देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनके योगदान को याद करने और सम्मानित करने के लिए उनका स्मारक बनाने का मुद्दा राजनीति में गरमाया हुआ है। इस मुद्दे पर पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर डॉ. मनमोहन सिंह का स्मारक दिल्ली के राजघाट परिसर में बनाने की मांग की है।
यह पत्र ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार दिल्ली के निगमबोध घाट पर किया गया, जबकि उन्हें एक विशिष्ट स्थान पर स्मारक मिलना चाहिए था, जैसे अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों को मिला है।
सिद्धू की चिट्ठी और राजघाट पर स्मारक की मांग
नवजोत सिंह सिद्धू ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र में कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह के योगदान को देखते हुए उनके लिए राजघाट परिसर में एक स्मारक स्थापित किया जाना चाहिए। सिद्धू ने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि भारत के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के स्मारक राजघाट में बनाए गए हैं, जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, और अटल बिहारी वाजपेयी के स्मारक।
सिद्धू ने लिखा, “मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप केंद्र सरकार को निर्देश दें कि डॉ. मनमोहन सिंह के लिए राजघाट परिसर में स्मारक स्थापित किया जाए।” उन्होंने इस मुद्दे को राजनीतिक पक्षपात और असुरक्षा से भी जोड़ा और कहा कि मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर किया जाना और उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाना परंपरा का उल्लंघन है।
डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान और महत्व
डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण और सम्मानित व्यक्ति रहे हैं। उन्होंने 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में सेवा दी और उनके नेतृत्व में देश ने आर्थिक सुधारों और वैश्विक समावेशन की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनका कार्यकाल विशेष रूप से आर्थिक उदारीकरण, सुधार और विकास के लिए जाना जाता है।
मनमोहन सिंह को एक ऐसे नेता के रूप में जाना जाता है जिन्होंने कठिन निर्णयों को लिया और भारत को एक आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में अग्रसर किया। उनके नेतृत्व में भारत ने 1991 के बाद आर्थिक संकट से बाहर आकर दुनिया में अपनी एक नई पहचान बनाई। उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले भारत को बाहरी कर्जों की समस्याओं का सामना था, लेकिन उन्होंने वित्तीय स्थिरता और सुधारों के जरिए भारत को विकास की राह पर अग्रसर किया।
सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के स्मारक
भारत में राजघाट परिसर में कई पूर्व प्रधानमंत्रियों के स्मारक स्थापित किए गए हैं। इस परंपरा के तहत पंडित नेहरू का शांति वन, लाल बहादुर शास्त्री का विजय घाट, इंदिरा गांधी का शक्ति स्थल, राजीव गांधी का वीर भूमि, और अटल बिहारी वाजपेयी का सदा अटल का स्मारक स्थित है। इन सभी स्मारकों का उद्देश्य इन महान नेताओं की यादों को सहेजने के साथ-साथ देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनाना है।
सिद्धू ने यह सवाल उठाया कि जब सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों का स्मारक राजघाट परिसर में बना है, तो डॉ. मनमोहन सिंह का स्मारक वहां क्यों नहीं बन सकता। उनका कहना था कि यह परंपरा का उल्लंघन है और यह राजनीतिक पक्षपाती दृष्टिकोण का परिणाम हो सकता है।
निगमबोध घाट पर मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार
जब डॉ. मनमोहन सिंह का निधन हुआ, तो उनके अंतिम संस्कार के लिए निगमबोध घाट को चुना गया। यह स्थान दिल्ली के प्रमुख शवदाह गृहों में से एक है और यहां पर कई नेताओं का अंतिम संस्कार किया गया है। हालांकि, यह स्थान उन नेताओं के लिए नहीं है जिनका देश की राजनीति या समाज में गहरा प्रभाव था।
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि यह निर्णय एक तरह से मनमोहन सिंह के योगदान और उनके सम्मान की उपेक्षा है। कांग्रेस नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि डॉ. सिंह के लिए एक विशिष्ट स्थान और स्मारक का अधिकार था।
पीवी नरसिम्हा राव का हैदराबाद में बना स्मारक
सिद्धू ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का उदाहरण देते हुए बताया कि उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के बाहर किया गया था, लेकिन उनकी याद में हैदराबाद में एक भव्य स्मारक बनाया गया है। सिद्धू ने कहा, “अगर पीवी नरसिम्हा राव के लिए उनका स्मारक हैदराबाद में बन सकता है, तो फिर डॉ. मनमोहन सिंह के लिए दिल्ली में क्यों नहीं?” यह सवाल सिद्धू ने अपनी चिट्ठी में उठाया और इस निष्क्रियता पर सवाल खड़ा किया।
कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक मतभेद
डॉ. मनमोहन सिंह का स्मारक बनाने का मुद्दा केवल एक संवेदनशील राजनीतिक मसला नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस और भाजपा के बीच जारी राजनीतिक मतभेदों का भी प्रतीक है। कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार जानबूझकर डॉ. मनमोहन सिंह की विरासत को नजरअंदाज कर रही है और उन्हें उचित सम्मान नहीं दे रही है।
वहीं भाजपा का कहना है कि यह एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है और यह निर्णय सरकार का कार्य नहीं है। भाजपा नेताओं का कहना है कि डॉ. मनमोहन सिंह के योगदान को सहेजने के लिए पहले ही कई पहल की गई हैं, और अब यह कांग्रेस का काम है कि वह इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से न भड़का कर सम्मानजनक तरीके से हल करे।