
दुनियाभर में कैथोलिक ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु *पोप फ्रांसिस* का सोमवार रात निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे और पिछले एक महीने से अधिक समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। उन्हें डबल न्यूमोनिया और किडनी संबंधित समस्याएं थीं। उनके निधन की खबर के बाद दुनियाभर में ईसाई समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई है। वेटिकन सिटी से लेकर ब्यूनस आयर्स तक चर्चों में श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की जा रही हैं।
पोप फ्रांसिस को पहली बार 14 फरवरी को सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई थी, जिसके बाद उन्हें वेटिकन के अस्पताल में भर्ती कराया गया। जांच के दौरान पता चला कि उन्हें *बाइलेटरल न्यूमोनिया* है, जिसका अर्थ है कि उनके दोनों फेफड़ों में गंभीर संक्रमण और पानी भरने की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इसके चलते उनकी सांस लेने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो गई थी।
न केवल फेफड़े, बल्कि धीरे-धीरे उनकी *किडनी की कार्यप्रणाली* भी प्रभावित होने लगी थी। डॉक्टरों के अनुसार, उनका शरीर रक्त को सही तरीके से छान नहीं पा रहा था और ऑक्सीजन को अवशोषित करने व शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंचाने की क्षमता भी कमजोर पड़ गई थी। इस स्थिति को देखते हुए पोप को *लगातार ऑक्सीजन सपोर्ट* पर रखा गया और साथ ही *ब्लड ट्रांसफ्यूजन* की प्रक्रिया भी की जाती रही।
पोप के इलाज में वेटिकन के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर और नर्सें जुटी रहीं। इस दौरान कई बार उनकी हालत में मामूली सुधार भी देखा गया, लेकिन उम्र और अन्य पुरानी बीमारियों के चलते उनका शरीर उपचार का पूरी तरह से साथ नहीं दे पाया। उनके अंतिम समय में वेटिकन के वरिष्ठ धर्मगुरु, डॉक्टर और उनके कुछ करीबी परिवारजन और सहयोगी उपस्थित थे।
पिछले कुछ सप्ताहों से वेटिकन और ईसाई समाज में यह चर्चा भी तेज़ थी कि क्या पोप फ्रांसिस अपने पद से इस्तीफा देंगे। ईसाई धर्म में पोप का पद एक अत्यंत उच्च और सम्मानित स्थान रखता है। *कैनन लॉ* के अनुसार, पोप को पूर्ण, सार्वभौमिक और स्वतंत्र शक्ति प्राप्त होती है, जिसका प्रयोग वह कभी भी कर सकते हैं। लेकिन यह भी उल्लेखनीय है कि पोप का पद त्यागना एक असामान्य घटना मानी जाती है।
हालांकि, इतिहास में ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब पोप ने इस्तीफा दिया हो। उदाहरणस्वरूप, पोप बेनेडिक्ट XVI ने 2013 में स्वास्थ्य कारणों के चलते पद छोड़ा था। कैनन लॉ के अनुसार, यदि पोप अपनी जिम्मेदारियां निभाने में असमर्थ हों और इस्तीफा देना चाहें, तो यह पूरी तरह उनकी इच्छा और स्वतंत्रता पर आधारित होना चाहिए। किसी भी प्रकार का दबाव या प्रभाव इस निर्णय को अमान्य बना सकता है।
पोप फ्रांसिस के मामले में भी चर्चों के भीतर यह विचार किया जा रहा था कि यदि उनकी स्वास्थ्य स्थिति स्थायी रूप से खराब बनी रहती है, तो वह पद से त्यागपत्र दे सकते हैं। हालांकि, उन्होंने ऐसा कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया।
पोप फ्रांसिस का असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोलियो था। वे अर्जेंटीना के निवासी थे और 2013 में पोप चुने गए थे। वे पहले लैटिन अमेरिकी और पहले जेसुइट पोप थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने सामाजिक न्याय, जलवायु परिवर्तन और शरणार्थी संकट जैसे मुद्दों पर जोरदार तरीके से आवाज़ उठाई।
उन्होंने कैथोलिक चर्च को अधिक आधुनिक, समावेशी और संवेदनशील बनाने की कोशिश की। एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के प्रति उनकी सहानुभूति, चर्च में महिलाओं की भूमिका को लेकर उनकी खुली सोच, और ग़रीबों के लिए उनका समर्पण हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने चर्च को केवल पूजा का स्थान नहीं बल्कि एक सामाजिक संस्था के रूप में प्रस्तुत किया जो मानवता की भलाई के लिए काम करती है।