प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का हालचाल लिया, जब उनकी तबीयत जम्मू-कश्मीर के जसरोटा में एक चुनावी जनसभा के दौरान बिगड़ गई। इस घटना ने राजनीतिक माहौल में हलचल मचा दी है और इससे जुड़े कई राजनीतिक बयानों की भी भरमार हुई है।
जनसभा के दौरान बेचैनी का अनुभव
मल्लिकार्जुन खरगे जसरोटा में एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे, तभी अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई। उन्हें मंच पर बोलते समय चक्कर आने लगा, जिसके बाद वहां मौजूद कांग्रेस के नेताओं ने उन्हें कुर्सी पर बैठने में मदद की। इसके बाद, खरगे को एक कमरे में ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उनकी जांच की। उनकी सेहत की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर की गई, लेकिन बाद में उन्होंने जनसभा को फिर से संबोधित करने का निर्णय लिया।
खरगे का साहसी बयान
जब खरगे ने जनसभा को संबोधित किया, तो उन्होंने कहा, “मैं बात करना चाहता था, लेकिन चक्कर आने के कारण मैं बैठ गया हूं। कृपया मुझे माफ करें। वे (भाजपा) हमें आतंकित करने की कोशिश कर रहे हैं। वे पाकिस्तान की बात करते हैं, लेकिन हम नहीं डरते। बांग्लादेश को किसने आजाद कराया? इंदिरा गांधी ने ऐसा किया। ‘जय जवान जय किसान’ का नारा हमने दिया था। पाकिस्तान को हमने हराया। यह कांग्रेस है।”
मजबूत इच्छाशक्ति का प्रदर्शन
खरगे ने अपने स्वास्थ्य की चिंता के बावजूद एक दृढ़ता से रैली को संबोधित किया और कहा, “मैं 83 साल का हो गया हूं, मैं इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूं। जब तक (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी को सत्ता से नहीं हटाएंगे, तब तक मैं जिंदा रहूंगा। आपकी बात सुनूंगा और आपके लिए लड़ूंगा।”
भाजपा पर गंभीर आरोप
खरगे ने भाजपा सरकार पर जम्मू-कश्मीर को “रिमोट कंट्रोल” के जरिए चलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “ये लोग कभी चुनाव नहीं कराना चाहते थे। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही चुनाव की तैयारी शुरू की गई। मोदी जी जम्मू-कश्मीर के युवाओं के भविष्य को लेकर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं।” इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि मोदी जी के कार्यकाल में बेरोजगारी दर 45 सालों में सबसे अधिक है।
प्रधानमंत्री मोदी का फोन कॉल
खरगे के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें फोन कर उनका हालचाल लिया। यह एक महत्वपूर्ण पहल थी, जिससे यह संदेश गया कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद मानवता और स्वास्थ्य सबसे पहले आते हैं। मोदी के इस कदम को सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है, और इससे यह भी संकेत मिलता है कि राजनीतिक नेताओं के बीच रिश्ते को मानवीय दृष्टिकोण से भी देखा जाना चाहिए।