
देश में मतदाता अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी करते हुए चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि वह SIR (Special Summary Revision) ड्राफ्ट लिस्ट से छूटे मतदाताओं की जानकारी को सार्वजनिक और सुलभ बनाए।
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि आम मतदाता को यह जानने के लिए किसी बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) या राजनीतिक दल के बूथ एजेंट (BLA) के चक्कर नहीं लगाने चाहिए कि उनका नाम लिस्ट में है या नहीं। यह जानकारी लोगों को डिजिटल और पारदर्शी तरीके से मिलनी चाहिए।
मामला क्या है?
देश भर में चल रही विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के दौरान कई लोगों के नाम ड्राफ्ट लिस्ट से छूट गए हैं, जिसे लेकर अदालत में याचिकाएं दाखिल हुई थीं। इन याचिकाओं में यह सवाल उठाया गया था कि मतदाताओं को यह जानकारी नहीं मिल पा रही कि उनका नाम क्यों छूटा और उन्हें इसका कैसे पता चलेगा।
गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह मानते हुए कि मतदाता सूची एक सार्वजनिक दस्तावेज है, निर्देश दिए कि इसका अधिकतम डिजिटलीकरण और सुलभता जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट के अहम निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को जो विशेष कदम उठाने को कहा है, वे इस प्रकार हैं:
- हर जिले के लिए अलग वेबसाइट हो:
प्रत्येक जिले के लिए अलग वेबसाइट बनाई जाए जिसमें SIR ड्राफ्ट लिस्ट से छूटे मतदाताओं की जानकारी हो। - बूथ स्तर की जानकारी उपलब्ध हो:
जानकारी बूथवार उपलब्ध हो और लोग EPIC नंबर (मतदाता पहचान पत्र नंबर) डालकर देख सकें कि उनका नाम सूची में क्यों नहीं है। - नाम छूटने का कारण भी दिखे:
यदि किसी मतदाता का नाम ड्राफ्ट लिस्ट में नहीं है, तो कारण स्पष्ट रूप से लिखा जाए – जैसे पता गलत, दस्तावेज अधूरे, या अन्य तकनीकी कारण। - पब्लिक नोटिस और प्रचार:
वेबसाइट की जानकारी और प्रक्रिया का स्थानीय मीडिया, सरकारी सोशल मीडिया चैनलों, और पंचायत स्तर पर पब्लिक नोटिस के माध्यम से विस्तृत प्रचार किया जाए। - आधार के ज़रिए दावा:
पब्लिक नोटिस में स्पष्ट रूप से बताया जाए कि कोई भी व्यक्ति अपने आधार कार्ड की कॉपी संलग्न कर अपना दावा या आपत्ति दाखिल कर सकता है। - BLO को सूची सार्वजनिक करने के निर्देश:
प्रत्येक BLO अपने क्षेत्र में पंचायत भवन और ब्लॉक कार्यालय में लिस्ट लगाएंगे जिसमें यह दिखाया जाएगा कि किन-किन लोगों के नाम क्यों छूटे हैं। - राज्य निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर अपलोड:
सभी जिलावार लिस्ट को राज्य के मुख्य निर्वाचन आयुक्त की वेबसाइट पर भी अपलोड किया जाए। - अनुपालन रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को भेजी जाए:
बूथ और जिला स्तर के अधिकारी जो कार्रवाई करेंगे, उसकी रिपोर्ट लेकर चुनाव आयोग को 22 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट में पेश करनी होगी।
“सूचना के लिए किसी पर निर्भर रहना न पड़े” – सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह लोकतंत्र की बुनियादी भावना के खिलाफ है कि एक आम नागरिक को यह जानने के लिए कि वह वोटर लिस्ट में है या नहीं, किसी BLO या किसी पार्टी के कार्यकर्ता पर निर्भर रहना पड़े। “सूचना का अधिकार मौलिक है। यदि कोई मतदाता लिस्ट में नहीं है, तो उसे या उसके परिवार को यह पता चलना चाहिए ताकि समय रहते सुधार का दावा किया जा सके।”
सुनवाई में क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की तरफ से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि आयोग मतदाताओं को जानकारी देने में किसी प्रकार की आपत्ति नहीं रखता।“हमारी आपत्ति केवल इस बात पर है कि कोई NGO पूरी मतदाता सूची पाने को अपना अधिकार न माने। व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा का भी ध्यान रखना जरूरी है।”
कोर्ट ने इस पर कहा कि जानकारी को बूथ स्तर तक सीमित रखा जाए और केवल वह व्यक्ति जिसकी जानकारी हो, उसे अपने EPIC नंबर से जानकारी मिले। यह डेटा सार्वजनिक न होकर प्राइवेटली एक्सेसिबल होना चाहिए।
क्यों है यह निर्देश महत्वपूर्ण?
पारदर्शिता में वृद्धि:
मतदाता सूची सार्वजनिक होती है, लेकिन अब इसे डिजिटल रूप से ज्यादा पारदर्शी और सुलभ बनाया जा रहा है।
आधुनिक टेक्नोलॉजी का प्रयोग:
EPIC नंबर के माध्यम से व्यक्ति विशेष अपनी जानकारी तक पहुंच सकता है, जिससे डेटा सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।
लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होंगी:
यदि एक योग्य नागरिक को यह भी न पता हो कि उसका नाम वोटर लिस्ट में क्यों नहीं है, तो यह चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है। यह निर्देश उस अंतर को खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम है।
अगली सुनवाई 22 अगस्त को
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि चुनाव आयोग को 22 अगस्त, दोपहर 2 बजे तक पूरी कार्यप्रगति की रिपोर्ट सौंपनी होगी। उसी दिन याचिकाकर्ताओं की तरफ से अतिरिक्त सुझावों और आपत्तियों पर भी सुनवाई की जाएगी।