
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उत्तराखंड के ज्वालापुर से पूर्व विधायक सुरेश राठौर को छह वर्षों के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। यह कार्रवाई उनके अनुशासनहीन और पार्टी विरोधी आचरण, सार्वजनिक विवादों, और सोशल मीडिया पर भाजपा की नीतियों के उपहास के चलते की गई है। खासकर यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) जैसे संवेदनशील विषय पर उनके व्यक्तिगत जीवन के माध्यम से किए गए मजाक को भाजपा नेतृत्व ने गंभीरता से लिया। भाजपा की इस सख्त कार्रवाई से स्पष्ट है कि पार्टी अब नैतिक छवि और अनुशासन के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगी, चाहे वह कितना ही वरिष्ठ नेता क्यों न हो।
यूसीसी पर ‘व्यवहारिक उपहास’ बना बर्खास्तगी का तात्कालिक कारण
सुरेश राठौर ने हाल ही में एक महिला से विवाह किया, जबकि उनकी पहली पत्नी और परिवार पहले से मौजूद हैं। यह विवाह सहारनपुर में सार्वजनिक रूप से हुआ और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस पूरे मामले को यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता के परिप्रेक्ष्य में भाजपा की दोहरी सोच के तौर पर देखा गया।
यूनिफॉर्म सिविल कोड भाजपा की राष्ट्रीय नीतियों और वैचारिक प्रतिबद्धताओं में प्रमुख स्थान रखता है। ऐसे में राठौर का यह कदम पार्टी के लिए सीधे उस एजेंडे पर चोट जैसा था, जिसे वह वर्षों से जनता के सामने समानता और नैतिकता की मिसाल के रूप में प्रस्तुत कर रही है।
अभिनेत्री उर्मिला सनावर से रिश्ता और विवाद की पृष्ठभूमि
पूर्व विधायक सुरेश राठौर और अभिनेत्री उर्मिला सनावर के बीच लंबे समय से संबंधों को लेकर विवाद चल रहा था। यह विवाद पहले व्यक्तिगत दायरे में था, लेकिन सोशल मीडिया, पुलिस केस और सार्वजनिक बयानों के चलते यह मामला राजनीतिक क्षति का कारण बनने लगा।
दोनों ने एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए, मुकदमे दर्ज कराए और निजी जीवन की कई बातें सार्वजनिक मंचों पर आ गईं। इसी क्रम में कुछ दिन पहले सहारनपुर में दोनों ने विवाह कर लिया, जिसे राठौर ने “व्यक्तिगत निर्णय” बताया, लेकिन यह भाजपा के लिए सार्वजनिक संकट बन गया।
भाजपा का नोटिस और निष्कासन
भाजपा ने इस पूरे घटनाक्रम पर संज्ञान लेते हुए सुरेश राठौर को सात दिन में जवाब देने का नोटिस भेजा था। यह नोटिस प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के निर्देश पर प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बिष्ट द्वारा जारी किया गया था।
नोटिस में साफ तौर पर कहा गया था कि: “आपका सार्वजनिक आचरण, सोशल मीडिया पर फैलती बातें और पार्टी की प्रमुख नीतियों का परोक्ष उपहास पार्टी की छवि को नुकसान पहुँचा रहे हैं। आपके कृत्य भाजपा की अनुशासन संहिता के खिलाफ हैं।” जब सुरेश राठौर की ओर से संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो 28 जून को भाजपा ने उन्हें 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया।
सुरेश राठौर: राजनीतिक सफर और विवादों का पड़ाव
सुरेश राठौर उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के ज्वालापुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। वह पार्टी में हिंदुत्ववादी विचारधारा के प्रमुख वक्ताओं में से एक माने जाते थे। राठौर ने राज्य में UCC लागू करने की कई बार वकालत की थी और महिलाओं के अधिकारों को लेकर कई मंचों पर ‘संस्कारी नैतिकता’ की दुहाई दी थी। लेकिन उनका व्यक्तिगत जीवन इन बातों से उलट दिशा में बढ़ता दिखाई दिया। यह विरोधाभास न केवल पार्टी के लिए राजनीतिक बोझ बन गया, बल्कि नैतिक दोहरेपन के आरोप भी लगने लगे।
विपक्ष का तंज: “यूसीसी की सच्चाई उजागर हुई”
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस प्रकरण को भाजपा की ‘दोगली राजनीति’ करार दिया। कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा महरा दसौनी ने कहा: “जो पार्टी दूसरों को संस्कृति और परिवार का पाठ पढ़ाती है, उसके नेता खुद ही अपने आचरण से पार्टी के यूसीसी एजेंडे का मजाक बना रहे हैं। भाजपा को अब बताना चाहिए कि क्या UCC का मतलब केवल दूसरों पर लागू करना है?” वहीं समाजवादी पार्टी ने इसे भाजपा का “मॉरल पुलिसिंग में असफलता” बताया और कहा कि नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों को पहले अपने घर में देखना चाहिए।
राठौर की सफाई: “यह मेरा निजी जीवन है”
सुरेश राठौर ने अपनी निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मेरे व्यक्तिगत जीवन को राजनीतिक रंग दिया गया। मैंने कोई अपराध नहीं किया। मैंने सिर्फ अपने जीवन का फैसला लिया। अगर यह किसी को आपत्तिजनक लगता है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।” राठौर ने यह भी संकेत दिया कि वह भविष्य में किसी अन्य राजनीतिक विकल्प की तलाश कर सकते हैं। हालांकि, उन्होंने किसी दल का नाम नहीं लिया।