देहरादून: एनवायरनमेंट एक्शन एंड एडवोकेसी ग्रुप एसडीसी फाउंडेशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक ‘मेकिंग मोलहिल्स ऑफ माउंटेन’ पुस्तक का विमोचन किया गया विमोचन समारोह में जलवायु और पर्यावरण से जुड़े लेखकों ने पहाड़ की पर्यावरण संबंधी चिन्ताओं, क्लामेट चेंज, सेस्टेनेबल डेवलपमेंट और विकास व पर्यावरण संबंधी सरकारी नीतियों पर अपनी बात रखी। एसडीसी फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल और फाउंडेशन से जुड़ी प्रेरणा रतूड़ी द्वारा संपादित इस पुस्तक में 14 लेखकों ने अलग-अलग मुद्दों पर लेख लिखे हैं। इनमें सिलक्यारा हादसे से लेकर जोशीमठ भूधंसाव से लेकर उत्तराखंड में स्वास्थ्य मॉडल तक शामिल हैं। राज्यपाल ले. जन. सेवानिवृत्त गुरमीत सिंह ने पुस्तक को लेकर अपना विशेष संदेश दिया है। पुस्तक की प्रस्तावना दून लाइब्रेरी के बीके जोशी ने लिखी है। पुस्तक विमोचन समारोह में इनमें से कुछ लेखक भी मौजूद थे। सभी लेखकों ने अपनी बात रखी। इनके अलावा पुस्तक में जिन लेखकों के लेख प्रकाशित किये गये हैं, उनमें एसडीआरएफ के कमांडेंट मणिकांत मिश्रा,एम्स ऋषिकेश ट्रामा सेंटर के हेड डॉ. मधुर उनियाल, एन्वायर्नमेंट लॉयर अर्चना वैद्य और विक्रम हेगड़े, आईआईपी के पूर्व निदेशक डॉ रंजन रे, इतिहासकार लोकेश ओहरी, युवा पत्रकार वैष्णवी राठौर और प्रियदर्शनी पटेल शामिल हैं। डॉ. नवीन जुयाल और डॉ. ज्योत्स्ना दुबे ने एक्सपर्ट के तौर पर रिपोर्ट का अध्ययन किया।
सिलक्यारा टनल हादसे में चर्चा में आये गबर सिंह नेगी, केदारनाथ आपदा प्रभावित भणिग्राम की ग्राम प्रधान ज्योति सेमवाल, शीतलाखेत अल्मोड़ा की अनिता कंवल और एसडीआरएफ के इंस्पेक्टर प्रमोद रावत पर ह्यूमन एंगल स्टोरी भी पुस्तक में प्रकाशित की गई हैं। सभी चारों स्टोरी प्रेरणा रतूड़ी ने लिखी हैं। भूवैज्ञानिक डॉ. वाईपी सुन्दरियाल ने इस पुस्तक को एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बताया। उन्होंने कहा कि पुस्तक में जिस तरह से डेटा प्रकाशित किया गया है, वह न सिर्फ प्लानिंग में बल्कि रिसर्च में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उनका कहना था कि हमारे पास डेटा का सख्त अभाव है और सरकारी विभाग डेटा को लेकर संवेदनशील नहीं हैं।
उत्तराखंड आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण प्राधिकरण के निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला का कहना था कि पहले लोग खेती की जमीन में घर नहीं बनाते थे। घर ऊंचाई पर बनते थे। बाद में आबादी बढ़ी तो लोग उन जगहों पर भी बसने लगे, जो भूस्खलन के दृष्टि से संवेदनशील होते हैं। जोशीमठ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या जल निकासी की है। यदि जल निकासी की उचित व्यवस्था नहीं की गई तो भविष्य में कई और जगहों पर भी जोशीमठ जैसे हालात बन सकते हैं।
भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती ने सरकारों के विकास के मॉडल पर सवाल उठाये। विभिन्न रिसर्च पेपर्स का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि योजनाएं बनाते वक्त इन रिसर्च को ध्यान में रखने के बजाय नीति निर्माता ऐसी रिसर्च के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। हाल के वर्षों में हुई मौसम संबंधी अप्रत्याशित घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पहले जहां कम बारिश होती थी, वहां अब ज्यादा हो रही है। उन्होंने योजनाएं बनाते समय इन बातों का ध्यान रखने की जरूरत बताई।
नैनीताल हाई कोर्ट में जोशीमठ सहित विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों की पैरवी करने वाली एडवोकेट स्निग्धा तिवारी और अभिजय नेगी ने कहा कि सरकारें विशेषज्ञों के रिपोर्टों पर ध्यान नहीं दे रही हैं और उन्हें आम लोगों से भी दूर रखने के प्रयास किये जा रहे हैं। जोशीमठ भूधंसाव की जांच संबंधी रिपोर्टों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इन रिपोर्टों को सार्वजनिक करने के लिए भी उन्हें कोर्ट का सहारा लेना पड़ा।
पर्यावरण के क्षेत्र में पीएचडी स्कॉलर रमेश गोस्वामी का कहना था कि विकास और पर्यावरण के बीच समन्वय की जरूरत है। सड़कों से कुछ लोगों को व्यक्तिगत रूप से नुकसान होता है, लेकिन एक बड़ी आबादी को सुविधा भी मिलती है। उन्होंने पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाकर विकास करने की जरूरत बताई। पुस्तक के प्रकाशक अभिमन्यु गहलौत ने कहा कि इस तरह की पुस्तकें समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती हैं।
एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल ने कहा कि यह पुस्तक 4 अक्टूबर 2022 को द्रोपदी का डांडा पर्वतारोहण अभियान में मारे गये 29 युवाओं को समर्पित की गई है। उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद से ही एडीसी फाउंडेशन ने बड़ी आपदाओं और दुर्घटनाओं पर मासिक रिपोर्ट बनाने का सिलसिला शुरू किया था। अब तक फाउंडेशन ने 16 रिपोर्ट जारी कर दी हैं। कार्यक्रम का संचालन प्रेरणा रतूड़ी ने किया।
इस मौके पर बड़ी संख्या में मौजूद लोगों में मुख्य रूप से पूर्व मुख्य सचिव एनएस नपलच्याल, इंदु पांडे, पूर्व आईएएस अधिकारी विभापुरी दास, डब्ल्यूआईआई के वैज्ञानिक डॉ. डीएस रावत, वाडिया इंस्टीट्यूट के डॉ. पीएस नेगी, मेजर जन. आनन्द रावत, तान्या शैली आदि मौजूद थे।