
प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अब और भी सशक्त हो जाएगी। सरकार ने विजिलेंस विभाग को अधिक प्रभावी बनाने के लिए 20 नए पदों की मंजूरी दी है, जिससे अब विभाग तकनीकी और वित्तीय मामलों की जांच में भी पूरी तरह सक्षम हो जाएगा। इस निर्णय के बाद विजिलेंस विभाग को बाहरी एजेंसियों या विशेषज्ञों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
इस कदम के साथ अब विजिलेंस विभाग की संरचना 132 पदों से बढ़कर 152 पदों की हो जाएगी। इनमें इंजीनियरिंग, वित्तीय विश्लेषण और पुलिस जांच के क्षेत्र से जुड़े अधिकारी और विशेषज्ञ शामिल होंगे। यह निर्णय बुधवार को हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया गया।
क्यों जरूरी था यह कदम?
प्रदेश में विभिन्न विभागों में लगातार सामने आ रहे भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के दौरान विजिलेंस को कई तकनीकी और वित्तीय पेचीदगियों का सामना करना पड़ता था।
तकनीकी पहलू:
उदाहरण के तौर पर, किसी निर्माण परियोजना में भ्रष्टाचार की जांच करनी हो तो पुलिस अधिकारियों के पास उसकी तकनीकी गहराई को समझने की विशेषज्ञता नहीं होती। निर्माण सामग्री, लागत, गुणवत्ता और डिजाइन से जुड़ी विसंगतियों को केवल सिविल इंजीनियर या तकनीकी विशेषज्ञ ही सही तरीके से जांच सकते हैं।
वित्तीय पक्ष:
इसी तरह, अगर मामला लेन-देन, लेखा परीक्षण या वित्तीय हेराफेरी से जुड़ा हो, तो विजिलेंस को अक्सर चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) या वित्तीय सलाहकारों की मदद लेनी पड़ती थी। बाहरी विशेषज्ञों पर निर्भरता के कारण जांचों में देरी होती थी, जिससे आरोपी को कानूनी रूप से फायदा मिल सकता था।
अब सरकार ने विजिलेंस विभाग में स्थायी रूप से तकनीकी और वित्तीय विशेषज्ञों की नियुक्ति कर इस समस्या का समाधान निकाल लिया है।
कौन-कौन से पद होंगे शामिल?
नए स्वीकृत 20 पदों में से अधिकांश संविदा पर भरे जाएंगे, खासकर वे पद जो तकनीकी विशेषज्ञता मांगते हैं। इसके साथ ही कुछ पद पुलिस विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आएंगे।
तकनीकी और वित्तीय विशेषज्ञ (संविदा आधारित) सिविल इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और कंस्ट्रक्शन ऑडिट विशेषज्ञ, फाइनेंशियल एनालिस्ट, इन्फ्रास्ट्रक्चर ऑडिटर,
पुलिस अधिकारी (प्रतिनियुक्ति पर) स्पेक्टर रैंक के अधिकारी, सब-इंस्पेक्टर स्तर के अनुभवी जांच अधिकारी
विजिलेंस की जांच होगी और सटीक
अब जब विभाग में इन विशेषज्ञों की नियुक्ति होगी, तो विजिलेंस की जांच रिपोर्ट अधिक ठोस और प्रमाणिक होगी। भ्रष्टाचार से जुड़ी तकनीकी गड़बड़ियों का गहराई से विश्लेषण किया जा सकेगा। इससे उन आरोपियों को कानूनी राहत नहीं मिल पाएगी, जो तकनीकी त्रुटियों या जांच की कमी का फायदा उठाकर बरी हो जाते थे। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “इस संरचनात्मक बदलाव के बाद विजिलेंस विभाग में मामलों की निष्पक्ष, तेज और विशेषज्ञ आधारित जांच सुनिश्चित होगी। अब जांच सिर्फ पुलिस की नजर से नहीं, बल्कि विषय विशेषज्ञों के तकनीकी और वित्तीय मूल्यांकन के आधार पर की जाएगी।”
पिछली स्थिति और प्रस्ताव की पृष्ठभूमि
वर्ष 2022 में विजिलेंस विभाग ने राज्य सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था, जिसमें तकनीकी विशेषज्ञों को अपने ढांचे में शामिल करने की मांग की गई थी। विजिलेंस की दलील थी कि समय के साथ भ्रष्टाचार के तरीके अत्यधिक जटिल और तकनीकी हो चुके हैं।
विभाग का कहना था कि निर्माण, पीडब्ल्यूडी, जल निगम, नगर निगम जैसी परियोजनाओं में घोटाले बारीक तकनीकी गड़बड़ियों के जरिए किए जाते हैं। वित्तीय अनियमितताएं इतनी गहन होती हैं कि सिर्फ पुलिस जांच से उन्हें साबित करना संभव नहीं होता। बाहरी विशेषज्ञों पर बार-बार निर्भरता से न सिर्फ जांच में देरी होती है, बल्कि विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होते हैं। सरकार ने इस प्रस्ताव को गंभीरता से लिया और अब दो साल बाद इसे कैबिनेट ने स्वीकृति दे दी है।
क्या होंगे इस फैसले के फायदे?
जांच की गति बढ़ेगी: विशेषज्ञों की तैनाती से जांच प्रक्रिया में तेजी आएगी। बाहर से विशेषज्ञ बुलाने और समन्वय में लगने वाला समय बचेगा। जांच की गुणवत्ता में सुधार:
विशेषज्ञों की उपस्थिति से रिपोर्ट तकनीकी और कानूनी रूप से मजबूत होंगी, जिससे अदालत में भी उन्हें चुनौती देना कठिन होगा। भ्रष्टाचार पर सख्त लगाम:
अब विभाग जटिल मामलों को भी बिना बाहरी सहयोग के जांच सकेगा, जिससे भ्रष्टाचारियों में कानूनी कार्रवाई का डर बढ़ेगा। विश्वसनीयता में इजाफा:
लोगों और अदालतों में विजिलेंस जांच की गंभीरता और निष्पक्षता को लेकर विश्वास बढ़ेगा