चंडीगढ़, 2024: पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने गुरुवार को दुनियाभर में रहने वाले सभी पंजाबियों को दीपावली और बंदी छोड़ दिवस के पवित्र अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं दीं। अपने बधाई संदेश में, उन्होंने कहा कि दीपावली का त्योहार सदियों से प्रेम और समृद्धि का प्रतीक रहा है, जिसे लोग श्रद्धा और धार्मिक उत्साह के साथ मनाते आए हैं।
मुख्यमंत्री मान ने कहा कि “दीपावली की जगमगाती रोशनी न केवल हर घर को रोशन करती है, बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और निराशा पर आशा की जीत का भी प्रतीक है।” उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह दीपावली लोगों के लिए शांति, समृद्धि और खुशियों का संचार करेगी और सांप्रदायिक सद्भाव, शांति और भाईचारे के बंधन को मजबूत करेगी।
बंदी छोड़ दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 1612 में दीपावली के दिन छठे गुरु श्री हरगोबिंद साहिब द्वारा ग्वालियर किले से 52 हिंदू राजकुमारों की रिहाई के उपलक्ष्य में ऐतिहासिक बंदी छोड़ दिवस की बधाई भी दी। उन्होंने कहा, “यह दिन हमें याद दिलाता है कि अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का मार्ग हमेशा मौजूद रहता है।”
सामाजिक एकता की अपील
सीएम मान ने अपने संदेश में लोगों से अपील की कि वे जाति, रंग, पंथ और धर्म के संकीर्ण विचारों से ऊपर उठकर पारंपरिक उत्साह और उल्लास के साथ दीपावली और बंदी छोड़ दिवस मनाएं। उन्होंने कहा, “इससे सद्भाव, सौहार्द और सद्भावना के बंधन मजबूत होंगे।”
शांति और समृद्धि का संदेश
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि “दीपावली और बंदी छोड़ दिवस प्रदेश की जनता के लिए भरपूर आनंद के साथ-साथ शांति और समृद्धि लेकर आए।” उनका यह संदेश इस बात का प्रतीक है कि राज्य के विकास में हर व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण है और सामूहिक प्रयासों से ही समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
अकाल तख्त के जत्थेदार का संदेश
इस बीच, अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने सिख समुदाय से आग्रह किया है कि वे बंदी छोड़ दिवस (1 नवंबर) पर अपने घरों और अन्य इमारतों को बिजली की रोशनी से सजाने से परहेज करें। ज्ञानी रघबीर सिंह ने कहा कि यह दिन 1984 के सिख विरोधी दंगों की 40वीं बरसी के रूप में भी जाना जाता है, जब सिखों का निर्दयतापूर्वक नरसंहार किया गया था।
ऐतिहासिक संदर्भ
1 नवंबर 1984 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार के संरक्षण में राष्ट्रीय राजधानी सहित देश के 110 शहरों और कस्बों में सिखों का बेरहमी से नरसंहार हुआ था। ज्ञानी रघबीर सिंह ने सिखों से इस दिन को एक संकल्प दिवस के रूप में मानने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हमें अपने इतिहास को याद करते हुए पारंपरिक घी के दीयों का प्रयोग करना चाहिए, जो सिख संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
पारंपरिक दीयों का महत्व
ज्ञानी रघबीर सिंह ने कहा, “पारंपरिक घी के दीये हमारे सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं। ये दीये केवल प्रकाश का स्रोत नहीं हैं, बल्कि यह हमारे धैर्य, साहस और एकता का भी प्रतीक हैं। हमें इस दीपावली पर अपने अतीत को याद करते हुए अपने घरों को दीयों से सजाना चाहिए।”
सामाजिक सद्भाव की आवश्यकता
मुख्यमंत्री भगवंत मान और ज्ञानी रघबीर सिंह दोनों ने समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया। मुख्यमंत्री ने कहा, “आज का दिन हमें यह सिखाता है कि हम सभी को एकजुट होकर अपने समाज के कल्याण के लिए काम करना चाहिए।”
समावेशिता का संदेश
इस पर्व पर दी गई शुभकामनाओं में समावेशिता का संदेश स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आया है। मुख्यमंत्री मान ने जाति, रंग, और पंथ के संकीर्ण विचारों को छोड़कर सभी को एक साथ आने की अपील की। उनका यह संदेश न केवल पंजाब के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए प्रासंगिक है।