
बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की अहम बैठक में ऐतिहासिक फैसला लिया गया। सरकार ने जाति जनगणना (Caste Census) कराने को हरी झंडी दे दी है। यह निर्णय एक ओर जहां सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसके राजनीतिक निहितार्थ और आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में इसके असर को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं।
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब विपक्ष, खासकर कांग्रेस और क्षेत्रीय दल, लंबे समय से केंद्र सरकार पर जाति जनगणना की मांग को लेकर दबाव बना रहे थे। खासतौर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे को प्रमुख राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हुए बार-बार मोदी सरकार पर निशाना साधा था।
1947 के बाद पहली बार होगी जातिगत गणना
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि संविधान की भावना और सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा,
“1947 के बाद से भारत में जातिगत जनगणना नहीं हुई। पिछली सरकारों ने इसे टालते रहे। कांग्रेस ने तो इसे सिर्फ राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। अब देश की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने ठोस कदम उठाया है।”
उन्होंने आगे कहा कि इससे नीति-निर्धारण में पारदर्शिता आएगी और विकास योजनाओं का लाभ सही वर्गों तक पहुंचाया जा सकेगा।
बिहार मॉडल बना प्रेरणा
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन सरकार ने 2023 में जातिगत सर्वेक्षण कराया था, जिसके डेटा को सार्वजनिक किए जाने के बाद देश भर में बहस शुरू हो गई थी। बिहार मॉडल ने यह दिखाया कि किस प्रकार राज्य सरकारें भी इस तरह की गणना कर सकती हैं और इसे सामाजिक न्याय के एजेंडे से जोड़ा जा सकता है।
अब जब केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर करने की घोषणा की है, तो यह न केवल बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करेगा, बल्कि देश भर के अन्य राज्यों में भी इसकी गूंज सुनाई दे सकती है।
तेजस्वी यादव बोले – “यह लालू यादव की जीत है”
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा,
“यह हमारी वर्षों की लड़ाई की जीत है। यह लालू जी की दूरदर्शिता और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता की जीत है। हम इसके लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे थे।”
उन्होंने कहा कि जब जाति जनगणना के आंकड़े सामने आएंगे, तब पिछड़े और अति-पिछड़े वर्गों को संसद और विधानसभा में आरक्षण देने की लड़ाई और मजबूती से लड़ी जाएगी।
“यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि यह हमारे आंदोलन की अगली शुरुआत है,” तेजस्वी ने कहा।
“सर्वांगीण विकास का प्रमाण” – नित्यानंद राय
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा,
“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह निर्णय दिखाता है कि सरकार समाज के हर वर्ग के सर्वांगीण विकास के लिए प्रतिबद्ध है।”
उन्होंने पिछड़े वर्गों को दिए गए 10% आरक्षण का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय भी समाज में कोई असंतुलन या तनाव नहीं पैदा हुआ था, जिससे स्पष्ट है कि देश ऐसे फैसलों को स्वीकार करने के लिए तैयार है।
राय ने लिखा,
“यह सिर्फ आंकड़े इकट्ठा करने का नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समरसता की दिशा में ठोस पहल का कदम है।”
कांग्रेस का पलटवार: “दबाव में लिया फैसला”
हालांकि कांग्रेस ने इस फैसले को अपनी जीत करार दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि सरकार ने यह कदम हमारे निरंतर दबाव में उठाया है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने ‘जाति जनगणना करो’ को नारा नहीं, बल्कि एक आंदोलन बना दिया था।
“मोदी सरकार ने पहले इस मांग का मजाक उड़ाया, लेकिन अब खुद को सामाजिक न्याय का चैंपियन साबित करने में लगी है। जनता सब जानती है,” रमेश ने कहा।
कांग्रेस ने यह भी मांग की है कि यह जनगणना पारदर्शी, स्वतंत्र और संवैधानिक अधिकारों के अनुसार होनी चाहिए।
सामाजिक और राजनीतिक असर
जाति जनगणना केवल आंकड़ों की बात नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक, सामाजिक और नीतिगत उद्देश्य जुड़े हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इससे पता चलेगा कि सामाजिक-आर्थिक संसाधनों का वितरण कितनी समानता से हुआ है।
यह भी सामने आएगा कि किस जाति या समुदाय को सरकारी योजनाओं, नौकरियों और शिक्षा में कितना लाभ मिला है। यह आंकड़े आरक्षण की समीक्षा, नई नीतियों के निर्माण और विकास की रणनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण होंगे।
चुनावी नजरिए से मास्टरस्ट्रोक?
बिहार में जातिगत समीकरण हमेशा से चुनावी नतीजों को प्रभावित करते रहे हैं। जाति जनगणना का यह फैसला उस समय आया है जब बिहार में विधानसभा चुनावों की आहट शुरू हो चुकी है। राजनीतिक विश्लेषक इसे मोदी सरकार का “चुनावी मास्टरस्ट्रोक” भी मान रहे हैं, जिससे वह पिछड़े और अति-पिछड़े वर्गों के वोटबैंक को साधना चाहती है।
हालांकि भाजपा का परंपरागत वोट बैंक इससे कैसे प्रभावित होगा, यह देखना बाकी है।