
पंजाब सरकार ने धार्मिक भावनाओं से जुड़े एक बेहद संवेदनशील और लंबे समय से प्रतीक्षित मुद्दे पर बड़ा कदम उठाया है। मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में पंजाब कैबिनेट ने सोमवार को “बेअदबी विरोधी बिल” को मंजूरी दे दी, जिसके तहत धार्मिक ग्रंथों और स्थलों की बेअदबी करने वालों को उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है।
बिल को कैबिनेट की स्वीकृति मिलने के तुरंत बाद राज्य विधानसभा में पेश किया गया, जहां इसे लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस देखने को मिली। विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने बिल पर चर्चा के लिए पर्याप्त समय की मांग की और कहा कि बिल की प्रति उन्हें मौके पर ही उपलब्ध कराई गई, इसलिए इस पर विस्तार से विचार-विमर्श कल किया जाना चाहिए। स्पीकर ने विपक्ष की मांग को स्वीकारते हुए बिल पर चर्चा मंगलवार को आयोजित करने की अनुमति दी और सदन को 15 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया।
बेअदबी के खिलाफ कानून की आवश्यकता क्यों?
पंजाब में धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा रहा है, जिसने पिछले एक दशक में कई बार कानून-व्यवस्था को चुनौती दी है। 2015 में बहिबल कलां और कोटकपूरा में हुई बेअदबी की घटनाओं के बाद राज्यभर में विरोध प्रदर्शन हुए और राजनीतिक दलों पर कार्रवाई में ढिलाई बरतने के आरोप लगे।
वर्तमान में धार्मिक भावनाएं भड़काने को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 295 और 295A के तहत कार्रवाई की जाती है, लेकिन इन धाराओं में सजा सीमित है और अक्सर दोषी छूट जाते हैं या उन्हें जमानत मिल जाती है। इससे पीड़ित समुदाय में भारी असंतोष रहता है। मुख्यमंत्री भगवंत मान की अगुवाई में आम आदमी पार्टी सरकार ने अब इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए स्थायी समाधान के रूप में इस नए कानून की पहल की है।
बेअदबी विरोधी बिल के प्रमुख प्रावधान
उम्रकैद की सजा – धार्मिक ग्रंथों (जैसे गुरु ग्रंथ साहिब, श्रीमद्भगवद गीता, कुरान शरीफ, बाइबिल आदि) और धार्मिक स्थलों की बेअदबी के दोषियों को उम्रकैद की सजा दी जाएगी। पैरोल का अधिकार नहीं – दोषियों को पैरोल नहीं मिलेगा, यानी वह किसी भी परिस्थिति में सजा के दौरान अस्थायी रूप से रिहा नहीं हो सकेंगे। विशेष अदालतों का गठन – बेअदबी के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित की जाएंगी, जिससे इन मामलों में शीघ्र न्याय सुनिश्चित किया जा सके। कड़ी निगरानी और फास्ट ट्रैक ट्रायल – सरकार ऐसे मामलों की निगरानी के लिए विशेष सेल बना सकती है और मुकदमों को फास्ट ट्रैक मोड में चलाया जाएगा।
सियासी बहस का केंद्र बना बिल
जैसे ही मुख्यमंत्री मान ने विधानसभा में यह बिल पेश किया, विपक्षी दल कांग्रेस के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने आपत्ति जताई कि उन्हें बिल की प्रति सदन के भीतर ही सौंपी गई है और उसे पढ़ने और उस पर विचार करने का कोई पूर्व समय नहीं दिया गया। उन्होंने जोर देकर कहा, “यह एक गंभीर विषय है, इससे करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं। हमें इस पर गहराई से चर्चा करने का अधिकार मिलना चाहिए। सरकार इसे जल्दबाजी में पारित न करे।”
बाजवा की इस मांग पर स्पीकर ने सहमति जताई और बिल पर चर्चा को अगले दिन के लिए टाल दिया, जिससे सदन में व्यापक चर्चा और संशोधन की संभावनाएं बनी रहें। मुख्यमंत्री मान का दावा: “जनता की भावना का सम्मान”
बिल पेश करते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि यह कानून जनता की भावनाओं का सम्मान करता है और धार्मिक सहिष्णुता बनाए रखने के लिए अनिवार्य है। उन्होंने कहा,
“हमारा उद्देश्य किसी धर्म या समुदाय को प्राथमिकता देना नहीं है, बल्कि सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथों और स्थलों की गरिमा को बनाए रखना है। यह कानून केवल सजा देने के लिए नहीं, बल्कि समाज में सद्भाव और सम्मान बनाए रखने के लिए है।” मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि उनकी सरकार ने जो वादा किया था, वह अब पूरा किया जा रहा है, और यह कानून राज्य में कानून-व्यवस्था को मज़बूत करेगा।