
पंजाब में छोटे दुकानदारों और व्यापारियों को बड़ी राहत देते हुए मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की अध्यक्षता में बुधवार को आयोजित कैबिनेट बैठक में ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। मुख्यमंत्री ने खुद यह घोषणा की कि राज्य सरकार ने “इंस्पेक्टरी राज” का पूरी तरह से खात्मा कर दिया है। इसके साथ ही पंजाब दुकानदार एवं व्यापार स्थापना एक्ट, 1958 में अहम संशोधन किए गए हैं, जो व्यापारियों को सरकार की ओर से सहज और सहायक वातावरण देने की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे।
मुख्यमंत्री मान ने कहा, “हमने व्यापारियों की वर्षों पुरानी मांग को समझा और उसे पूरा किया। अब छोटे व्यापारियों को अनावश्यक निरीक्षण, एनओसी और अफसरशाही से छुटकारा मिलेगा।” इस फैसले को पंजाब सरकार की ‘प्रो-बिजनेस’ सोच का उदाहरण माना जा रहा है, जिसका सीधा लाभ राज्य के लाखों छोटे व्यवसायियों और उनके कर्मचारियों को मिलेगा।
इंस्पेक्टरी राज खत्म, अब नहीं होगी अनावश्यक जांच
कैबिनेट के फैसले के अनुसार, अब किसी भी दुकान पर अगर 20 या उससे कम कर्मचारी काम कर रहे हैं, तो उन्हें किसी तरह की इंस्पेक्शन या एनओसी की जरूरत नहीं होगी। इसका सीधा मतलब है कि अब लेबर इंस्पेक्टर या अन्य अधिकारी छोटे दुकानदारों के प्रतिष्ठानों पर जाकर अनावश्यक रूप से दस्तावेज़ों की जांच नहीं कर पाएंगे।
पंजाब सरकार के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 95 प्रतिशत दुकानें ऐसी हैं जहां 20 से कम कर्मचारी कार्यरत हैं, यानी यह निर्णय राज्य के लगभग सभी छोटे व्यापारियों को राहत देगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कदम छोटे व्यापारियों की आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता को मजबूती देगा और उन्हें सरकारी तंत्र से परेशान नहीं होना पड़ेगा।
ओवरटाइम नियमों में बड़ा बदलाव, मजदूरों की आमदनी में इजाफा
कैबिनेट ने ओवरटाइम की सीमा को भी तीन गुना कर दिया है। पहले तीन महीने में ओवरटाइम का अधिकतम समय 50 घंटे निर्धारित था, जिसे अब 144 घंटे कर दिया गया है। इससे दुकान या व्यापारिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों की अतिरिक्त आय बढ़ेगी, खासकर त्योहारों और मांग के समय। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा, “हमारे कर्मचारी मेहनती हैं और अक्सर त्योहारी सीजन में अतिरिक्त काम करते हैं। यह बदलाव उनके लिए आर्थिक रूप से लाभकारी होगा।”
इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि एक दिन में कर्मचारी को केवल 12 घंटे तक ही काम करवाया जा सकेगा। इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि श्रमिकों का शोषण न हो और उनका स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहे।
20 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों के लिए स्वीकृति की व्यवस्था
जहां 20 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, वहां अब यदि 24 घंटे के भीतर प्रशासनिक स्वीकृति नहीं दी जाती है, तो स्वीकृति ‘मौन स्वीकृति’ के रूप में मानी जाएगी। इसका उद्देश्य प्रशासनिक प्रक्रियाओं को तेज, पारदर्शी और जवाबदेह बनाना है।
इस व्यवस्था के तहत अब लेबर अफसरों की जवाबदेही भी तय की जाएगी, ताकि व्यापारियों को लंबे समय तक प्रतीक्षा में न रहना पड़े और वे निर्बाध रूप से अपने व्यापार को आगे बढ़ा सकें।
जुर्माना बढ़ाया गया, अब उल्लंघन नहीं चलेगा
जहां एक ओर सरकार ने छोटे व्यापारियों के हित में बड़े कदम उठाए हैं, वहीं कानून के उल्लंघन को रोकने के लिए जुर्माना राशि में भी संशोधन किया गया है। पहले जहां ओवरटाइम नियमों के उल्लंघन पर केवल ₹100 का जुर्माना था, अब इसे बढ़ाकर ₹30,000 तक कर दिया गया है। इसके अलावा, जुर्माने की सीमा ₹25 से ₹1,000 के बीच थी, जिसे अब पुनः परिभाषित किया गया है ताकि कानून का पालन न करने वालों पर प्रभावी कार्रवाई हो सके। मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि ओवरटाइम का उल्लंघन करने पर केस असिस्टेंट लेबर कमिश्नर के पास जाएगा, जो एक पारदर्शी जांच प्रक्रिया सुनिश्चित करेगा।
केवल तीन महीने में एक बार होगी इंस्पेक्शन
कैबिनेट के फैसले के अनुसार, अब इंस्पेक्टर को केवल तीन महीने में एक बार किसी प्रतिष्ठान की जांच करने की अनुमति होगी। यह सीमा पहले तय नहीं थी, जिससे कई बार व्यापारी बार-बार निरीक्षण के नाम पर परेशान होते थे। इस नई व्यवस्था से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग या बार-बार की अनावश्यक जांच से दुकानदारों को राहत मिले।
संशोधन को विधानसभा में लाया जाएगा
मुख्यमंत्री मान ने कहा कि इन सभी बदलावों को विधायी मंजूरी दिलाने के लिए पंजाब सरकार इस संशोधन विधेयक को विधानसभा के आगामी सत्र में पेश करेगी। इसके तहत लेबर एक्ट में आवश्यक बदलाव किए जाएंगे ताकि कानूनन सभी फैसले प्रभावी रूप से लागू हो सकें। मुख्यमंत्री ने कहा, “हम पंजाब को व्यापार के लिए सबसे अनुकूल राज्य बनाना चाहते हैं। हमारा लक्ष्य है कि छोटे व्यापारियों को शासन तंत्र से डर नहीं, सहयोग महसूस हो।”