नई दिल्ली – हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें दावा किया गया है कि देश में अरबपतियों की संख्या बढ़कर 185 हो गई है। UBS द्वारा जारी की गई ‘बिलियनेयर्स एम्बिशंस’ रिपोर्ट के मुताबिक, जहां एक तरफ देश में अमीरों की तादाद में तेजी से इजाफा हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ मिडिल क्लास के हालात दिन-ब-दिन कठिन होते जा रहे हैं। इस रिपोर्ट ने न केवल अरबपतियों की बढ़ती संख्या की ओर इशारा किया, बल्कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों के दर्द को भी उजागर किया है, जिन्हें कभी न खत्म होने वाले काम के बोझ, असमान सैलरी हाइक, और नौकरी की अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।
प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों का दर्द
यह रिपोर्ट विशेष रूप से उन कर्मचारियों के लिए एक कड़ी सच्चाई लेकर आई है जो प्राइवेट और कॉर्पोरेट सेक्टर में काम कर रहे हैं। प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों के लिए काम के घंटे तय नहीं होते, छुट्टियों की कोई गारंटी नहीं होती और ‘परफॉर्मेंस के आधार पर बोनस’ जैसी सैलरी की योजना भी महज एक छलावा बनकर रह जाती है।
रिपोर्ट में यह बताया गया है कि पारिवारिक दबाव, नौकरी की अनिश्चितता, और कम सैलरी जैसे कारकों ने कर्मचारियों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया है। जहां कंपनियां लगातार प्रॉफिट बढ़ाने में जुटी हैं, वहीं कर्मचारियों के हक में कोई सुधार नहीं किया जा रहा है। कार्यस्थल पर “टारगेट पूरा करने का दबाव” इतना अधिक हो गया है कि कर्मचारियों का व्यक्तिगत जीवन भी प्रभावित हो रहा है।
यह स्थिति दो धारी तलवार की तरह हो गई है, जिसमें एक तरफ छंटनी की तलवार लटकती रहती है और दूसरी तरफ, कम सैलरी और ब्याज दरों में वृद्धि के बावजूद कर्मचारियों के परिवार का पालन-पोषण करना होता है।
सैलरी इंक्रीमेंट की सच्चाई
रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 से 2023 के बीच, देश के 6 प्रमुख सेक्टरों में सैलरी इंक्रीमेंट औसतन 0.8 फीसदी रहा है। विशेषकर इंजीनियरिंग, मैन्युफैक्चरिंग, प्रोसेस, और इन्फ्रा सेक्टर में सैलरी बढ़ोतरी का औसत मात्र 0.8 फीसदी था, जबकि FMCG सेक्टर में यह आंकड़ा 5.4 फीसदी रहा।
यह इंक्रीमेंट महंगाई दर के मुकाबले बहुत कम है। महंगाई बढ़ने के साथ, कर्मचारियों के इंक्रीमेंट को यदि महंगाई दर से तुलना की जाए, तो यह दर निगेटिव ही साबित होती है। इसके बावजूद कंपनियों ने अपने लाभ में भारी बढ़ोतरी की है, जिससे यह सवाल उठता है कि यदि कंपनियां मुनाफा बढ़ा सकती हैं तो फिर कर्मचारियों की सैलरी क्यों नहीं बढ़ाई जा रही है?
कंपनियों के मुनाफे में इजाफा
वहीं दूसरी तरफ, कंपनियों की तिजोरी भरने में कोई कमी नहीं आई। रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 सालों में निजी कंपनियों की कमाई में भारी बढ़ोतरी देखी गई है। इस साल तो कॉर्पोरेट कंपनियों का प्रॉफिट पिछले 15 सालों में अपने उच्चतम स्तर पर रहा है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि कंपनियां लगातार मुनाफा बढ़ाने में सक्षम रही हैं, लेकिन यह मुनाफा कर्मचारियों के हिस्से में नहीं आया।
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंथा नागेश्वरन के मुताबिक, पिछले 15 सालों में कंपनियों ने 4 गुना अधिक कमाई की है। इस भारी मुनाफे के बावजूद, कंपनियों ने जिन कर्मचारियों के दम पर अपनी तिजोरी भरी, उन्हें चवन्नी (थोड़ा सा) इंक्रीमेंट दिया। यह असमानता कर्मचारियों के बीच गहरे आक्रोश और असंतोष का कारण बन गई है।
जीडीपी में गिरावट
इस रिपोर्ट का एक और गंभीर पहलू देश की जीडीपी पर इसके प्रभाव का है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंथा नागेश्वरन ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि अगर प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारियों की कमाई कम होती है, तो इसका सीधा असर खपत (consumption) पर पड़ेगा, जो जीडीपी के गिरने का मुख्य कारण हो सकता है।
इस साल के जुलाई-सितंबर में जीडीपी में 5.4 फीसदी की गिरावट आई, जो कि एक चिंताजनक स्थिति है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जीडीपी में इस गिरावट की मुख्य वजह कॉरपोरेट सेक्टर की आमदनी का 10 फीसदी से नीचे रहना है। कम आमदनी का सीधा असर खपत पर पड़ता है, और जब खपत घटती है, तो इसका असर उत्पादन और व्यापार पर भी दिखता है, जो आगे चलकर संपूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
सरकारी चिंता
सरकार ने इस रिपोर्ट पर अपनी चिंता व्यक्त की है और मुख्य आर्थिक सलाहकार ने निजी कंपनियों से अपील की है कि वे इस विषय पर कदम उठाएं। सरकार का यह मानना है कि यदि देश के सबसे बड़े टैक्सपेयर्स (प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारी) की आमदनी घटेगी, तो इसका असर जीडीपी ग्रोथ पर पड़ेगा और आर्थिक मंदी की स्थिति पैदा हो सकती है।