
पंजाब में सतलुज नदी का लगातार बढ़ता जलस्तर चिंता का विषय बना हुआ है। सतलुज से सटे गांवों में बाढ़ जैसे हालात हैं और फिरोजपुर जिले के 112 गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। हालात का जायजा लेने आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद संदीप पाठक मंगलवार को फिरोजपुर पहुंचे। उन्होंने हुसैनीवाला बॉर्डर के समीप स्थित सरहदी गांव गाटी राजोके में बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया और लोगों की परेशानियों को नजदीक से समझा।
संदीप पाठक ने दौरे के दौरान मीडिया से बातचीत में बताया कि पंजाब के 23 जिले इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित हैं। राज्यभर में अब तक 1200 से ज्यादा गांव बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है और किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है।
केंद्र सरकार से मदद की मांग
सांसद संदीप पाठक ने केंद्र सरकार से इस संकट में त्वरित मदद की अपील की। उन्होंने कहा, “सतलुज दरिया के किनारे की कच्ची जमीनों का मामला लंबे समय से लंबित है। यह पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधीन आता है और अब समय आ गया है कि इस पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए।”
उन्होंने यह भी बताया कि पंजाब सरकार ने केंद्र से रूरल डेवलपमेंट फंड की लंबित राशि जारी करने की मांग की है, ताकि गांवों के पुनर्निर्माण और सहायता कार्यों में तेजी लाई जा सके। मुख्यमंत्री द्वारा की गई ₹60,000 करोड़ की विशेष पैकेज की मांग को भी उन्होंने उचित ठहराया और केंद्र से इसे तुरंत मंजूर करने का अनुरोध किया।
बाढ़ से किसानों की आजीविका खतरे में
सबसे अधिक मार किसानों पर पड़ी है। सतलुज के किनारे बसे करीब 30 गांवों की 6,000 एकड़ से ज्यादा फसलें पूरी तरह से जलमग्न हो चुकी हैं। बाढ़ के पानी में धान, मक्का और सब्जियों की फसलें नष्ट हो गई हैं, जिससे किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है।
बाघा सिंह, जो कि गाटी राजोके गांव के किसान हैं, कहते हैं “पिछले चार दिन से खेतों में पानी भरा है। जो फसल 3 महीने की मेहनत से तैयार की थी, वो अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी है।” कई किसानों का कहना है कि बीज, खाद और कीटनाशकों पर उन्होंने जो खर्च किया था, उसकी भरपाई अब नामुमकिन लग रही है। साथ ही, आगामी रबी सीजन की तैयारियों पर भी यह संकट असर डाल सकता है।
घरों में भरा पांच से छह फीट तक पानी
पानी का स्तर लगातार बढ़ने से गांवों में रहने वाले लोगों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी दूभर हो गई है। कुछ घरों में पांच से छह फीट तक पानी भर चुका है, जिससे लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है।
स्थानीय निवासी सरबजीत कौर बताती हैं “हमने जरूरी सामान छत पर पहुंचा दिया है और मवेशियों को बांध पर शिफ्ट किया है। रात को सोना तक मुश्किल हो गया है, हर समय डर बना रहता है कि पानी और न बढ़ जाए।” गांव के कई लोगों ने जानवरों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया है। जिनके पास छत नहीं है या मकान कमजोर हैं, वे खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं।
प्रशासन ने शुरू किए राहत कार्य
मोगा प्रशासन ने स्थिति को गंभीरता से लेते हुए प्रभावित गांवों के लिए राहत कार्य शुरू किए हैं। तीन गांवों के निवासियों के लिए पास के दो सरकारी स्कूलों में राहत शिविर लगाए गए हैं। इन शिविरों में पीने का पानी, प्राथमिक चिकित्सा और भोजन की सुविधा मुहैया कराई जा रही है।
डिप्टी कमिश्नर (मोगा) के अनुसार “स्थिति पर नजर रखी जा रही है। जल स्तर बढ़ने पर और भी राहत शिविर लगाए जाएंगे। स्वास्थ्य विभाग की टीमें लगातार गांवों का दौरा कर रही हैं ताकि किसी भी प्रकार की बीमारी को फैलने से रोका जा सके।”
हालांकि, स्थानीय लोगों का मानना है कि राहत कार्यों में अभी भी काफी सुधार की जरूरत है। कुछ स्थानों पर पीने के साफ पानी और दवाइयों की कमी की शिकायतें भी सामने आई हैं।