- काल भैरव की पूजा से दूर होती हैं बीमारियां/ हर तरह के संकट
- पूजन से पूर्ण होती हैं सभी मनोकामनाएं
- केदारनाथ के पहले रावल हैं भैरव नाथ, करते हैं केदारपुरी की रक्षा
देहरादून: (राज्य की बात) सोशल मीडिया के दौर में भौगोलिक दूरियां कम हो गई। इंसान कहीं भी गूगल मैप के माध्यम से आ-जा सकता है। जब बात होती है बाबा काल भैरव के दरवार की तो खुद को रोक नहीं पाया। रविवार को सुबह 6 बजे घर से निकला और पहुंच गया सीधे नेपाली फॉर्म। यहां से एक सज्जन से वाइक से लिफ्ट लेकर पहुंच गया। श्यामपुर चौकी, यहां पहुंच कर पता चला मंदिर तक का सफर अब ऑटो से करना होगा। ऑटो जैसे ही आगे कॉलोनी के लिए बढ़ा बदहाल सड़क देखी, पूछने पर पता चला विधायक जी कैबिनेट में बडे मंत्री हैं। लेकिन अपनी ही विधानसभा की सड़कें… ऑटो में उछलते-उछलते मंदिर पहुंच गया। मन में सुकून था मंदिर पहुंचने का। मंदिर परिसर में मां ज्वाल्पा देवी की डोली का नृत्य चल रहा था, सैंकड़ों की संख्या में भक्त मौजूद थे। मंदिर परिसर के सदस्य से बात करने पर पता चला दरवार शुरू होने से पहले माता ज्वाल्पा देवी की डोली के नृत्य की परंपरा है।
बताया जाता है कि श्री संजय बिष्ट जी पर 5 वर्ष से बाबा काल भैरव का अंश आता है। वह मूल रूप से टिहरी गढ़वाल के रहने वाले है। पिछले एक दशक से ज्यादा समय से दरवार के माध्यम से लोगों की मदद कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर एक वीडियों में देख चुका था बाबा काल भैरव नाथ जी के उपासक श्री संजय बिष्ट पर विकराल रूप से आते हैं बाबा काल भैरव, दरवार में हजारों भक्त होने के चलते मैं शुरू में सामने तो नहीं देख पाया लेकिन दरवार जैसे ही शुरू हुआ महाराज जी नाम, जाति उक्त समस्या बोल कर लोगों को बुलाने लगे। जिन लोगों का नाम लिया जा रहा था उनके चेहरे खिले हुए थे। हजारों की भीड़ में किसी व्यक्ति विशेष का नाम या जाति या उसकी परेशानी बोल कर बुलाया जा रहा था। मैं भी हैरान था।
कुछ भक्तों से बात-चीत की, कई लोग पहली बार आये थे तो कई दूसरी-तीसरी बार आये थे भक्तों का कहना था कि यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता, कई लोग से मुलाकात हुई जिनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुई थी। वो दरबार में मिठाई लेकर आए थे। उनके चेहरी पर खुशी साफ दिख रही थी। यहां सैंकड़ों लोग अपनी समस्या लेकर आते है। लोग आचार्य करने लगते हैं की कैसे दूर-दूर से आए अनजान लोगों को उनके नाम से बुला लिया जाता है उनकी समस्या क्या है, कितनी है और कब से है। उनके पिता का नाम क्या है और बेटे का नाम क्या। कैसे एक व्यक्ति मन की बात जान लेता है।
दरअसल होता ये है कि जिस दौरान बाबा काल भैरव के उपासक श्री संजय बिष्ट पर जब बाबा का अंश आता है वैसे ही सभी लोगों की समस्या का निवारण करने के लिए बाबा नाम लेकर बुलाते हैं।
वक्त था लगभग 11 बजे का, दूसरी बार माता ज्वाल्पा देवी की डोली का नृत्य शुरू हुआ, मंदिर परिसर के सदस्यों के साथ कुछ देर बैठने के बाद में भी चल दिया मुख्य मंदिर की खिड़की की तरफ वहां से साफ तौर पर देख पा रहा था बाबा किस तरह लोगों की समस्या का समाधान कर रहे थे। हर कोई उस छोटे से कमरे में जाना चाहता था जहां पर महाराज जी भक्तों की समस्या का समाधान कर रहे थे। लेकिन नियम के अनुसार बाबा जिन लोगों का नाम लेकर बुलाते हैं उन्हें ही उस कमरे में जाना होता है और अपनी बारी का इंतजार करना होता है। मैं खिड़की से देख ही रहा था तभी बाबा ने मेरा नाम लेकर पुकारा, मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचा तो मेरी नाम राशि के एक और व्यक्ति खड़ा हो गया।
बैहरहाल कुछ देर मुख्य मंदिर के गेट पर खडे होने के बाद बैठने की जगह मिल गई। मेरी जाति से बाबा ने दोबारा बुलाया और आ गया मेरा नंबर। बैठते ही बाबा ने कुछ एसा कह दिया कि मन गद-गद हो गया। कुल देवता भगवान भैरव नाथ होने के चलते मेरी श्रद्धा हमेशा उनमे रही। मन में सवाल बहुत थे लेकिन सैंकड़ों लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। इस तरह मैं दर्शन कर पाया भगवान काल भैरव नाथ के….
कैसे जाए बाबा काल भैरब के मंदिर
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से लगभग 45 किलोमीटर दूर है बाबा भैरव का सिद्द मंदिर। देहरादून आईएसबीटी से हरिद्वार की बस आपको आसानी से मिल जाएगी। नेपाली फार्म में उतरने के बाद, श्यामपुर चौकी के लिए आसानी से विक्रम मिल जाते हैं। यहां से आप को ऑटो से भर्टोवाला, भैरव मंदिर के लिए आना होगा।
कौन है बाबा काल भैरव नाथ ?
