपाल व अन्य की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जारी किया।
सरकार ने अपने आदेश में कहा था कि अब तक के पंचायत चुनावों में लागू आरक्षण को शून्य माना जाएगा और 2024 से इसे प्रथम आरक्षण मानते हुए नया रोटेशन लागू किया जाएगा। इसी आधार पर राज्य चुनाव आयोग ने पंचायत चुनाव की अधिसूचना भी जारी कर दी थी और इसके साथ ही पूरे प्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू कर दी गई थी।
हालांकि याचिकाकर्ताओं ने सरकार की इस नई व्यवस्था को न्यायालय में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा, लेकिन संतोषजनक उत्तर न मिलने के कारण फिलहाल पंचायत चुनावों पर रोक लगा दी है।
सरकार के आदेश पर उठा सवाल
राज्य सरकार ने 9 जून को एक नई नियमावली लागू की थी और 11 जून को एक आदेश जारी कर अब तक के पंचायत चुनावों में लागू आरक्षण व्यवस्था को शून्य मानते हुए नया आरक्षण रोटेशन लागू किया। सरकार के अनुसार, यह निर्णय इस उद्देश्य से लिया गया था कि सभी वर्गों को पंचायत प्रतिनिधित्व में समान अवसर मिल सके।
लेकिन याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि सरकार का यह कदम न केवल पहले से स्थापित नियमों के खिलाफ है, बल्कि पूर्व में दिए गए हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों की भी अवहेलना करता है। याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि नई व्यवस्था के कारण कुछ सीटें लगातार चौथे कार्यकाल के लिए आरक्षित हो गई हैं, जिससे सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का अवसर नहीं मिल रहा।
हाईकोर्ट की सुनवाई और अंतरिम आदेश
मामले की सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने पाया कि सरकार की ओर से प्रस्तुत जवाब पर्याप्त नहीं है और इससे पूर्व की व्यवस्था व आरक्षण की पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिह्न उठता है। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि आरक्षण व्यवस्था में रोटेशन का सिद्धांत समान अवसर प्रदान करने के लिए है, न कि किसी एक वर्ग को बार-बार लाभ देने के लिए।
अदालत ने इस आधार पर 11 जून के आदेश को स्थगित कर दिया और राज्य में पंचायत चुनावों की प्रक्रिया पर अंतरिम रूप से रोक लगा दी। इसका सीधा अर्थ है कि जब तक अदालत अंतिम निर्णय नहीं देती, तब तक पंचायत चुनाव नहीं हो सकेंगे।
याचिकाकर्ताओं के तर्क
याचिकाकर्ता गणेश दत्त कांडपाल और अन्य ने अदालत में यह दलील दी कि सरकार ने न केवल पूर्व दिशा-निर्देशों की अनदेखी की है, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों का भी हनन किया है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन चुनावों में जिस सीट को आरक्षित रखा गया था, उसे एक बार फिर आरक्षित कर दिया गया है, जिससे सामान्य वर्ग के नागरिकों के निर्वाचन में भागीदारी का अधिकार समाप्त हो रहा है।
उनका यह भी कहना था कि इस तरह की मनमानी और एकतरफा फैसले से ग्रामीण क्षेत्रों में असंतोष फैल सकता है और लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी।
सरकार की दलीलें और न्यायिक दृष्टिकोण
राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि कुछ समान प्रकृति की याचिकाएं हाईकोर्ट की एकलपीठ के समक्ष भी विचाराधीन हैं, जिसमें केवल 11 जून के आदेश को चुनौती दी गई है। जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से स्पष्ट किया गया कि उन्होंने 9 जून को जारी नियमावली और 11 जून के आरक्षण आदेश दोनों को चुनौती दी है और इसलिए इस पर खंडपीठ की सुनवाई जरूरी थी।
सरकार ने यह भी तर्क दिया कि आरक्षण रोटेशन की नई प्रणाली अधिक संतुलित और समावेशी है, लेकिन न्यायालय ने कहा कि यह तर्क, बिना पारदर्शिता और उचित न्यायिक प्रक्रिया के, लागू नहीं किया जा सकता।
चुनाव आयोग की स्थिति
11 जून को सरकार का आदेश आने के तुरंत बाद राज्य चुनाव आयोग ने पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी कर दी थी और आचार संहिता भी लागू कर दी गई थी। इसके तहत जिलों को चुनाव की तैयारियां आरंभ करने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन अब उच्च न्यायालय के आदेश के बाद पूरी प्रक्रिया रोक दी गई है।
चुनाव आयोग की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, आयोग अदालत के निर्देशों के अनुसार ही आगे की रणनीति बनाएगा।