प्रयागराज, 16 जनवरी 2025: एप्पल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स ने महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए प्रयागराज का दौरा किया था, लेकिन एलर्जी की समस्या के कारण वह केवल तीन दिन में ही वापस लौट गईं। लॉरेन पॉवेल ने 13 जनवरी को महाकुंभ में भाग लेने के लिए प्रयागराज का रुख किया था, जहां वह निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि के शिविर में ठहरीं। हालांकि, स्वास्थ्य की समस्या के चलते वह अपनी यात्रा को छोटा करते हुए महाकुंभ से वापस लौट गईं और अब भूटान में कुछ समय के लिए प्रवास करेंगी।
लॉरेन ने लिया आध्यात्मिक दीक्षा
लॉरेन पॉवेल जॉब्स की यात्रा का उद्देश्य आध्यात्मिकता की खोज था। महाकुंभ के दौरान उन्होंने स्वामी कैलाशानंद गिरि से दीक्षा ली, जहां उन्हें महाकाली के बीज मंत्र की दीक्षा दी गई। लॉरेन को “कमला” नाम दिया गया और वह अब ‘ॐ क्रीं महाकालिका नमः’ का जाप करेंगी। स्वामी कैलाशानंद गिरि ने बताया कि लॉरेन एक बहुत ही सरल, सौम्य और विनम्र व्यक्तित्व की धनी हैं, जिन्होंने महाकुंभ में अपनी आस्था और श्रद्धा से सभी को प्रभावित किया। उनके आचरण से यह स्पष्ट हुआ कि वह दुनिया के सबसे अमीर और प्रसिद्ध लोगों में से होने के बावजूद अहंकार रहित हैं और उनकी जीवनशैली में किसी प्रकार का दिखावा नहीं है।
स्वामी ने कहा, “लॉरेन का आचरण और साधु-संतों के साथ उनका संबंध इस बात का प्रतीक है कि वह केवल आध्यात्मिकता की खोज में नहीं, बल्कि सनातनी संस्कृति और आस्था के मूल को जानने के लिए आई हैं।” इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि लॉरेन ने महाकुंभ में पहले बार भाग लिया है और यह उनके जीवन का एक अनोखा अनुभव था।
काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद महाकुंभ आईं लॉरेन
लॉरेन पॉवेल जॉब्स महाकुंभ में भाग लेने से पहले काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गईं। उन्होंने गंगा नदी में नौका विहार के बाद बाबा विश्वनाथ के दरबार में पहुंचकर आशीर्वाद लिया। हालांकि, सनातन धर्म में शिवलिंग का स्पर्श नहीं करने का नियम है, इस कारण लॉरेन ने गर्भगृह के बाहर से ही दर्शन किए। रिपोर्ट्स के अनुसार, उनका यह कदम भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति गहरी श्रद्धा को दर्शाता है।
स्टीव जॉब्स की भारत यात्रा का सपना
लॉरेन पॉवेल का महाकुंभ में आना, कुछ हद तक उनके पति स्टीव जॉब्स के भारत आने की इच्छा को पूरा करने का प्रयास भी माना जा रहा है। 1974 में स्टीव जॉब्स ने एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने भारत आने और कुंभ मेला देखने की इच्छा जताई थी। हालांकि, यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी, लेकिन अब उनकी पत्नी लॉरेन ने उनकी इच्छा को निभाने के लिए महाकुंभ में भाग लिया है।
महाकुंभ के लिए नई उड़ान सेवा
इस बार महाकुंभ में भाग लेने के लिए अंतरराष्ट्रीय उड़ान सेवा भी शुरू की गई है। 93 साल बाद, प्रयागराज एयरपोर्ट से एक इंटरनेशनल फ्लाइट ने अपनी उड़ान भरी, जो लॉरेन पॉवेल जॉब्स को भूटान ले जाने के लिए थी। इस फ्लाइट ने महाकुंभ के दौरान विदेशों से आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए एक नई सुविधा का परिचय दिया है। यह पहली बार है कि प्रयागराज एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन विभाग के कर्मचारियों की तैनाती की गई है, जिससे विदेशी नागरिकों के लिए सुविधाएं बढ़ाई गई हैं।
एलर्जी के कारण यात्रा में आई रुकावट
महाकुंभ में शामिल होने के लिए आई लॉरेन पॉवेल जॉब्स को एलर्जी की समस्या का सामना करना पड़ा। हालांकि उनका स्वास्थ्य इस समय स्थिर है, लेकिन एलर्जी के कारण उन्होंने अपनी यात्रा को छोटा करने का निर्णय लिया। उनकी यात्रा की योजना के अनुसार, वह अब भूटान में कुछ दिन रुकेंगी, जहां वह अपनी चिकित्सा देखभाल और आराम करने के लिए समय बिताएंगी।
मीडिया रिपोर्ट्स और ऐतिहासिक संदर्भ
महाकुंभ की इस बार की यात्रा ने ऐतिहासिक संदर्भ भी स्थापित किया है। स्टीव जॉब्स का 1974 में लिखा गया पत्र, जो अब 4.32 करोड़ रुपये में बिका है, इस यात्रा से जुड़ा हुआ एक दिलचस्प मोड़ प्रस्तुत करता है। यह पत्र जॉब्स की भारत में आने की इच्छा को उजागर करता है, और यह पूरी यात्रा इस दृषटिकोन से महत्वपूर्ण बन गई है कि कैसे एक व्यक्ति के सपने को पूरा करने के लिए दूसरे व्यक्ति ने कदम बढ़ाया।
निष्कर्ष
लॉरेन पॉवेल जॉब्स की महाकुंभ यात्रा न केवल एक आध्यात्मिक खोज का हिस्सा रही, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और इतिहास से जुड़ी एक गहरी समझ को दर्शाती है। उनके द्वारा की गई सादगी और आस्था की ओर झुकाव ने महाकुंभ में एक विशेष स्थान बना लिया है। स्टीव जॉब्स के सपने को पूरा करने के साथ-साथ यह यात्रा उनके जीवन के एक अनोखे अध्याय का हिस्सा बन गई है।