
नैनीताल हाईकोर्ट ने रुद्रपुर स्थित एक मजार को राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के तहत ध्वस्त किए जाने के मामले में दायर याचिका पर अहम निर्देश जारी किए हैं। न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की एकलपीठ ने सोमवार को सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि वे 24 घंटे के भीतर दो लोगों का पूरा विवरण — आधार कार्ड, फोटो, ईमेल और फोन नंबर सहित — न्यायालय को सौंपें, जो मजार की मिट्टी को स्थानांतरित करेंगे। साथ ही इस मिट्टी को कहां ले जाया जाएगा, उसका विवरण भी शपथपत्र के माध्यम से प्रस्तुत किया जाए।
इसके साथ ही न्यायालय ने ऊधमसिंह नगर जिला प्रशासन को आदेश दिया है कि अगली सुनवाई तक मजार के ऊपर से वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाई जाए। मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल की दोपहर को निर्धारित की गई है।
मामले की पृष्ठभूमि: एनएच परियोजना के लिए मजार ध्वस्तीकरण
रुद्रपुर शहर के इंदिरा चौक के पास स्थित सैय्यद मासूम शाह मियां और सज्जाद मियां की मजार को 21 अप्रैल की सुबह प्रशासन ने बुलडोजर की मदद से हटा दिया। यह कार्रवाई केंद्र सरकार की प्रस्तावित आठ लेन राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) परियोजना के लिए ज़मीन अधिग्रहण के तहत की गई। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा पहले ही संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर कार्यवाही की सूचना दी जा चुकी थी।
एनएचएआई की ओर से फरवरी में पहला नोटिस जारी किया गया था और उसके बाद एक बार फिर नोटिस भेजा गया, जिसमें स्पष्ट रूप से जमीन अधिग्रहण और मुआवजे की जानकारी दी गई थी। प्रशासन के अनुसार, यह मजार सरकारी भूमि पर बनी थी और इसे खसरे में 1960 से सड़क के हिस्से के रूप में दर्ज किया गया है।
वक्फ बोर्ड की याचिका और हाईकोर्ट की सुनवाई
मजार ध्वस्तीकरण को लेकर वक्फ अल्लाह ताला की ओर से याचिका नैनीताल हाईकोर्ट में दाखिल की गई। सोमवार को अधिवक्ता की ओर से मामले को लंच के बाद मेंशन किया गया, जिसे न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की एकलपीठ ने सुनवाई के लिए स्वीकार किया।
सुनवाई के दौरान ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी और एसएसपी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत में उपस्थित हुए। जिलाधिकारी ने न्यायालय को बताया कि यह भूमि वक्फ संपत्ति नहीं है और दरगाह का नाम हजरत मासूम साह दरगाह है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि दरगाह को नोटिस देकर हटाया गया है और नियमानुसार मुआवजा भी दिया गया है।
न्यायालय की सख्त टिप्पणी और निर्देश
न्यायालय ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से स्पष्ट रूप से कहा कि वे 24 घंटे के भीतर:
- दो प्रतिनिधियों का विवरण — नाम, आधार कार्ड, फोटो, ईमेल, फोन नंबर आदि।
- मिट्टी की अंतिम स्थापना का विवरण — कहां और कैसे इस मिट्टी को स्थानांतरित किया जाएगा, इसका शपथपत्र सहित ब्यौरा।
जस्टिस राकेश थपलियाल ने इस दौरान कहा कि न्यायालय की प्राथमिक चिंता धार्मिक भावनाओं और कानून व्यवस्था के संतुलन की है। अदालत चाहती है कि मामला सुलझाया जाए, लेकिन निर्धारित प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है।
वाहनों की आवाजाही पर अस्थायी रोक
न्यायालय ने जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि अगली सुनवाई तक मजार के स्थान पर या उसके ऊपर से किसी प्रकार के वाहनों की आवाजाही न की जाए। यह अस्थायी रोक धार्मिक स्थल की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए दी गई है, जब तक कि मिट्टी को विधिवत स्थानांतरित न कर दिया जाए।
प्रशासन का पक्ष: “विधिवत कार्रवाई, मुआवजा दिया गया”
ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी ने कोर्ट में बताया कि यह मजार सरकारी भूमि पर स्थित थी, जिसे हाईवे निर्माण के लिए अधिगृहित किया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि:
- यह वक्फ संपत्ति नहीं थी।
- अधिग्रहण की प्रक्रिया में सभी कानूनी प्रावधानों का पालन किया गया।
- संबंधित पक्ष को समय पर नोटिस दिया गया और मुआवजा भी वितरित किया गया।
प्रशासन के अनुसार, यह जमीन पहले से ही सार्वजनिक उपयोग के लिए चिह्नित थी और इसमें किसी प्रकार की अवैध निर्माण या अतिक्रमण की छूट नहीं दी जा सकती।
धार्मिक और कानूनी संतुलन की जटिलता
यह मामला धार्मिक भावनाओं, जमीन अधिग्रहण, और विकास परियोजनाओं के बीच संतुलन की एक जीवंत मिसाल बनकर सामने आया है। एक ओर, सरकार के सामने विशाल इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से पूरा करने की चुनौती है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक भावनाओं की रक्षा और संवेदनशील मुद्दों के विधिपूर्वक समाधान की भी जिम्मेदारी है।
न्यायालय का हस्तक्षेप इस दिशा में महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होता है कि विकास कार्यों के दौरान संवैधानिक और धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन न हो।
मामले की अगली सुनवाई और संभावित प्रभाव
अगली सुनवाई 23 अप्रैल की दोपहर में होगी, जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए विवरणों और प्रशासन की रिपोर्ट पर आगे की कार्यवाही की जाएगी। यदि याचिकाकर्ता 24 घंटे के भीतर मांगी गई जानकारी नहीं देता है, तो न्यायालय अपनी कार्यवाही को अगले चरण में ले जा सकता है।
यह मामला न केवल स्थानीय बल्कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी नजरों में है क्योंकि यह धार्मिक स्थल, भूमि अधिग्रहण और विकास कार्यों की परस्पर जटिलता को उजागर करता है।