
पंजाब के मोगा जिले में सतलुज नदी का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है और इसका सीधा असर जिले के धर्मकोट उपमंडल के गांवों पर देखने को मिल रहा है। संघेड़ा, कंबो खुर्द, सेरेवाला और आसपास के करीब 30 गांव बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। खेतों में खड़ी हजारों एकड़ फसल डूब चुकी है और ग्रामीणों की दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित हो गई है। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि लोग अब नावों के सहारे अपने घरों और खेतों तक पहुंचने को मजबूर हैं।
बढ़ते जलस्तर ने बढ़ाई मुसीबतें
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, वीरवार शाम लगभग 4 बजे से सतलुज नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ना शुरू हुआ। महज कुछ ही घंटों में खेत पानी से लबालब भर गए और गांवों के रास्ते डूब गए। शुक्रवार सुबह तक कई घरों में पानी घुस चुका था। कई गांवों में घरों का पहला तल जलमग्न हो गया है, जिससे लोगों ने अपना जरूरी सामान छतों पर शिफ्ट कर दिया है।
नाव बना एकमात्र सहारा
बाढ़ की वजह से गांवों का आपसी संपर्क पूरी तरह टूट चुका है। गांव के अंदर और बाहर जाने के लिए सड़कों का इस्तेमाल संभव नहीं रह गया है। ऐसे में लोगों को नावों का सहारा लेना पड़ रहा है। कई ग्रामीण अपने बच्चों और बुजुर्गों को नाव के जरिए सुरक्षित स्थानों तक पहुंचा रहे हैं। लेकिन सभी गांवों में नावों की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, जिससे हालात और ज्यादा गंभीर हो रहे हैं।
पशुओं को बचाने की जद्दोजहद
बाढ़ ने सिर्फ इंसानों की जिंदगी नहीं, बल्कि पशुधन को भी खतरे में डाल दिया है। ग्रामीणों ने अपने पशुओं को गांव के ऊंचे स्थानों या फिर सतलुज नदी के बांधों पर बांध दिया है। लेकिन वहां तक चारा पहुंचाना संभव नहीं हो रहा है, क्योंकि पूरा चारा पहले ही बाढ़ में बह चुका है या भीग चुका है। पशुपालकों का कहना है कि अगर अगले एक-दो दिन में चारे का इंतजाम नहीं हुआ तो जानवरों की जान पर बन सकती है।
पीने के पानी की भीषण किल्लत
गांवों में एक और गंभीर समस्या सामने आ रही है — पीने के पानी की। बाढ़ के कारण खेतों के साथ-साथ हैंडपंप और कुएं भी जलमग्न हो चुके हैं। इससे ग्रामीणों को साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। स्थानीय निवासी जसविंदर सिंह बताते हैं, “हमारे गांव में हैंडपंप पूरी तरह पानी में डूब चुके हैं। बच्चों और बुजुर्गों के लिए पानी का इंतजाम करना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।”
6 हजार एकड़ फसल जलमग्न, किसानों को भारी नुकसान की आशंका
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सतलुज नदी के आसपास के गांवों में करीब 6,000 एकड़ कृषि भूमि पर धान और मक्के की फसलें खड़ी थीं। बाढ़ के पानी ने इन फसलों को पूरी तरह डुबो दिया है। अगर जलस्तर में और वृद्धि होती है या डैम से अतिरिक्त पानी छोड़ा गया, तो ये फसलें पूरी तरह नष्ट हो सकती हैं। इससे किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। किसान पहले ही महंगाई और मौसम की मार से जूझ रहे हैं, ऐसे में यह आपदा उनके लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है।
हर साल दोहराता है संकट, लेकिन समाधान नहीं
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि सतलुज का यह संकट हर साल बरसात के मौसम में सामने आता है, लेकिन इस बार पानी का स्तर अप्रत्याशित रूप से तेजी से बढ़ा है। सेरेवाला गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग गुरनाम सिंह कहते हैं, “हर साल पानी आता है, लेकिन इस बार हालात हाथ से निकलते जा रहे हैं। लोग रात-रात जागकर अपने परिवार और पशुओं को सुरक्षित रखने की कोशिश कर रहे हैं।”