
राजधानी देहरादून में आयोजित एक महत्वपूर्ण मानवाधिकार गोष्ठी के दौरान वरिष्ठ पत्रकार विक्रम श्रीवास्तव को उनकी निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए ‘मानव अधिकार संरक्षण रत्न’ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें अंकिता भंडारी हत्याकांड जैसे संवेदनशील मामलों को निडरता, निष्पक्षता और जनभावनाओं के साथ प्रस्तुत करने के लिए दिया गया।
कार्यक्रम का आयोजन मानव अधिकार संरक्षण केंद्र, उत्तराखण्ड द्वारा दून लाइब्रेरी सभागार में किया गया। इस अवसर पर गोष्ठी का विषय था,“आइडिया एक्सचेंज: अंकिता भंडारी हत्याकांड – निष्पक्षता, जाँच से लेकर न्याय तक की यात्रा”।
न्याय के रास्ते में पत्रकारिता की भूमिका
इस गोष्ठी ने न केवल मानवाधिकार के मुद्दों को केंद्र में रखा, बल्कि यह भी दर्शाया कि किस तरह पत्रकारिता समाज के लिए एक आईना बनकर उभरती है। न्यायमूर्ति राजेश टंडन (अ.प्र.), पीठासीन सदस्य नैनीताल उच्च न्यायालय एवं केंद्रीय अध्यक्ष, मानव अधिकार संरक्षण केंद्र, उत्तराखण्ड ने इस आयोजन की अध्यक्षता की। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि— “आज के समय में जब सूचना का प्रवाह तेज़ है, तब निष्पक्ष पत्रकारिता का महत्व और भी बढ़ जाता है। पत्रकारों को सत्य के साथ खड़ा रहना होता है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।”
कार्यक्रम का संचालन और सवाल-जवाब
गोष्ठी का संचालन कुंवर राज अस्थाना, संपादक दिव्य हिमगिरी, ने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे धीरेंद्र गुंज्याल, सहायक महानिरीक्षक, कारागार विभाग। उन्होंने उपस्थित श्रोताओं और गणमान्य लोगों के अंकिता भंडारी प्रकरण से जुड़े सवालों का उत्तर दिया। उन्होंने माना कि— “यह मामला केवल कानूनी या पुलिस जांच तक सीमित नहीं रहा। इसमें मीडिया की भूमिका एक बड़ी शक्ति के रूप में सामने आई, जिसने पूरे मामले को जनता के सामने निष्पक्ष रूप से रखा।”
विक्रम श्रीवास्तव: जिम्मेदारी का पर्याय
इसी कार्यक्रम के दौरान, दैनिक भास्कर के ब्यूरो चीफ़ विक्रम श्रीवास्तव को ‘मानव अधिकार संरक्षण रत्न’ सम्मान से नवाज़ा गया। यह सम्मान उन्हें अंकिता भंडारी हत्याकांड की गहराई से निष्पक्ष रिपोर्टिंग करने, पीड़ित परिवार की आवाज़ को राष्ट्रीय मंच पर लाने, और पूरे प्रकरण को न्याय तक पहुँचाने में मीडिया की सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए दिया गया।
सम्मान ग्रहण करते हुए विक्रम श्रीवास्तव ने कहा— “पत्रकारिता हमारे लिए शब्दों का खेल नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है। हम जीवंत साँसों को अपने लेखों के माध्यम से दुनिया के सामने लाते हैं। कई बार कुछ लेख इतने भावनात्मक हो जाते हैं कि उन्हें लिखते हुए हमारी भी आँखें नम हो जाती हैं। हम प्रयास करेंगे कि भविष्य में भी निष्पक्षता और सच्चाई के साथ समाज की सेवा करते रहें।”
मीडिया की भूमिका पर व्यापक चर्चा
गोष्ठी में मौजूद अन्य वक्ताओं ने भी मीडिया की भूमिका की सराहना की। उन्होंने माना कि अगर पत्रकारिता निष्पक्ष न होती, तो संभवतः अंकिता भंडारी को न्याय मिलने में और अधिक समय लग सकता था।
गोष्ठी में यह भी चर्चा हुई कि कैसे कुछ मीडिया संस्थानों ने TRP की दौड़ में इस मामले को सनसनीखेज़ बनाने की कोशिश की, लेकिन इसके बावजूद कई पत्रकारों ने अपने मूल्यों के साथ खड़े रहकर सत्य को सामने रखा। विक्रम श्रीवास्तव का नाम इन्हीं पत्रकारों में प्रमुख रूप से लिया गया।
मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम
मानव अधिकार संरक्षण केंद्र, उत्तराखण्ड द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम केवल एक गोष्ठी नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और पत्रकारिता की नैतिकता के बीच संवाद का एक सशक्त माध्यम बना। यह दिखाता है कि लोकतंत्र में चौथे स्तंभ की भूमिका कितनी निर्णायक होती है।
कार्यक्रम में प्रमुख उपस्थिति
इस मौके पर राज्य के कई वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, विधिक विशेषज्ञ, मानवाधिकार कार्यकर्ता और विभिन्न छात्र संगठनों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में मानव अधिकार संरक्षण केंद्र की ओर से घोषणा की गई कि ऐसे पत्रकारों को आगे भी सम्मानित किया जाएगा जो समाज में बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं, न कि केवल सनसनी फैलाने के लिए।