काल भैरव के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु जी के बीच इस बात को लेकर विचार चल रहा था कि आखिर तीनों में अधिक ‘श्रेष्ठ कौन है?’ विवाद से लेकर विचार-विमर्श के बाद भी इसका समाधान नहीं निकल पाया। तब सभा बुलाई गई और सभी देवताओं से पूछा गया कि ‘तीनों में से सबसे श्रेष्ठ कौन?. देवताओं ने अपने-अपने मत सामने रखें। इसके बाद जो निष्कर्ष निकला उससे भगवान विष्णु और शिव जी तो प्रसन्न थे, लेकिन ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं थे।
इसलिए उन्होंने आवेश में शिवजी को बुरा-भला कह दिया। सभी देवताओं के बीच ब्रह्मा जी द्वारा अपशब्द सुने जाने पर शिवजी को अपना अपमान सहन नहीं हुआ और उन्हें भी क्रोध आ गया और इसी क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव के इस रौद्र अवतार को महाकालेश्वर भी कहा जाता है। भगवान शिव का यह रौद्र रूप देख सभी डर गए और देवताओं ने उनसे शांत रहने की विनती की।
लेकिन काल भैरव ने क्रोध में ब्रह्मा जी के पांच मुख में एक को काट डाला। इससे उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। तब भगवान शिव ने उनको सभी तीर्थों का भ्रमण करने का सुझाव दिया। फिर वे वहां से तीर्थ यात्रा पर निकल गए। पृथ्वी पर सभी तीर्थों का भ्रमण करने के बाद काल भैरव शिव की नगरी काशी में पहुंचे। वहां पर वे ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हो गए। भगवान शंकर काशी के राजा हैं और काल भैरव काशी के कोतवाल यानि संरक्षक हैं। काल भैरव देवता को भगवान शिव के रौद्र या उग्र रूप में पूजा जाता है।
पुराणों में बताए गए हैं 8 भैरव
स्कंद पुराण के अनुसार भगवान भैरव के 8 रूप माने गए हैं। इनमें से काल भैरव तीसरा रूप है। शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि शाम के समय जब रात्रि अगमन और दिन खत्म होता है। तब प्रदोष काल में शिव के रौद्र रूप से भैरव प्रकट हुए थे। भैरव से ही अन्य 7 भैरव और प्रकट हुए जिन्हें अपने कर्म और रूप के अनुसार नाम दिए गए हैं।
आठ भैरवों के नाम
- रुरु भैरव
- संहार भैरव
- काल भैरव
- असित भैरव
- क्रोध भैरव
- भीषण भैरव
- महा भैरव
- खटवांग भैरव
भैरव का अर्थ है भय को हरने वाला या भय को जीतने वाला। इसलिए काल भैरव रूप की पूजा करने से मृत्यु और हर तरह के संकट का डर दूर हो जाता है। नारद पुराण में कहा गया है कि काल भैरव की पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्य किसी रोग से लंबे समय से पीडित है तो वह बीमारी और अन्य तरह की तकलीफ दूर होती है। काल भैरव की पूजा पूरे देश में अलग-अलग नाम से और अलग तरह से की जाती है। काल भैरव भगवान शिव की प्रमुख गणों में एक हैं।
जिनके दर्शन बिना अधूरी है केदारनाथ यात्रा
केदारनाथ धाम की बात करें तो केदारनाथ में भी बाबा भैरव नाथ का मंदिर मौजूद है और हर साल केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले भैरव मंदिर में पूजा पाठ की जाती है। काल भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव, बटुक भैरव आदि अनेक नामों के साथ वे महादेव के साथ वास करते हैं और केदारनाथ में बिना बाबा भैरव नाथ के दर्शन के यात्रा पूर्ण नहीं होती है।
बता दें कि बाबा भैरव नाथ केदारनाथ क्षेत्र के क्षेत्र पाल देवता हैं और बाबा केदार के पहले रावल हैं। शीतकाल प्रवास में क्षेत्र की रक्षा का जिम्मा बाबा भैरव नाथ के हिस्से आता है और बाबा केदारनाथ के कपाट खोलने से पहले हमेशा बाबा भैरव नाथ की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि बाबा भैरव नाथ केदारनाथ के पहले रावल थे और उनका मंदिर केदारनाथ मंदिर के दक्षिण में स्थित है। मुख्य केदारनाथ मंदिर से इसकी दूरी लगभग आधा किलोमीटर दूर है। बाबा केदारनाथ की पूजा से पहले बाबा भैरव नाथ की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है और उसके बाद ही परंपरागत तरीकों से बाबा केदारनाथ के कपाट खोले जाते हैं।
कहा तो यह भी जाता है कि कुछ साल पहले हुए पुरोहितों से पूजा पाठ में कुछ कमी रह गई थी जिस कारण केदारनाथ मैं भीषण आपदा आई थी। स्थानीय लोग यही बताते हैं कि 2017 में मंदिर समिति और प्रशासन के कुछ लोगों को कपाट बंद करने में काफी परेशानी हुई थी।
कपाट के कुंडे लगाने में दिक्कत हो रही थी जिसके बाद पुरोहितों ने भगवान केदार के क्षेत्रपाल बाबा भैरव नाथ की पूजा की और कुछ समय के बाद कपाट बिना दिक्कत के बंद हो गया। मान्यता है कि शीतकाल में केदारनाथ मंदिर की रखवाली बाबा भैरव नाथ करते हैं।