
उत्तराखंड में इस वर्ष होने वाले पंचायत चुनाव कई मायनों में खास होंगे। निर्वाचन आयोग की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, इस बार कुल 4.56 लाख नए मतदाता पंचायत चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। यह संख्या वर्ष 2019 के पिछले पंचायत चुनाव की तुलना में 10.57 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती है। नए मतदाताओं की इस हिस्सेदारी ने राज्य की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नई ऊर्जा प्रदान की है।
राज्य निर्वाचन आयोग ने पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए व्यापक तैयारी शुरू कर दी है। चुनाव में कड़ी निगरानी और प्रशासनिक सख्ती के तहत 67 पर्यवेक्षकों की तैनाती की जा रही है, जिनमें 55 सामान्य प्रेक्षक और 12 आरक्षित वर्गों के लिए विशेष प्रेक्षक शामिल हैं।
बढ़ी मतदाताओं की संख्या, युवाओं की बड़ी भागीदारी
राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने जानकारी दी कि इस बार नए मतदाताओं की संख्या में जो इजाफा हुआ है, उसमें युवाओं की भागीदारी उल्लेखनीय है। उन्होंने बताया कि युवाओं को मतदाता सूची में जोड़ने के लिए चलाए गए विशेष अभियान और डिजिटल माध्यमों से जागरूकता अभियानों ने इसमें अहम भूमिका निभाई है।
“यह सिर्फ आंकड़ों में इजाफा नहीं है, बल्कि लोकतंत्र में लोगों की आस्था का संकेत है,” उन्होंने कहा।
इसके साथ ही चुनाव आयोग ने दिव्यांग और वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष व्यवस्थाओं का भरोसा भी दिलाया है, ताकि हर वर्ग के मतदाता बिना किसी बाधा के अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें।
त्रिस्तरीय निगरानी तंत्र: प्रशासन, पुलिस और आबकारी विभाग
चुनाव के दौरान अवैध गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए आयोग ने जिला स्तर पर तीन प्रवर्तन टीमें गठित करने का फैसला किया है। ये टीमें निम्नानुसार काम करेंगी:
- जिला प्रशासन टीम – चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के पालन और व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए।
- पुलिस विभाग की टीम – कानून-व्यवस्था बनाए रखने और असामाजिक तत्वों पर निगरानी के लिए।
- आबकारी विभाग की टीम – अवैध शराब, मादक पदार्थों और अन्य प्रलोभनों की जब्ती और रोकथाम के लिए।
राज्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा, “इन टीमों को पूरी स्वतंत्रता और शक्ति दी गई है ताकि चुनाव प्रक्रिया में कोई विघ्न न आए। निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए इनकी कार्रवाई में शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाई जाएगी।”
खर्च पर होगी सख्त निगरानी, नामित अधिकारी करेंगे निरीक्षण
हालांकि चुनाव आयोग ने इस बार अलग से व्यय प्रेक्षक तैनात नहीं किए हैं, लेकिन प्रत्येक जिले में चुनाव खर्च पर निगरानी रखने के लिए अधिकारी नामित किए जा रहे हैं। ये अधिकारी प्रशासनिक टीमों के सहयोग से उम्मीदवारों के खर्च की निगरानी करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर खर्च विवरण का मिलान भी करेंगे।
राज्य निर्वाचन आयोग का मानना है कि यह व्यवस्था खर्च पर निगरानी के लिए पर्याप्त है और उम्मीदवारों को चुनाव खर्च सीमा का पालन करने के लिए प्रेरित करेगी।
खर्च सीमा में बदलाव: अब होगी पारदर्शी प्रतियोगिता
पंचायत चुनाव में धनबल के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए खर्च सीमा को व्यवहारिक रूप से बढ़ाया गया है। यह संशोधन उम्मीदवारों को कानूनी दायरे में रहकर प्रचार करने की अनुमति देता है। नई खर्च सीमाएं निम्नानुसार हैं:
- ग्राम पंचायत सदस्य: ₹10,000
- प्रधान: ₹50,000 से बढ़ाकर ₹75,000
- क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी): ₹50,000 से बढ़ाकर ₹75,000
- जिला पंचायत सदस्य: ₹1,40,000 से बढ़ाकर ₹2,00,000
राज्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा कि इन संशोधित खर्च सीमाओं से चुनाव प्रचार में पारदर्शिता आएगी और यह खर्चों को यथार्थवादी बनाएगी।
डिजिटल प्रचार पर भी नजर
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि अब सोशल मीडिया और डिजिटल प्रचार को भी खर्च के दायरे में शामिल किया जाएगा। आयोग की निगरानी टीमें उम्मीदवारों के डिजिटल प्रचार अभियान पर नजर रखेंगी और सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली भ्रामक जानकारी पर भी कार्रवाई की जाएगी।
“डिजिटल युग में प्रचार के तरीके बदल रहे हैं, इसलिए हमारी निगरानी भी अब तकनीक-संचालित हो चुकी है,” सुशील कुमार ने कहा।