
उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने मंत्रिमंडल बैठकों की आवृत्ति बढ़ाने का निर्णय लिया है ताकि विभिन्न विभागों से संबंधित लंबित प्रस्तावों पर शीघ्रता से निर्णय लिया जा सके। सरकार का यह कदम प्रशासनिक सुचारूता, औद्योगिक निवेश, अवस्थापना विकास, खेती-बागवानी और जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को गति देने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
तीन साल से अधिक का कार्यकाल पूरा कर चुकी धामी सरकार के सामने अब यह स्पष्ट चुनौती है कि वह प्रदेश के विकास से जुड़े सभी लंबित प्रस्तावों को प्राथमिकता दे। सरकार के अनुसार, इन प्रस्तावों पर निर्णय न होने का एक प्रमुख कारण मंत्रिमंडल बैठकों के बीच लंबा अंतराल रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस समस्या को व्यावहारिक रूप से स्वीकारते हुए सचिव मंत्रिपरिषद शैलेश बगौली को निर्देश दिए हैं कि वे प्रस्तावों की संख्या को देखते हुए कैबिनेट बैठकों का आयोजन निश्चित समयावधि में सुनिश्चित करें।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा, “हमारी सरकार पारदर्शिता और तत्परता के सिद्धांतों पर कार्य कर रही है। हमारा प्रयास है कि विकास से जुड़ा कोई भी प्रस्ताव लंबित न रहे और उसे समयबद्ध तरीके से अमलीजामा पहनाया जाए।”
28 मई को होगी अगली कैबिनेट बैठक
इसी निर्णय के तहत अगली कैबिनेट बैठक 28 मई को बुलाई गई है। कैबिनेट सचिव शैलेश बगौली ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, “राज्य में विभागों की ओर से आने वाले प्रस्तावों की संख्या में तेजी आई है। यही वजह है कि अब कैबिनेट बैठकें कम अंतराल में आयोजित की जाएंगी ताकि सभी प्रस्तावों पर गंभीरता से विचार हो सके।”
विभागीय प्रस्तावों की बढ़ती संख्या बनी चुनौती
सूत्रों के अनुसार, कई विभागों के प्रस्ताव पहले से ही विचाराधीन हैं। चूंकि कैबिनेट बैठकें कम होती थीं, इसलिए नई पहल पर चर्चा करना संभव नहीं हो पा रहा था। इसका सीधा प्रभाव राज्य की विकास परियोजनाओं और योजनाओं के क्रियान्वयन पर पड़ा। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “बैठक में प्रस्तावों की संख्या बहुत अधिक होने पर हर एक पर विस्तार से चर्चा नहीं हो पाती, जिससे निर्णय प्रक्रिया बाधित होती है।”
कैबिनेट मंत्रियों की भी थी लंबे समय से मांग
कैबिनेट मंत्रियों की ओर से भी लंबे समय से यह मांग उठ रही थी कि उन्हें बैठक में लाए गए प्रस्तावों पर गहराई से चर्चा करने का अवसर मिलना चाहिए। अधिकांश मंत्री यह महसूस कर रहे थे कि एक बैठक में जब बहुत अधिक प्रस्ताव आते हैं, तो न केवल निर्णय प्रक्रिया प्रभावित होती है, बल्कि कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर समुचित विचार भी नहीं हो पाता।
एक कैबिनेट मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम सभी चाहते हैं कि हमारी योजनाएं जल्द लागू हों, लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि प्रस्तावों पर पर्याप्त समय देकर विचार किया जाए। कैबिनेट बैठकें यदि नियमित और कम अंतराल में होंगी, तो इस दिशा में उल्लेखनीय सुधार होगा।”