
पंजाब के फाजिल्का जिले के जलालाबाद हलके से किसानों के लिए एक ऐतिहासिक और खुशखबरी वाली खबर सामने आई है। 40 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद यहां के किसानों को पहली बार नहर से सीधा कृषि योग्य पानी मिलना शुरू हुआ है। इस उपलब्धि को संभव बनाया है नई सुहेलेवाला माइनर नहर, जो लगभग ₹23 करोड़ की लागत से बनी है और 8 किलोमीटर लंबी है।
इस नहर के चालू होते ही इलाके के 5500 एकड़ रकबे को नहरी पानी मिलना शुरू हो गया है, जिससे न सिर्फ फसल की पैदावार बढ़ेगी, बल्कि जमीन की उपजाऊ शक्ति भी। इसका सीधा असर किसानों की आर्थिक स्थिति और जमीन की कीमत पर पड़ा है। जिन जमीनों की कीमत पहले ₹10 लाख थी, अब वही जमीन ₹40 लाख तक पहुंच गई है।
चार दशकों का संघर्ष: अब जाकर मिली राहत
गांव ढाणी प्रेम सिंह, सुच्चा सिंह, गुरमीत सिंह, मलकीत सिंह और बलजीत सिंह जैसे कई किसान इस उपलब्धि को बेहद भावुक होकर साझा करते हैं। इनका कहना है कि पिछले 40 वर्षों से निजामवाह माइनर के नाम पर उन्हें केवल कागजों में पानी मिलता रहा। हकीकत में उनके खेतों तक पानी कभी नहीं पहुंचा।
किसानों ने आरोप लगाया कि हर बार राजनीतिक रसूख वाले लोग नहर के पास से ही अपने खेतों को सींच लेते थे, और बाकी गांवों के किसान बोरिंग और ट्यूबवेल के भरोसे खेती करते रहे। कई सरकारें आईं, लेकिन जमीन अधिग्रहण के मामले में राजनीतिक और कानूनी अड़चनों की वजह से नहर की मांग हमेशा अधूरी ही रह गई।
आम आदमी पार्टी की सरकार में पूरी हुई वर्षों पुरानी मांग
किसानों ने बताया कि आम आदमी पार्टी के शासन में जब उन्होंने विधायक जगदीप कंबोज गोल्डी के सामने अपनी पुरानी मांग दोहराई, तो उन्होंने न केवल उनकी बात सुनी, बल्कि त्वरित कार्रवाई भी शुरू की।
विधायक गोल्डी कंबोज ने किसानों की बात को सीधे सरकार तक पहुंचाया और कानूनी उलझनों को सुलझाते हुए सुहेलेवाला माइनर नहर के निर्माण का रास्ता साफ किया। नहर के निर्माण में कई राजनीतिक विरोध और तकनीकी समस्याएं आईं, लेकिन सरकार की इच्छाशक्ति के चलते यह परियोजना समय पर पूरी हो सकी।
23 करोड़ की लागत से बनी नई नहर, खेतों तक पहुंचा जीवनदायी पानी
सुहेलेवाला माइनर नहर का निर्माण एक मील का पत्थर माना जा रहा है। इससे पहले जहां किसान भूजल पर निर्भर थे, वहीं अब नहरी पानी से उन्हें राहत मिलेगी। यह नहर कुल 8 किलोमीटर लंबी है और 5500 एकड़ कृषि भूमि को सींचने में सक्षम है।
इस नहर के जरिये न केवल जल वितरण की समस्या का समाधान हुआ है, बल्कि फसल उत्पादन में सुधार, भूमि की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि और खेती की लागत में कमी जैसे लाभ भी किसानों को मिलेंगे। इसके अलावा ग्राउंड वॉटर के अत्यधिक दोहन पर भी रोक लगेगी।
भूमि मूल्य में चार गुना वृद्धि
गांव के किसानों ने बताया कि इस परियोजना के शुरू होते ही उनकी जमीन की मार्केट वैल्यू में जबरदस्त उछाल आया है। जहां पहले उनकी जमीनों की कीमत ₹10 लाख प्रति एकड़ थी, वहीं अब वह बढ़कर ₹40 लाख तक पहुंच चुकी है।
सरपंच सुच्चा सिंह कहते हैं, “हमने उम्मीद ही छोड़ दी थी कि कभी हमारे खेतों में नहर का पानी पहुंचेगा। लेकिन अब यह हकीकत बन गया है। यह सिर्फ पानी नहीं, बल्कि हमारे जीवन का पुनर्निर्माण है।”
अंडरग्राउंड पाइपलाइन से दूर तक पहुंचेगा पानी
विधायक गोल्डी कंबोज ने बताया कि नहर के निर्माण के साथ-साथ आधुनिक तकनीक का भी सहारा लिया गया है। अंडरग्राउंड पाइपलाइन बिछाई जा रही है, ताकि नहर से दूर बसे खेतों तक भी बिना किसी बाधा के पानी पहुंच सके। इससे पानी की बर्बादी कम होगी और जल वितरण भी नियंत्रित तरीके से होगा।
विधायक का कहना है कि यह परियोजना सिर्फ एक नहर निर्माण नहीं है, बल्कि यह कृषि सुधार, किसान कल्याण और ग्रामीण विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है।
14 गांवों को होगा सीधा लाभ
इस नहर से सिर्फ एक या दो गांव ही नहीं, बल्कि आसपास के 14 गांवों को सीधा फायदा होगा। इन गांवों के हजारों किसान दशकों से इस इंतजार में थे कि उन्हें भी नहरी पानी मिलेगा। अब उनके खेतों में नमी की कमी नहीं होगी और वे दो से तीन फसलें साल में उगा सकेंगे।