
उत्तराखंड सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए राज्य के सरकारी विद्यालयों के नाम अब बलिदानियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम पर रखने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस प्रस्ताव को औपचारिक रूप से अनुमोदन दे दिया है। इस निर्णय के तहत प्रदेश के चार प्रमुख विद्यालयों के नाम बदलकर उन्हें देश के वीर सपूतों के नाम पर समर्पित कर दिया गया है।
इस बदलाव का उद्देश्य न केवल इन महान विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित करना है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को उनके त्याग और देशभक्ति से परिचित कराना भी है। इससे विद्यार्थियों में राष्ट्रप्रेम की भावना सुदृढ़ होगी और उन्हें अपने ऐतिहासिक विरासत पर गर्व महसूस होगा।
ये स्कूल अब जाने जाएंगे नए नामों से
मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद राज्य के निम्नलिखित सरकारी विद्यालयों के नाम परिवर्तित किए गए हैं:
- राजकीय इंटर कॉलेज चिपलघाट, पौड़ी गढ़वाल
अब यह विद्यालय “बलिदानी श्री भगत सिंह रावत राजकीय इंटर कॉलेज, चिपलघाट पौड़ी गढ़वाल” के नाम से जाना जाएगा।
भगत सिंह रावत स्वतंत्रता आंदोलन के एक सशक्त स्तंभ रहे हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभालते हुए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। - राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मैंद्रथ, चकराता (देहरादून)
अब यह विद्यालय “पंडित सैराम राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय” कहलाएगा।
पंडित सैराम स्थानीय स्तर पर जनजागरण और स्वराज आंदोलन के प्रमुख चेहरों में शामिल थे। - राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पुण्डेरगांव, पौड़ी गढ़वाल
इसका नाम बदला गया है और अब यह होगा “स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. कुंवर सिंह रावत राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पुण्डेरगांव”।
कुंवर सिंह रावत का योगदान ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ग्रामीण क्षेत्रों में आंदोलन खड़ा करने में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। - राजकीय इंटर कॉलेज डीडीहाट, पिथौरागढ़
अब इस स्कूल का नाम होगा “स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. श्री माधों सिंह जंगपांगी जीआईसी, डीडीहाट पिथौरागढ़”।
माधों सिंह जंगपांगी सीमांत क्षेत्र के एक क्रांतिकारी नेता थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में सक्रिय भागीदारी निभाई।
मुख्यमंत्री धामी का दृष्टिकोण
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस निर्णय को उत्तराखंड की अस्मिता और ऐतिहासिक गौरव से जोड़ते हुए कहा,
“हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और बलिदानियों ने जो त्याग और तपस्या की है, वह अमूल्य है। स्कूलों के नाम उनके नाम पर रखने से न केवल उनके योगदान को सम्मान मिलेगा, बल्कि बच्चों को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे भी राष्ट्र के लिए कुछ करने का संकल्प लें।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी और प्रदेश भर के अन्य विद्यालयों के नाम भी क्षेत्रीय बलिदानियों के नाम पर रखने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे।