
Narendra Modi, India's prime minister, during a news conference with Olaf Scholz, Germany's chancellor, not pictured, at Hyderabad House in New Delhi, India, on Friday, Oct. 25, 2024. Scholz called for further diversification of the nation's trade as he looks to reduce the economy's dependence on China in favor of India. Photographer: Prakash Singh/Bloomberg via Getty Images
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी सप्ताह में दो दिवसीय सऊदी अरब दौरे पर जा रहे हैं। यह यात्रा सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के विशेष निमंत्रण पर हो रही है और 22 से 23 अप्रैल के बीच जेद्दा शहर में आयोजित की जाएगी। यह प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल की पहली सऊदी यात्रा है और इसे भारत-सऊदी रणनीतिक संबंधों को गहराई देने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।
यह जानकारी विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने शनिवार को विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित विशेष प्रेस वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि यह यात्रा दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, और सामरिक सहयोग को नए स्तर पर ले जाने का अवसर है।
रणनीतिक साझेदारी की दूसरी बैठक का नेतृत्व करेंगे मोदी और क्राउन प्रिंस
विदेश सचिव ने बताया कि इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ‘भारत-सऊदी रणनीतिक साझेदारी परिषद’ की दूसरी बैठक की संयुक्त अध्यक्षता करेंगे। इस परिषद के दो प्रमुख स्तंभ हैं — राजनीतिक और आर्थिक — जिनका नेतृत्व दोनों देशों के संबंधित मंत्री करते हैं।
इस परिषद की पहली बैठक सितंबर 2023 में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान नई दिल्ली में हुई थी, जब क्राउन प्रिंस भारत आए थे। उस बैठक में कई रणनीतिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की दिशा में ठोस प्रस्ताव रखे गए थे।
मोदी का तीसरे कार्यकाल में पहला सऊदी दौरा
यह प्रधानमंत्री मोदी का सऊदी अरब के लिए तीसरा आधिकारिक दौरा होगा। इससे पहले वे 2016 और 2019 में सऊदी अरब गए थे। मौजूदा दौरा विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह तीसरे कार्यकाल की पहली खाड़ी यात्रा है और ऐसे समय में हो रही है जब पश्चिम एशिया में राजनीतिक और सामरिक परिदृश्य बेहद जटिल बना हुआ है।
विदेश सचिव मिस्री ने कहा,
“प्रधानमंत्री और क्राउन प्रिंस के बीच गहरे और गर्मजोशी से भरे संबंध हैं। दोनों नेताओं की आपसी समझ और रणनीतिक सोच ने भारत-सऊदी संबंधों को नई ऊंचाई पर पहुंचाया है।”
कई द्विपक्षीय समझौतों पर होंगे हस्ताक्षर
इस यात्रा के दौरान भारत और सऊदी अरब के बीच कई महत्वपूर्ण समझौतों (MoUs) पर हस्ताक्षर की संभावना है। विदेश सचिव ने जानकारी दी कि ये समझौते ऊर्जा, सुरक्षा, निवेश, डिजिटल इकोनॉमी, और रक्षा सहयोग जैसे प्रमुख क्षेत्रों में हो सकते हैं। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि ये समझौते अभी अंतिम मंजूरी की प्रक्रिया में हैं और यात्रा के दौरान विस्तृत जानकारी साझा की जाएगी।
उन्होंने कहा,
“भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय सहयोग हर क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा है। इस यात्रा में इन रिश्तों को संस्थागत रूप देने का प्रयास किया जाएगा।”
प्रवासी भारतीयों की भूमिका और संबंधों की मजबूती
विदेश सचिव ने इस बात को भी रेखांकित किया कि सऊदी अरब में करीब 27 लाख भारतीय प्रवासी रहते और काम करते हैं, जो किसी भी देश में भारतीय प्रवासियों का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। उन्होंने कहा कि यह भारतीय समुदाय भारत और सऊदी अरब के बीच सेतु का काम करता है और दोनों देशों की सामाजिक और आर्थिक कड़ियों को मजबूत करता है।
1947 में भारत और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे, जबकि 2010 में इन्हें रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर ले जाया गया था। तब से अब तक द्विपक्षीय दौरे और सहयोग की गति में लगातार तेजी आई है।
रूस-यूक्रेन युद्ध रहेगा प्रमुख मुद्दा
मिस्री ने बताया कि इस यात्रा के दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध भी दोनों नेताओं की बातचीत का एक अहम हिस्सा होगा। उन्होंने कहा,
“प्रधानमंत्री मोदी पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि युद्ध का समाधान संवाद के माध्यम से ही निकल सकता है। हमें खुशी है कि सऊदी अरब इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। यह मुद्दा निश्चित रूप से एजेंडे में रहेगा।”
उन्होंने आगे बताया कि भारत इस मुद्दे पर सभी प्रमुख पक्षों के साथ संपर्क में है और किसी भी संभावित शांति प्रक्रिया में सकारात्मक भागीदारी देने को तैयार है।
हूती हमलों और पश्चिम एशिया की स्थिति पर भी चर्चा
विदेश सचिव ने यह भी बताया कि यात्रा के दौरान यमन के हूती विद्रोहियों द्वारा हाल में किए गए शिपिंग और नेविगेशन पर हमले चर्चा का विषय होंगे। भारत इस पूरे घटनाक्रम पर करीबी नजर रखे हुए है।
मिस्री ने बताया कि भारत ने अपनी नौसेना की तैनाती बढ़ाई है और व्यापारी जहाजों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं। उन्होंने कहा,
“यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए गंभीर चिंता का विषय है और भारत सऊदी अरब जैसे अहम साझेदार के साथ मिलकर इससे निपटने के लिए रणनीति बनाएगा।”
साथ ही इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच बढ़ते तनाव को लेकर भी बातचीत होगी। भारत का मानना है कि इस संघर्ष का समाधान भी शांति और संवाद के जरिए ही संभव है, और सऊदी अरब इस प्रक्रिया में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है।