
अल्लू अर्जुन की फिल्म पुष्पा 2, द रूल का इंतजार भारतीय सिनेमा प्रेमियों को लंबे समय से था और आखिरकार यह फिल्म रिलीज हो चुकी है। रिलीज होते ही इस फिल्म ने सारे रिकॉर्ड्स तोड़ दिए हैं और बॉक्स ऑफिस पर हाइएस्ट ओपनिंग के साथ इतिहास रच दिया है। हालांकि फिल्म की सफलता के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह फिल्म वाकई उतनी ही धमाकेदार है जितना इसके प्रचार से लगता है? क्या फिल्म को देखने लायक है या नहीं? तो चलिए, हम आपको बताते हैं वो 5 वजहें जो इस फिल्म को देखकर हर सिनेप्रेमी को खुशी से झूमने पर मजबूर कर देती हैं।
1. कहानी का दमदार टर्न और पुष्पा का साम्राज्य
पहली फिल्म में हमने देखा था कि कैसे पुष्पा अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहा था, लेकिन पुष्पा 2 में कहानी का मोड़ और भी ज्यादा दिलचस्प है। इस बार कहानी में जद्दोजहद ज्यादा है, क्योंकि साम्राज्य हासिल करना जितना कठिन होता है, उसे बनाए रखना उससे भी कहीं ज्यादा मुश्किल है। फिल्म में पुष्पा के सामने कई नई चुनौतियां हैं, और उसे हर कदम पर साबित करना है कि वह अपनी जगह पर क्यों है।
इस बार फिल्म में पुष्पा के पास रॉकी भाई जैसी पॉवर है, जिससे वह राज्य की राजनीति को भी अपने हाथ में करने की ताकत रखता है। यह सशक्त कहानी आपको दोबारा से पूरी तरह से जुड़ने के लिए मजबूर कर देती है। इस बार कहानी में उभरते हुए नए किरदार और पॉलीटिकल ट्विस्ट कहानी को और भी दिलचस्प बनाते हैं।
2. कमाल के ट्विस्ट एंड टर्न्स
यदि आप उन दर्शकों में से हैं जिन्हें फिल्म के हर मोड़ पर नए ट्विस्ट की उम्मीद रहती है, तो पुष्पा 2 आपको कभी निराश नहीं करेगी। फिल्म में जबरदस्त ट्विस्ट एंड टर्न्स हैं, जिनकी भरमार 2008 की रेस फिल्म से तुलना की जा सकती है। हालांकि, यहां बात की जाए तो यह सब पूरी तरह देसी अंदाज में है, और हर मोड़ पर आपको यही लगेगा कि अब क्या होने वाला है?
फिल्म में हर सीक्वेंस के साथ दर्शकों की उम्मीदें और उनके अनुमान को तोड़ा जाता है। पिछली फिल्म की तरह ही, इस फिल्म में भी आप जानते हुए भी हर बार यही सोचते हैं कि पुष्पा की जीत होने वाली है, लेकिन फिर भी आप उस जीत के लिए तसल्ली से इंतजार करते हैं। यह वही खासियत है जो पुष्पा 2 को देखने लायक बनाती है।
3. प्योर मसाला – दर्शक की सीट पर मजा ही मजा
अगर आप उन दर्शकों में से हैं, जो किसी फिल्म में क्लास और सेंसिबल डायलॉग्स की तलाश नहीं करते, बल्कि एक्शन, ड्रामा, और मास एंटरटेनमेंट चाहते हैं, तो पुष्पा 2 आपके लिए ही है। इस फिल्म में हर दूसरा सीन जबरदस्त एक्शन और तालियों की गड़गड़ाहट से भरा हुआ है, और सिनेमाघरों में यह फिल्म देखने का पूरा अनुभव ही अलग है।
फिल्म के दौरान जब जब एक्शन और ड्रामा का समंदर उफान पर आता है, सिनेमाघर में जैसे एक उत्सव का माहौल बन जाता है। आप बिल्कुल उसी जोश से फिल्म देखेंगे जैसे सलमान खान की फिल्मों में देखने को मिलता है। इस फिल्म में न तो आपको कोई गहरे संदेश मिलेंगे और न ही बहुत ज्यादा सोचने का समय मिलेगा, लेकिन इसे देखने के दौरान जो जोश और उमंग आपको मिलेगी, वही फिल्म की असली ताकत है।
4. एक्टिंग: अल्लू अर्जुन से लेकर फहाद फासिल तक
अल्लू अर्जुन ने पुष्पा 2 में अपनी एक्टिंग से वो सब कुछ साबित किया है, जो वह पहले ही अपनी पहली फिल्म में दिखा चुके थे। लेकिन तीन साल के गैप के बाद उनका किरदार और भी ज्यादा निखर कर सामने आया है। फिल्म में उनका अभिनय और भी ज्यादा गहराई और वैरायटी से भरपूर है। पुष्पा के किरदार में वह न केवल अपनी फिजिकल एक्टिंग से प्रभावित करते हैं, बल्कि भावनात्मक तौर पर भी इस बार उनका प्रदर्शन बेहद शानदार है।
रश्मिका मंदाना को इस फिल्म में प्रॉपर स्पेस मिला है और उन्होंने अपने रोल को बहुत समझदारी से निभाया है। उनका किरदार पहले से कहीं ज्यादा मजबूत नजर आता है। लेकिन फिल्म का सबसे खास और बेहतरीन हिस्सा है फहाद फासिल। उनके विलेन के किरदार में जो खलनायक की छवि है, वह दर्शकों को सिहरन से भर देती है। उनके आने से फिल्म में एक नई चमक आती है और वह हर सीन में अपनी छाप छोड़ जाते हैं। उनके अभिनय में वह गहराई है, जो फिल्म की पूरी कहानी में जान डाल देती है।
5. एक्शन और डायरेक्शन: सुकुमार की मास्टरपिस डायरेक्शन
पुष्पा 2 में एक्शन वैसे ही हैं जैसे साउथ की फिल्मों में आमतौर पर होते हैं, लेकिन निर्देशक सुकुमार ने इन्हें और भी ज्यादा इंटेन्स और प्रभावशाली बना दिया है। फिल्म में एक लंबा एक्शन सीक्वेंस है जहां पुष्पा, मां काली के गेटअप में लड़ाई करता है। इस सीन को देख कर यही महसूस होता है कि यह किसी कविता की तरह लिखा गया है। इसका मतलब यह है कि सुकुमार ने पूरी कहानी को उस तरह से बुना है जैसे संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में करते हैं, यानी हर दृश्य को एक कला के रूप में पेश किया गया है।
सुकुमार का निर्देशन शिखर पर है और उन्होंने फिल्म के हर पल को दर्शकों के दिलों में बसाने की पूरी कोशिश की है। हर सीन को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि दर्शक अपनी सीट से चिपके रहें और बार-बार सीटी बजाएं। उनके निर्देशन में फिल्म के इल्लॉजिकल पहलू भी दर्शकों को लॉजिकल और प्रभावशाली लगे हैं।